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    लाल हेंब्रम संताल के एक गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 14 Aug 2020 05:11 PM (IST)

    साहिबगंज संतालपरगना के एक गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी लाल हेंब्रम पुराने कांग्रेसी थे। बिनोदानंद झ ...और पढ़ें

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    लाल हेंब्रम संताल के एक गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी

    साहिबगंज: संतालपरगना के एक गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी लाल हेंब्रम पुराने कांग्रेसी थे। बिनोदानंद झा के साथ-साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू के लाल हेंब्रम अच्छे दोस्त थे। दुमका में एसपी कॉलेज के संस्थापक भी थे। संताल परगना के गांगेय क्षेत्र पाकुड़, राजमहल को बंगाल से बचाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस क्षेत्र को उनके अहम योगदान की जानकारी शायद बहुत कम लोगों को है। उस पीढ़ी के लोग जो इस समय बचे हुए हैं। वह शायद इससे अवगत होंगे।

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    साहिबगंज कॉलेज के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो सुरेंश्वरनाथ ने बताया कि आजादी के बाद भाषाई आधार पर भारत के मानचित्र का पूर्ण गठन जोर पकड़ने लगा था। छोटानागपुर में डॉक्टर जयपाल सिंह के नेतृत्व में बिहार, बंगाल और ओडिशा के आदिवासी क्षेत्रों को मिलाकर एक अलग आदिवासी राज्य की मांग कर लोग रहे थे। 1953 में भारत सरकार ने भाषाई आधार पर कमीशन नियुक्त किया। इसमें कानूनी ज्ञाता एस फजलल, इतिहासकार एवं पब्लिक सर्वेंट के एम पनीकर, सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश नाथ काटजू को सदस्य बनाया गया। इसका उद्देश्य था कि भारत की एकता एवं अखंडता को सुरक्षित रखते हुए एकरूपता और दक्षता के लिए भाषाई आधार पर राज्य का गठन होना चाहिए।

    प्रो सुरेश्वर नाथ बताते हैं कि कमीशन के गठन के साथ भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की मांग उठने लगी। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक एवं भाषाई दृष्टकोण से संतालपरगना क्षेत्र पर बंगाल के लोगों को अपना दावा मजबूत होता दिखाई पड़ा। पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश और 1911 में बंगाल से बिहार का अलग होने की क्षति को बंगाल के लोग बर्दाश्त करने वाले नहीं थे और उसके पीछे इतिहास का तर्क भी है। बकौल प्रो सुरेश्वरनाथ मुगलकाल में राजमहल बंगाल की राजधानी थी यहां के अधिकांश लोग आज भी यहां तक कि आदिवासी भी बांग्ला अच्छी तरह बोलते हैं। यहां के मुसलमान बांग्ला भाषी हैं। बंकिम चंद्र के प्रसिद्ध् उपन्यास आनंदमठ की प्रेरणा इस क्षेत्र में संन्यासियों के विद्रोह से प्रभावित है। देवी चौधरानी अंबार और सुल्तानाबाद अब महेशपुर की रानी सर्वेश्वरी से प्रभावित थी।

    इतिहासकार प्रो. सुथेश्वर नाथ बताते हैं कि उस समय बिहार क्षेत्र को जाने नहीं देना चाहता था पर बंगाल इस क्षेत्र पर अधिकार चाहता था। समर्थन और विरोध में जबरदस्त आंदोलन हुए। बंगाल की मांग के विरोध में लाल हेम्ब्रम खड़े रहे और बचाने में सफल भी रहे। उनका योगदान इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हाल दालभूमि जिला जिससे बाद में धनबाद बना। इसका अधिकांश भाग पुरुलिया व झाड़ग्राम बंगाल को दे दिया गया। परंतु संतालपरगना क्षेत्र को बचाने में लाल हेम्ब्रम सफल रहे। प्रो नाथ बताते हैं कि उनके सम्मान में कम से कम झारखंड सरकार प्रस्तावित गंगा ब्रिज का नामकरण लाल हेम्ब्रम हेतु के रूप में ऐसा अनुरोध है। इस महान सेनानी ने झारखंड एवं संथालपरगना की एकता और अखंडता के लिए जुझारु योद्धा के रूप में लड़ाई लड़ी।