कोशिशें रंग लाईं और विदेश में धूम मचाने लगा भगैया का सिल्क, 100 करोड़ से अधिक का कारोबार
भगैया में बने सिल्क के कपड़े शॉल साड़ी कुर्ती दुपट्टा आदि वस्त्रों की विदेशों में तक आपूर्ति हो रही है। इनकी अच्छी-खासी मांग भी है। अब टाई के रूप में इसका एक और संस्करण विदेश भेजा जा रहा है। भगैया में पहली बार सिल्क की टाई बनाई जा रही है। नाबार्ड ने इसके लिए योजना बनाकर महिलाओं को टाई निर्माण व पेंटिंग का प्रशिक्षण दिया है।

डॉ. प्रणेश, साहिबगंज। झारखंड में साहिबगंज व गोड्डा जिले की सीमा पर बसे गांव भगैया को सिल्क नगरी के रूप में भी जाना जाता है। उद्यमियों की मेहनत और यहां के रेशमी कपड़ों को पहचान दिलाने को लेकर हाल में कई प्रयास हुए हैं, जो धीरे-धीरे रंग लाते दिख रहे हैं। दो वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने अमेरिका दौरे के क्रम में वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति को कई भारतीय उपहार भेंट किए थे। इनमें भगैया सिल्क भी एक था।
बिहार, बंगाल व झारखंड में लंबे समय से अपनी धमक बरकरार रखने वाले भगैया सिल्क के ग्लोबल होने की यह शुरुआत थी। इसके पहले फिल्म राजनीति में कैटरीना कैफ ने भगैया सिल्क की साड़ी पहनी थी, तब भी यह काफी चर्चा में आया था।
भगैया सिल्क कभी बहनों के प्रेम के प्रतीक के तौर पर रेशम की राखियों के रूप में ऑनलाइन कामर्शियल प्लेटफॉर्म पर देश-विदेश में धूम मचा रहा है तो कभी बिहार-झारखंड की लोककलाओं के साथ अपनी चमक बिखेर रहा है। इसे जीआई टैग दिलाने की भी कोशिश हो रही है।
भगैया में बने सिल्क के कपड़े शॉल, साड़ी, कुर्ती, दुपट्टा आदि वस्त्रों की विदेशों में तक आपूर्ति हो रही है। इनकी अच्छी-खासी मांग भी है। अब टाई के रूप में इसका एक और संस्करण विदेश भेजा जा रहा है। यह लोगों को काफी भा रहा है। भगैया में पहली बार सिल्क की टाई बनाई जा रही है। नाबार्ड ने इसके लिए योजना बनाकर महिलाओं को टाई निर्माण व पेंटिंग का प्रशिक्षण दिया है।
टाई के कपड़े के ऊपर बिहार की मधुबनी पेंटिंग और झारखंड की सोहराय व कोहबर कला उकेरी जो रही है, जो इसे और भी विशिष्ट बना रहा है। गोड्डा के गणेश पीस फाउंडेशन के माध्यम से हाल में 90 लोगों को 20 दिनों का मधुबनी व साेहराय पेंटिंग का प्रशिक्षण दिलाया गया है, जो विदेश भेजने के लिए खास टाई का निर्माण कर रहे हैं।
पहली खेप में बनाए गए टाई को नाबार्ड ने ही खरीद लिया। उसने संस्था के वरीय अधिकारियों को दीपावली के मौके पर उसे गिफ्ट किया। सभी ने इसकी प्रशंसा की। पिछले दिनों नाबार्ड के जीएम गौतम कुमार ने फिलिपींस दौरे के क्रम में वहां के अधिकारियों को उपहार में यह टाई भेंट की थी, जो उन्हें काफी पसंद आया। अब वहां से भी डिमांड आने लगी है। इससे इस कारोबार में लगे लोग उत्साहित हैं। अब यहां बनने वाले टाई को बिक्री के लिए आनलाइन प्लेटफार्म पर लाने की तैयारी की जा रही है।
100 करोड़ से अधिक का कारोबार
अनुमान के मुताबिक केवल भगैया में सालाना 100 करोड़ से अधिक का सिल्क का कारोबार होता है। उद्योग विभाग भी कारोबारियों को सहयोग करता है। बेरोज सिल्क के प्रोपराइटर निरंजन पोद्दार कहते हैं कि सिल्क की साड़ी, चादर, शाल व स्कार्फ की ज्यादा मांग रहती है। टाई के रूप में इसका विस्तार होगा। सिल्क के छोटे छोटे टुकड़े जो बेकार हो जाते थे उसका भी उपयोग इसमें हो सकेगा।
भागलपुरी सिल्क से नाता
सिल्क के कपड़े बनाने का काम मुख्य रूप से झारखंड के साहिबगंज, गोड्डा व दुमका तथा बिहार के भागलपुर व बांका में होता है। हालांकि, काेकून का उत्पादन कुछ अन्य जिलों में होता है। भगैया की सिल्क की सप्लाई बिहार के निकटवर्ती जिले भागलपुर में खूब होती है। वहां इसे भागलपुरी सिल्क के नाम से जाना जाता है।
कपड़ों पर कोहबर, सोहराय, मधुबनी व मंजूषा पेंटिंग:
सिल्क उद्यमियों का कहना है कि इस वर्ष फरवरी-मार्च में नाबार्ड के सीजीएम एसके जहांगीरदार, जीएम गौतम कुमार सिंह सहित कई अन्य अधिकारी भगैया के दौरे पर आए थे। इसी दौरान सीजीएम एसके जहांगीरदार ने सिल्क की टाई बनाने का आइडिया दिया था। इसके बाद उस पर काम शुरू हुआ। इसी दौरान यह बात सामने आई कि भगैया में बनने वाले सिल्क के कपड़ों पर केवल मधुबनी व मंजूषा पेंटिंग की जाती है जिससे झारखंड का होने के बाद यहां से उसका जुड़ाव नहीं हो पाता है। ऐसे में सिल्क के कपड़ों पर कोहबर व सोहराय पेंटिंग भी कराने का निर्णय लिया गया।
गर्मी में ठंडक और सर्दी में देता है गर्माहट
चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत और ब्रिटिश गजेटियर में भी संताल परगना के भगैया सिल्क का जिक्र मिलता है। अपनी खूबियों के कारण इसकी अलग पहचान है। सिल्क के धागे में सेरीसीन और फैब्राइन नामक प्रोटीन होते हैं। इनमें पानी को सोखने की क्षमता होती है। इस कारण सिल्क कपड़ों को गर्मी में पहनने से ठंडक व जाड़े में यह गर्म तासीर मिलती है।
शून्य कार्बन उत्सर्जन:
टाई के निर्माण से पर्यावरण को किसी प्रकार की क्षति न हो इसका भी ध्यान रखा जा रहा है। सिल्क का निर्माण हाथ से चलने वाले लूम पर किया जाता है। इसके बाद उसपर हाथ से ही पेंटिंग की जाती है। पेंटिंग में प्राकृतिक रंग का उपयोग किया जाता है और दिन में ही यह काम होता है।
महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर
झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसायटी (जेएसएलपीएस) भी यहां की महिलाओं को प्रशिक्षण देकर सिल्क उद्योग से जोड़ रहा है। भगैया की अनीता, दुलारी, माधुरी जैसी कई महिलाएं हैं, जो कोकून से रेशम धागा निकाल कर और रेशमी कपड़े बनाकर हर महीने हजारों रुपये कमा रही हैं। बैंक ने इन्हें स्वरोजगार के लिए ऋण उपलब्ध कराया है।
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