शहीद CRPF जवान की विधवा को 25 साल बाद मिला न्याय, केंद्र पर जुर्माना
रांची हाई कोर्ट ने पेंशन मामले में केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए शहीद सीआरपीएफ अधिकारी की विधवा को 25 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ने पर मजबूर करने के लिए दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया। अदालत ने लिबरलाइज्ड पेंशनरी अवार्ड (एलपीए) योजना का लाभ देने का आदेश दिया और केंद्र की अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने इसे कानून का दुरुपयोग बताया।

शहीद सीआरपीएफ अधिकारी की विधवा ने न्याय के लिए 25 वर्षों तक अदालतों का चक्कर लगाया।
राज्य ब्यूरो,रांची। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की अदालत ने पेंशन से संबंधित एक मामले में सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और सीआरपीएफ अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई है।
अदालत ने कहा कि उन्होंने एक गरीब विधवा से न्याय की लड़ाई युद्ध की तरह लड़ी और उसे 25 वर्षों तक अदालतों के चक्कर लगाने पर मजबूर किया।
अदालत ने केंद्र सरकार पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए शहीद अधिकारी की पत्नी बिंदेश्वरी मिश्रा को लिबरलाइज्ड पेंशनरी अवार्ड (एलपीए) योजना का लाभ देने का आदेश दिया है।
अदालत ने एकल पीठ के आदेश को सही माना और केंद्र की अपील को खारिज कर दिया। अदालत ने जुर्माने की दो लाख की राशि भी 90 दिनों में प्रार्थी को देने का निर्देश दिया है।
हाई कोर्ट ने कहा कि यह मामला पहले ही निपट चुका था। सीआरपीएफ द्वारा बार-बार एक ही मुद्दे पर कोर्ट में याचिका दाखिल
करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों को कानून के दायरे में रहकर निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से काम करना चाहिए, न कि एक लड़ाकू मुवक्किल की तरह व्यवहार करना चाहिए।
अदालत ने कहा कि सीआरपीएफ के अधिकारियों को अपनी गलती स्वीकार कर लेनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने अड़ियल रवैया अपनाया और एक असमान लड़ाई लड़ी, जहां एक तरफ तो एक सार्वजनिक संस्थान था और दूसरी तरफ एक निजी व्यक्ति।
प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता समावेश भंजदेव ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि सीआरपीएफ के डिप्टी एसपी (कंपनी कमांडर) कैप्टन रवींद्र नाथ मिश्रा की चार मार्च 1995 को असम के अमगुड़ी में ड्यूटी के दौरान अपने ही कैंप में एक कांस्टेबल ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
इसके बाद उनकी पत्नी को 1996 में मात्र 470 रुपये मासिक पारिवारिक पेंशन दी गई। बिंदेश्वरी मिश्रा ने यह कहते हुए इस पेंशन पर आपत्ति जताई कि उनके पति की शहादत ड्यूटी के दौरान हुई थी, इसलिए उन्हें एलपीए योजना का लाभ मिलना चाहिए।
जब अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की तो उन्होंने 1999 में पटना हाई कोर्ट (रांची बेंच) में याचिका दाखिल की। अदालत ने 2000 में सीआरपीएफ डीजी को मामला निपटाने का आदेश दिया, लेकिन कोर्ट के आदेश पर अमल नहीं हुआ।
इसके बाद उन्होंने 25 साल तक लगातार न्याय के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी। वर्ष 2008 में एकल पीठ ने उन्हें एलपीए योजना का लाभ देने का आदेश दिया था, जिसे 2010 में डिवीजन बेंच ने भी सही ठहराया।
इसके बावजूद केंद्र सरकार और सीआरपीएफ ने आदेश नहीं माना और 2011 में फिर पेंशन देने से इन्कार कर दिया। इसके खिलाफ प्रार्थी फिर कोर्ट गई।
2024 में एकल पीठ ने सरकार के रवैये को मनमाना और अमानवीय बताते हुए विधवा के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके खिलाफ केंद्र सरकार अपील में गई। अपील पर सुनवाई के बाद खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश को बरकरार रखते हुए दो लाख का जुर्माना लगाया है।
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