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    विश्व दाल दिवस : दाल है कमाल

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 10 Feb 2021 06:45 AM (IST)

    दाल में कुछ काला का अर्थ है कुछ गड़बड़ होना। मगर जब दाल खाने की बात हो तो इसमें कोई गड़बड़ नहीं है।

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    विश्व दाल दिवस : दाल है कमाल

    दाल में कुछ काला का अर्थ है कुछ गड़बड़ होना। मगर जब दाल खाने की बात हो तो इसमें कोई गड़बड़ नहीं है। दाल चाहे काली हो या पीली, शाकाहारी के लिए इससे बेहतर प्रोटीन का स्रोत कोई और नहीं होता। साथ ही दाल को फाइबर से भरपूर और लो फैट के लिए भी जाना जाता है। झारखंड में लोग अपनी डाइट में तरह-तरह की दालों को शामिल करते हैं जिससे उनके पोषण की जरूरतें पूरी होती हैं। हाल के दिनों में दालों की कई उन्नत किस्में विकसित की गईं हैं जिसमें बिरसा कृषि विवि के वैज्ञानिकों की अहम भूमिका रही है। विश्व दाल दिवस पर पेश है विशेष रिपोर्ट।

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    झारखंड में दाल

    आच्छादन रिपोर्ट (हजार हेक्टेयर में)

    फसल रांची लक्ष्य आच्छादन राज्य लक्ष्य राज्य आच्छादन

    चना 13 11.30 300 238

    मसूर 4.20 2.98 91 65.26

    मटर 10.2 9.68 72 53 2 लाख हेक्टेयर भूमि पर अरहर की खेती की जाती है झारखंड में 2021 का थीम

    न्यूट्रीशियस सीड्स फॉर अ सस्टेनेबल फ्यूचर जागरण संवाददाता, रांची : गुणों से भरपूर दाल। सुबह नाश्ते में दाल-रोटी। दोपहर में चावल के साथ दाल। दाल न हो तो खाने का मजा चला जाता है। फिर रात में भी तड़के वाली दाल। अलग-अलग दाल, अलग-अलग जायका। दाल में इतनी पौष्टिकता है कि यह दूसरे पोषण तत्वों की कमी भी पूरी कर देता है।

    झारखंड में अलग-अलग तरह की दालों का इस्तेमाल लोग अपने डाइट में करते हैं। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय दलहन समूह के परियोजना अन्वेषक डा. नीरज कुमार बताते हैं कि झारखंड में करीब 2 लाख हेक्टेयर भूमि में अरहर की खेती की जाती है। इसकी उत्पादकता राष्ट्रीय स्तर से झारखंड में अधिक है। प्रदेश के करीब 31 हजार हेक्टेयर में मूंग तथा 1 लाख 45 हजार हेक्टेयर भूमि में उड़द की खेती की जाती है। दरअसल, जिन दालों को फ्यूचर आफ फूड कहा जाता है उसकी अलग-अलग किस्मों के विकास का काम बिरसा कृषि विश्वविद्यालय कर रहा है।

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    राष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान : रांची केंद्र द्वारा उड़द की बिरसा उड़द -1 तथा कुरथी की बिरसा कुरथी-1 किस्मों को विकसित किया गया है। मूंग की आइपीएम-02-3, मेहा, एसएमएल-668 किस्मों को गरमा फसल के लिए उपयुक्त पाया गया है। बीएयू द्वारा उड़द की विकसित किस्म आरयूबी-12-03 को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। दालों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए बीएय़ू लगातार फसलों के उन्नत किस्म विकसित कर रहा है। अरहर की नई किस्म से वर्ष में तीन बार होगी पैदावार

    बिरसा कृषि विवि के कृषि वैज्ञानिकों ने अरहर की उन्नत किस्म विकसित की है। सालभर में इसकी तीन फसलें ली जा सकती हैं। अरहर की यह किस्म सिर्फ 120-130 दिनों में तैयार हो जाती है। अरहर की बिरसा अरहर-2 (बीएयू पीपी-09-22) अरहर के उकठा एवं बांझपन रोग तथा फली छेदक कीट पर गहन अनुसंधान के लिए प्रभावी रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित है। साथ ही इसमें प्रोटीन की उच्च गुणवत्ता है। यूरिक एसिड के मरीज भी सीमित मात्रा में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।

    कैसी है नई किस्म

    नई किस्म की अरहर के पौधे मौजूदा किस्म की अपेक्षा छोटे हैं।

    इनकी अधिकतम ऊंचाई 1.5 फीट ही है।

    मौजूदा किस्मों के पौधों की ऊंचाई पांच फीट तक होती है।

    छोटे पौधे के कारण नई किस्म की फसल जल्द तैयार होती है।

    पौधों की ऊंचाई घटने से पैदावार में भी कोई फर्क नहीं पड़ा है। काबुली चना के आयातक से निर्यातक बन रहा है देश

    वर्ष 1993 से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आइसीएआर) नई दिल्ली के सौजन्य से भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के माध्यम से पूरे देश के 26 राज्यों के 27 कृषि विश्वविद्यालयों के तहत अखिल भारतीय समन्वित चना अनुसंधान परियोजना (एआइसीआरपी) का संचालन किया जा रहा है। पूरे देश के विभिन्न केंद्रों द्वारा अबतक चना की करीब 215 उन्नत किस्में विकसित की गईं हैं। डा. नीरज कुमार बताते हैं कि देश में 40 फीसद चने का उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है। झारखंड सहित कई राज्यों में चने की फसल के रकबा एवं उत्पादन में बढ़ोतरी देखी जा रही है। कृषि वैज्ञानिकों और किसानों के सहयोग से देश में काबुली चना का आयातक से निर्यातक हो चला है। ये दाल है खास

