आदिवासी समाज में बारह तरीके से है शादी की परंपरा
बोरियो (साहिबगंज) निप्र : शादी समाज का एक महत्वपूर्ण संस्कार है और पीढ़ी दर पीढ़ी सभ्य समाज के लोगों को इन परंपराओं से गुजरना होता है। आम तौर पर पहले अभिभावक लड़का लड़की को देख कर पसंद करते हैं। फिर दहेज की मांग पूरी होने पर लड़के वाले लड़की के घर बारात लेकर पहुंचते हैं और विधिवत विवाह संपन्न होता है। किन्तु आदिवासी संथाल समाज में 12 तरीकों से विवाह की परंपरा है। विवाह की 12 परंपरा को विस्तार से बता रहे हैं पवन गुप्ता:-
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सदाय या रायवर बापला
संताल समाज में दोनों पक्षों के अभिभावकों की सहमति से होने वाला आदर्श विवाह धूमधाम से होता है।
टुमकि दिपिल बापला
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यह भी एक प्रकार का नियमित विवाह है जो अभिभावकों की सहमति से होता है। इसका उद्देश्य विवाह में कम खर्च है। इसमें बारात व प्रीति भोज नहीं होता है। गरीब संतालों में ऐसे विवाह का प्रचलन ज्यादा है।
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अपाडगीर वापला या अंगीर बापला
जब किसी लड़क ा-लड़की में आपस में प्रेम हो जाता है। और परिवार उसके बीच में बाधक बनने लगता है। ऐसे में लड़का-लड़की अंजान जगह पर रहने लगते हैं। बच्चे के जन्म के साथ ही विवाह को मान्यता मिल जाती है।
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ओर-आदेर बापला
प्रेम के बाद जब लड़का और लड़की के बीच शारीरिक संबंध बन जाता है तो लड़का जबर्दस्ती लड़की को अपने घर लाकर विधिवत विवाह रचाता है।
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निरबोलोक बापला
शारीरिक संबंध के बाद लड़के के शादी से इंकार के बाद लड़की जबर्दस्ती लड़का के घर में रहने के लिए चली जाती है। काफी प्रयास के बाद घर से नहीं निकलती है तो समाज इस रिश्ते को मान्यता दे देता है।
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इतुत बापला
इस प्रकार के विवाह में पुरु ष द्वारा इच्छित लड़की की मांग में जबरन सिंदूर भर दिया जाता है। बाध्य होकर लड़की को यह रिश्ता स्वीकार करना पड़ता है। परंपरागत रीती-रिवाज के अनुसार लड़की के अभिभावक, मांझी, पराणिक एवं अन्य पांच व्यक्ति लड़के के घर जाकर अपनी मर्जी से किसी के भी तीन, पांच या सात पाठा काट लेता है।
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हीराम चेतान बापला
इस प्रकार के विवाह में पुरु ष की पहली पत्नी जीवित रहती है। पति के साथ रहते हुए दोनों की मर्जी पर पति दूसरी शादी करता है। यह तभी होता है जब पहली पत्नी का कोई बच्चा न हो या फिर सिर्फ लड़की होती हो। इस विवाह को कम सामाजिक मान्यता प्राप्त है।
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घरदी जावाय बापला
इस प्रकार के विवाह में लड़की का भाई नाबालिक होता है। इस लिए लड़का को पांच वर्ष या उससे अधिक समय के लिए दुल्हन के यहां रहकर गृहस्थी संभालना होता है। नाबालिग के बालिक होने पर उसका विवाह कराकर पत्नी के साथ वापस घर आ जाता है।
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गोलायटी बापला
इस प्रकार के विवाह में दोनों परिवार के लड़का व लड़की आपस में भाई-बहन होते हैं अर्थात लड़का आपस में साला बहनोई होते हैं।
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जावाय किरिज बापला
इस प्रकार के विवाह में पुरु ष उस अविवाहित महिला से विवाह करता है जो मां बनने वाली होती है। बच्चे को पिता का नाम देने के लिए पुरु ष को विवाह के लिए खरीदा जाता है। इसमें लड़की वालों को ज्यादातर खर्च वहन करना होता है।
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घर जवाय बापला
इस प्रकार के विवाह में लड़की का कोई भाई और न गोतिया होता है। लड़की अपने संबंधियों के साथ बरात लेकर दूल्हा के घर जाती है। विवाह के उपरांत दूल्हा को घर जमाय के रु प में रहना पड़ता है।
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सहाय बापला
इस प्रकार के विवाह में सिन्दूर के स्थान पर तेल का प्रयोग होता है। अभी के समय में इस प्रकार का विवाह देखने को नहीं मिलता है। संथाल विद्रोह के पूर्व इस प्रकार का विवाह देखने को मिलता था।
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