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    Champai Soren: न झामुमो न भाजपा! आखिर क्या है चंपई सोरेन का गेमप्लान, पढ़ें पूर्व CM की सियासत की इनसाइड स्टोरी

    Updated: Thu, 22 Aug 2024 01:55 PM (IST)

    Jharkhand Politics चंपाई सोरेन राजनीति से सन्यास नहीं लेने का एलान किया है। लेकिन वह अपने नए सियासी सफर के लिए कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहते हैं। दिल्ली दौरे से राज्य की सियासत का पारा हाई करने वाले चंपाई सोरेन अब नई पार्टी बना सकते हैं। लेकिन वह अभी जनता की नब्ज टटोल रहे हैं। आइए जानते हैं चंपाई सोरेन के नए सियासी सफर की पूरी इनसाइड स्टोरी।

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    समर्थकों के बीच जाकर अपने प्रभाव का आकलन करने में जुटे चंपाई।

    राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड में सत्तारूढ़ झामुमो से बगावत कर अपनी अलग राजनीतिक राह तैयार करने में जुटे पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन सधे कदमों से आगे बढ़ रहे हैं। यही वजह है कि वह धीरे-धीरे अपने पत्ते भी खोल रहे हैं।

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    पहले उन्होंने अपनी गतिविधियों से राजनीतिक गलियारे में हलचल पैदा की। नई दिल्ली प्रवास के दौरान उन्होंने लिखित बयान जारी कर एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की।

    तीसरे विकल्प पर आगे बढ़े चंपाई

    उन्होंने पार्टी में अपने साथ हुए व्यवहार को अपमानजनक करार देते हुए उन परिस्थितियों का उल्लेख किया, जो वह उनके समक्ष पैदा हुई। तीन विकल्प उन्होंने गिनाए, जिसमें पहला राजनीति से संन्यास, दूसरा अपना दल बनाने और तीसरा किसी नए साथी को चुनने का था।

    दिल्ली से जब उनकी वापसी हुई तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि पहला विकल्प अब समाप्त हो चुका है। यानि वे अब राजनीति से संन्यास नहीं लेंगे। इसके साथ ही उन्होंने समर्थकों का जुटान कर दूसरे और तीसरे विकल्प पर बातें आगे बढ़ाई है।

    इस कवायद से वे अपने प्रति अधिकाधिक सहानुभूति जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। वे यह खूब जानते हैं कि क्षेत्रीय दल झामुमो की खूबी और खामी क्या है। आदिवासियों में इस दल की गहरी पैठ का भी इन्हें अंदाजा है। यही वजह है कि समर्थकों के बीच जाकर वे अपने प्रभाव का आकलन करने में जुटे हैं।

    भाजपा की रणनीति, साथ खड़े हैं प्रमुख नेता

    भाजपा की रणनीति चंपई सोरेन को साथ लेकर झामुमो के जनाधार में सेंधमारी करने की है। चंपई के प्रभाव क्षेत्र वाले कोल्हान के लिए यह महत्वपूर्ण इस मायने में भी है कि इस प्रमंडल की 14 विधानसभा सीटों पर 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का खाता नहीं खुल पाया था।

    चंपई सोरेन के आने से इस परिस्थिति में बदलाव की आस पार्टी को है। यही वजह है कि पद से हटाए जाने के साथ ही भाजपा के वैसे नेताओं ने भी इनके साथ एकजुटता दिखाई जो इनकी सरकार को हेमंत सोरेन-पार्ट दो करार दे रहे थे।

    भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के अलावा विधानसभा चुनाव के मद्देनजर प्रभारी बनाए गए शिवराज सिंह चौहान और हिमंत बिस्वा सरमा की सहमति के बगैर रणनीति में ऐसा बदलाव संभव नहीं था।

    भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी साथ खड़े हुए। अलग-अलग अवधि में तीन बार राज्य के सीएम रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने भी चंपई सोरेन को लेकर पूरी तरह उत्साह दिखाया, तो इसकी वजह यही है कि चंपई सोरेन को साथ लेने से भाजपा की राज्य में सत्ता में वापसी की राह आसान दिख रही है।

    फिलहाल कोई विधायक साथ नहीं, सभाओं में उमड़ रही भारी भीड़

    चंपई सोरेन ने जब दिल्ली की राह पकड़ी थी तो उनके साथ कम से कम चार विधायकों के रहने की संभावना जताई गई थी। अब यह स्पष्ट हो गया है कि अभी कोई विधायक उनका साथ देने को आगे नहीं आ रहा है।

    इन विधायकों ने हेमंत सोरेन के साथ मुलाकात में अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। हालांकि, राजनीति में कुछ भी असंभव है।

    फिलहाल, चंपई सोरेन अपने प्रभाव वाले इलाकों में लगातार जनसभाएं और बैठकें कर रहे हैं। उन्हें देखने-सुनने भारी भीड़ भी जुट रही है, जिससे चंपई सोरेन के रणनीतिकार भी उत्साहित हैं।

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