Eid-Ul-Azha: जानिए, कौन हैं हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम... मुसलमान क्यों मनाते हैं हर साल बकरीद... हज करने क्यों जाते हैं मक्का
Eid-Ul-Adha दुनिया भर के मुसलमान हर साल हज करने के लिए मक्का जाते हैं। यहां खाना-ए-काबा देखते हैं। अल्लाह की इबादत करते हैं। यही नहीं हर साल कुर्बानी भी करते हैं। आखिर ऐसा क्यों करते हैं। यह कहानी हजरत इब्राहिम से संबंधित है। आइए डालते हैं एक नजर।

रांची, डिजिटल डेस्क। दुनिया भर के मुसलमान जिस इस्लाम धर्म को मानते हैं, उसमें अल्लाह ने एक लाख 24 हजार पैगंबर भेजा है। सबसे आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब हैं। इन्हीं पैगंबरों की सूची में एक नाम आता है- हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम का। अल्लाह ने जो कुरआन अवतरित किया है, उसकी 14वीं सूरत सूरह इब्राहीम है। इस पवित्र धर्मग्रंथ में हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम का नाम बार-बार आता है। न सिर्फ मुसलमान बल्कि यहूदी व ईसाई भी हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को अपना पैगंबर मानते हैं। हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने तत्कालीन समाज में एक खुदा का संदेश दिया था। लोगों से एक खुदा पर यकीन लाने की सलाह दी थी।
इराक में हुआ हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम का जन्म
हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम का जन्म करीब 4 हजार वर्ष पूर्व इराके में हुआ था। जब उन्होंने इराके के बादशाह को एक खुदा मानने की सलाह दी तो उसने उन्हें आग में जलाकर मारने की कोशिश की। लेकिन वह आगे में नहीं जल पाए। इसके बाद बादशाह ने उन्हें अपने देश से निकाल दिया। वह इराके छोड़कर सीरिया चले गए। वहां से वह फिलस्तीन चले गए। कहा जाता है कि इसी दौरान वह अपनी पत्नी हजरत सारा के साथ मिस्र देश चले गए। मिस्र के बादशाह ने अपनी पत्नी हजरत हाजरा को उनकी पत्नी हजरत सारा की खिदमत में पेश किया। तब तक हजरत सारा मां नहीं बनी थी। उन्हें कोई औलाद नहीं था। मिस्र देश से हजरत इब्राहिम पुन: फिलिस्तीन लौट आए। इसी बीच उनकी पत्नी सारा ने हजरत इब्राहिम से कहा कि आप हाजरा से निकाह कर लीजिए। उस समय हजरत इब्राहिम की उम्र करीब 80 साल थी। खैर, सारा के कहने पर उन्होंने निकाह कर लिया और दूसरी पत्नी से एक पुत्र हुआ। नाम रखा- हजरत इस्माइल। कुछ समय बाद सारा ने भी एक बच्चे को जन्म दिया। उनका नाम रखा गया- हजरत इस्हाक।
दूसरी पत्नी और पुत्र को मक्का में छोड़कर चले गए
कहा जाता है कि अल्लाह का हुक्म हुआ तो हजरत इब्राहिम अपनी दूसरी पत्नी और पुत्र को मक्का में छोड़कर चले गए। जिस जगह पर हजरत हाजरा और इस्माइल को छोड़कर गए वहां की जमीन बेजान थी। दूर दूर तक पानी था और न ही हरियाली। रेगिस्तान में मां और बेटे पानी और भोजन के लिए भटकते रहे। हजरत हाजरा अपने बेटे इस्माल का प्यास बुझाने के लिए उन्हें एक जगह छोड़कर दूर दूर भटकती रहीं। लेकिन कहीं पानी का एक बूंद नहीं मिला। इधर, प्यास से तड़प रहे हजरत इस्माइल एड़िया रगड़ रगड़ कर रो रहे थे। कहा जाता है कि जिस जगह वह एड़िया रगड़ रहे थे, वहां पानी का एक स्रोत फूट पड़ा। हजरत हाजरा ने देखा तो अल्लाह का शुक्रिया अदा किया। उसी पानी से बेटे की प्यास बुझाई।
इस तरह आबाद हो गया मक्का शहर
एक दिन उसी रास्ते से कुछ व्यापारी गुजर रहे थे। उन्होंने पानी देखा तो वहां पड़ाव डाल दिया। हजरत हाजरा ने भी उन्हें रुकने की इजाजत दे दी। इससे उनके खाने-पीने का प्रबंध आसान हो गया। धीरे धीरे यह जगह आबाद होने लगा। देखते ही देखते बस्ती आबाद हो गई। जिस जगह पानी का स्रोत फूटा उसे ही आब-ए-जमजम नाम दिया गया। यह आज भी मौजूद है। इस जगह का पानी पीना हर मुसलमान का सपना होता है। यहीं पर खान-ए-काबा आबाद हुआ। यहां अब भी लोग हर साल हज करने जाते हैं।
पुत्र को अल्लाह की राह में करने लगे कुर्बान
बहरहाल, एक दिन की बात है कि अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को स्वप्न में कहा कि तुम अपने अजीज चीज को मेरे रास्ते में कुर्बान कर दो। हजरत इब्राहिम ने यह बात अपने पुत्र इस्माइल से कही। इस्माइल ने कहा- अब्बा जान एक पिता के लिए उसका पुत्र ही सबसे अजीज होता है। आप मुझे अल्लाह की राह में कुर्बान कर दीजिए। इस्माइल ने यह भी कहा कि आप अपनी आंखों पर काली पट्टी बांध लीजिए, ताकि कुर्बानी करते समय आपका हाथ नहीं कांपे। हजरत इब्राहिम ने ऐसा ही किया। इस्माइल लेट गए। चाकू हजरत इब्राहिम के हाथों में थी। जैसे ही उन्होंने बेटे की गर्दन पर चाकू रखा। अल्लाह ने कहा कि ऐ इब्राहिम तुमने सपने को सच कर दिखाया। तुम मेरे नेक बंदे हो। तुम्हारी कुर्बानी कुबूल हुई। अल्लाह का हुक्म हुआ और जीब्रिल अलैहिस्सलाम ने इस्माइल की जगह एक दुम्बा लिटा दिया। चाकू इस्माइल के बदले दुम्बा के गर्दन पर चली। जब इब्राहिम ने देखा तो दंग रह गए। इसी वाक्ये के बाद से इस्लाम धर्म में कुर्बानी की परंपरा शुरू हो गई।
अल्लाह के आदेश पर पिता व पुत्र ने बनाया काबा
इसके बाद अल्लाह ने हजरत इब्राहीम को आदेश दिया कि तुम इस जगह पर एक घर बनाओ। पिता पुत्र ने मिलकर यहां एक घर बनाया। आगे चलकर यही घर खाना-ए-काबा कहलाया। अल्लाह के हुक्म से इब्राहिम ने ऐलान किया कि यह अल्लाह का घर है। इसे देखने आओ। आज भी दुनिया भर से मुसलमान इस घर को देखने के लिए पहुंचते हैं। इसे ही हज कहा जाता है।
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