    कुरथी दाल

    कुरथी का दाल किडनी की बीमारियों के लिए रामबाण माना गया है। खासकर किडनी के स्टोन में इसका औषधीय गुण प्रमाणित हो चुका है। साथ ही इसे खाने से ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल भी नियंत्रित रहता है। कब्ज की समस्या से भी छुटकारा मिल जाता है। आयुर्वेद में बताया गया है कि कुरथी के सेवन से महिलाओं में हार्मोनल बदलाव के कारण प्रीमेंसट्रअल ब्लोटिग की समस्या से राहत मिलती है। रोजाना इसे खाने से पाचन तंत्र भी दुरुस्त रहता है।

    झारखंड में क्या है खास : रांची और खूंटी जिले में लोग कुरथी के दाल की खेती करते हैं। किसान बताते हैं कि कुरथी दाल उनके खाने में शुरू से रहा है। इसके औषधीय गुण को वे पहचानते हैं। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है

    मूंग दाल: मूंग दाल पोषक तत्वों से भरपूर है। इसमें पोटेशियम, मैग्नीशियम, तांबा, जस्ता, विटामिन बी, प्रोटीन, फाइबर, एंटीऑक्सीडेंट आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अंदर पाए जाने वाला तांबा बालों को मजबूती देता है। मूंग दाल में फाइबर पाया जाता है, जिसकी मदद से पाचन क्रिया में सुधार होता है और मेटाबॉलिज्म रेट को बढ़ाने में भी मदद मिलती है। इसमें पाया जाने वाला मैग्नीशियम बीपी को भी नियंत्रित रखता है। अगर अंकुरित मूंग दाल खाएं तो शरीर में कुल 30 कैलोरी और 1 ग्राम फैट ही पहुंचता है।

    अंकुरित मूंग दाल में मैग्नीशियम, कॉपर, फोलेट, राइबोफ्लेविन, विटामिन, विटामिन सी, फाइबर, पोटेशियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, आयरन, विटामिन बी -6, नियासिन, थायमिन और प्रोटीन होता है।

    मूंग की दाल के स्प्राउट में ग्लूकोज लेवल बहुत कम होता है इस वजह से मधुमेह रोगी इसे खा सकते हैं।

    मूंग की दाल में एंटी-माइक्रोबियल और एंटी-इंफलामेट्री गुण होते हैं, जो शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाते हैं। उड़द दाल

    उड़द दाल में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, विभिन्न प्रकार के विटामिन, फाइबर, एंटीआक्सीडेंट, आवश्यक खनिज पाए जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं। ये सभी तत्व सेहत से अनेक समस्याओं को दूर रखने में लाभदायक है। इसके अंदर कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम पाया जाता है जो हड्डियों की समस्या को कम करने के साथ-साथ ऑस्टियोपोरोसिस, गठिया आदि को भी कम करता है। यह दिल की स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद है क्योंकि इसके अंदर फाइबर पाया जाता है। पोटेशियम धमनियों के प्रेशर को कम करने के साथ रक्तचाप को कम करता है। मैग्नीशियम रक्त संचालन को प्रोत्साहित करता है। इसका अधिक सेवन यूरिक एसिड को बढ़ाता है। लाल मसूर

    लाल मसूर के अंदर विटामिन ए, विटामिन के, विटामिन सी, विटामिन बी आदि विटामिन पाए जाते हैं। वहीं इसके अंदर फाइबर के अलावा घुलनशील फाइबर और अघुलनशील फाइबर दोनों मौजूद हैं। पोटेशियम, फास्फोरस, मैग्निशियम, लोहा, कैल्शियम, तांबे आदि खनिज से भरपूर इस दाल में एंटीआक्सीडीन मौजूद हैं। इसके अंदर पाए जाने वाला मैग्नीशियम हृदय के स्वास्थ्य के लिए बेहद उपयोगी है। घुलनशील फाइबर कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मददगार है। इसके सेवन से पाचन क्रिया में सुधार होता है।

    क्या रखें सावधानी : इसके अधिक सेवन से किडनी की समस्या पैदा हो जाती है। ऐसे में इसके अधिक सेवन से बचें।

    ----------------- झारखंड में खाई जाने वाली दाल

    मूंग

    मसूर

    अरहर

    कुरथी

    उड़द

    काला चना

    मटर

    काबुली चना

    सोयाबीन

    राजमा

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    कोट

    दाल शरीर के लिए बड़ा फायदेमंद है। शरीर में प्रोटीन के साथ अन्य खनीजों की मात्रा इससे मिलती है। हालांकि दाल का प्रयोग सीमित करें। दाल शरीर को फायदा पहुंचाने के साथ कुछ हद तक नुकसान भी पहुंचा सकती है। हालांकि रोज के खाने में इसका सीमित इस्तेमाल जरूर करें।

    - डा. केके कदम, पूर्व सीएमओ, एचईसी प्लांट अस्पताल

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    दाल हमारे स्वास्थ्य के लिए कितना जरूरी..

    कम होता है वसा

    मीट के मुकाबले सात गुना वसा कम होता है..

    प्रोटीन से भरा

    बार्ली के मुकाबले दालों में प्रोटीन दोगुना होता है।

    फाइबर रीच दाल

    ब्राउन राइस से चार गुना अधिक फाइबर दालों में होता है।

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    ये होगा लाभ

    ब्लड कोलोस्ट्राल लेवल घटा रहेगा।

    शरीर का वजन कम होगा।

    फाइबर की मात्रा बढ़ेगी।

    हृदय की बीमारियां कम होंगी।

    हाइपरटेंशन से बचाव होगा।

    डायबिटीज और कुछ विशेष प्रकार के कैंसर (प्रकार 4) से भी बचाव होगा।

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