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    विश्‍व आदिवासी दिवस: पहाड़ ऐसा, जहां छिपा है एक आदिवासी जनजाति की उत्‍पत्ति का राज, जमीन के महज 18 सेमी नीचे मिले अवशेष

    By Brajesh MishraEdited By:
    Updated: Mon, 09 Aug 2021 06:16 AM (IST)

    विश्‍व आदिवासी दिवस पर हम आपको एक ऐसी जनजाति की उत्‍पत्ति की कहानी से रूबरू करा रहे हैं जिसके राज एक पहाड़ी में छिपे हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं देश की सबसे पुरानी जनजातियों और सबसे बड़े जनजातियों में से एक मुंडा जनजाति की।

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    रांची के पिठौरिया में स्थित मुड़हर पहाड़। जागरण

      रांची, मधुरेश नारायण। विश्‍व आदिवासी दिवस पर हम आपको एक ऐसी जनजाति की उत्‍पत्ति की कहानी से रूबरू करा रहे हैं, जिसके राज एक पहाड़ी में छिपे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं देश की सबसे पुरानी जनजातियों और सबसे बड़े जनजातियों में से एक मुंडा जनजाति की। इस जनजाति का इतिहास महाभारत काल से पहले का है। कई धार्मिक ग्रंथों में मुडाओं के राजा की चर्चा की गई है। ऐसी मान्यता है कि मुंडा जनजाति की उत्पत्ति पिठौरिया के पास स्थित गांव से हुई है। पिठौरिया चौक पर स्थित मुड़हर पहाड़ से मुंडाओं के राजा महाराज मंदरा मुंडा अपना शासन पूरे प्रदेश में चलाते थे। ये पहाड़ और इसके पास स्थित अंधेरिया-इंजोरिया तालाब आज भी मुंडा जनजाति के लिए काफी पूज्य है। आज भी इस इलाके में किसी के घर में शुभ काम से पहले लोग यहां पहाड़ की पूजा करते हैं।

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    पुरातत्व विभाग में मिले कई सबूत

    वर्ष 2004-05 में एएसआई के प्रागितिहासिक शाखा के पूर्व निदेशक डॉ बिलवर ने इस इलाके में पहाड़ का सर्वे किया। उन्होंने पहाड़ से जमीन के अंदर 18 सेमी तक मिट्टी का हटाई। यहां उन्हें मिट्टी के बर्तन में मानव अस्थि, कान की बाली और मनके पाए थे। स्त्री के मनके से इतिहासकार मुंडा जाति के लोगों को पिठोरिया से छोटानागपुर व अन्य हिस्सों में फैलने की बात कहते हैं। उन्होंने अपने रिपोर्ट में दावा किया कि प्रथम शताब्दी के मुडाओं के द्वारा इस भू-भाग के बड़े इलाके पर राज था। उनके ऐसी मान्यता थी कि उनके पूर्वज मुड़हर पहाड़ पर राज करते थे। इसलिए पहाड़ की पूजा और हड़गड़ी की जाती थी।

    परम पवित्र है अंधेरिया इंजोरिया तालाब

    मुंडाओं की पूरी बस्ती मुड़हर पहाड़ के आसपास रहती थी। इस पहाड़ी के पास एक बड़ा तालाब था। इस तालाब को अंधेरिया इंजोरिया तालाब बोला जाता था। ये तालाब आज भी है। प्रकृति पूजक होने कारण स्वाभाविक रूप से मुंडा समाज के लोग इस तालाब की पूजा करते थे। हालांकि इसके अलावा भी इस तालाब से कई पवित्र मान्यताएं जुड़ी हुई है। आज भी इस तालाब में लोग पूजा और स्नान करने के लिए आते हैं।