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    Jharkhand High Court: विधवा और उसके बच्चे ससुराल वालों से भरण-पोषण पाने के हकदार

    Updated: Fri, 04 Jul 2025 07:54 PM (IST)

    झारखंड हाई कोर्ट ने भरण-पोषण को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कहा कि विधवा बहू और उसके नाबालिग बच्चे अपने ससुर और देवर से भरण- पोषण का दावा करने के हकदार हैं बशर्ते कि वह स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हो और ससुराल वालों के पास पैतृक संपत्ति हो।

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    झारखंड हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बहाल रखा।

    राज्य ब्यूरो, जागरण. रांची । Jharkhand High Court झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एसएन प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की खंडपीठ ने भरण-पोषण को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि विधवा बहू और उसके नाबालिग बच्चे अपने ससुर और देवर से भरण- पोषण का दावा करने के हकदार हैं, बशर्ते कि वह स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हो और ससुराल वालों के पास पैतृक संपत्ति हो।

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    अदालत ने ससुर और देवर की अपील याचिका खारिज कर दी। ससुर और देवर ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दाखिल की थी जिसमें विधवा को 3000 रुपये और उसके दो नाबालिग बच्चों को 1000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था।

    अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि फैमिली कोर्ट ने प्रत्येक दस्तावेज और दोनों पक्षकारों के गवाहों की गवाही को देखा है। याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादियों के बीच कृषि भूमि का बंटवारा नहीं हुआ है। कृषि भूमि में विधवा के पति का हिस्सा भी अपीलकर्ताओं के कब्जे में है, लेकिन याचिकाकर्ता को भरण-पोषण नहीं दिया जा रहा है।

    हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम 1956 की धारा-19 और 22 के आधार पर याचिकाकर्ता प्रतिवादियों से भरण-पोषण पाने के हकदार हैं। भरण- पोषण का दावा करने वाली विधवा और उसके बच्चे अपने वैवाहिक घर से निकाले जाने के बाद अपना मायका व ननिहाल  में रह रहे हैं।

    निचली कोर्ट ने पाया कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। प्रतिवादियों के पास संयुक्त कृषि भूमि है, जिसका बंटवारा नहीं हुआ है। प्रतिवादी विधवा और उसके बच्चों का भरण-पोषण नहीं कर रहे थे, जबकि उनके पास ऐसा करने के साधन हैं।

    अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि विधवा को एलआइसी की आय प्राप्त हुई है। वह याचिकाकर्ताओं को वैवाहिक घर में रहने की अनुमति देने के लिए तैयार हैं। उन्होंने अधिनियम की धारा 19 और 22 के प्रविधान को भी चुनौती दी, जिसमें कहा गया कि फैमिली कोर्ट ने प्रविधानों की गलत व्याख्या की थी।

    हाई कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि विधवा ने स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थता साबित की और अन्य वैधानिक शर्तें पूरी कर रही है। विधवा ने साबित किया कि वह अपनी कमाई या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है। निचली अदालत का आदेश सही है।