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    Water Crisis: झारखंड में पेयजल की बड़ी समस्या, सरकार उठाने जा रही ये बड़ा कदम, रांची में इन कारणों से होती है दूषित पानी की आपूर्ति

    By Sanjay KumarEdited By:
    Updated: Fri, 22 Apr 2022 09:10 AM (IST)

    Water Crisis in Jharkhand झारखंड में पेयजल की बड़ी समस्या को देखते हुए सरकार बड़े डैम की जगह बराज छोटे चेकडैम तालाबों निर्माण पर फोकस कर रही है। रांची पेयजल सचिव ने राजधानी रांची में हो रही दूषित पेयजल आपूर्ति को स्वीकारा है। क्यों होती है ये अपूर्ति कारण जानें...

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    Water Crisis in Jharkhand: झारखंड में पेयजल की समस्या

    रांची, राज्य ब्यूरो। Water Crisis in Jharkhand झारखंड में पेयजल आपूर्ति के साथ-साथ सतही और भू-गर्भ जल स्तर को बनाए रखने के लिए राज्य सरकार बड़े डैम की जगह बराज, छोटे चेकडैम, तालाबों पर फोकस कर रही है। पेयजल एवं जल संसाधन सचिव प्रशांत कुमार ने वर्तमान परिस्थिति में नए डैम के निर्माण को बड़ी चुनौती बताया है। इससे जुड़ी बाधाओं और प्रासंगिकता का जिक्र करते हुए कहा कि यह अधिक खर्चीला है, जमीन की भी बाधा है। इनकी जगह बराज, छोटे चेकडैम और तालाब का निर्माण पर जोर दिया जा रहा है। यह जल स्तर बढ़ाने में भी सहायक है। पेयजल एवं जल संसाधन सचिव गुरुवार को नेपाल हाउस सचिवालय में मीडिया से बातचीत कर रहे थे। इस मौके पर उन्होंने गर्मी के दौरान पेयजल संकट से निजात दिलाने के लिए विभाग के स्तर से किए जा रहे प्रयासों को साझा किया। पेयजल से जुड़ी शिकायतों के त्वरित समाधान, हैंडपंप की मरम्मत के साथ-साथ जल जीवन मिशन के तहत किए जा रहे कार्यों की चर्चा की।

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    भू-गर्भ जल फिक्स डिपाजिट, बचाकर चलना होगा

    पेयजल सचिव प्रशांत कुमार ने भू-गर्भ जल को फिक्स डिपाजिट बताया है। उन्होंने कहा कि यह सीमित मात्रा में मौजूद है, इसीलिए जल जीवन मिशन की ज्यादातर योजनाएं सतही जलापूर्ति पर आधारित हैं। जहां सतही जल का स्रोत नहीं है सिर्फ वहीं भू-गर्भ जल का इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि 65 प्रतिशत योजनाएं सरफेस वाटर पर आधारित हैं, जबकि 35 प्रतिशत भू-गर्भ जल पर। भू-गर्भ में पानी चट्टानों के बीच में रिस-रिस का बरसों में पहुंचता है।

    सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड का सर्वे डायनेमिक वाटर पर आधारित

    प्रशांत कुमार ने सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट से जुड़े सवाल पर कहा कि उनका सर्वे डायनेमिक वाटर सोर्स पर आधारित है। बताया कि ग्रांउड वाटर दो तरह से जमीन के अंदर पाया जाता है। एक डायनेमिक और दूसरा स्टेटिक। डायनेमिक वह वाटर सोर्स होता है जो पत्थर के ऊपर मिट्टी की लेयर में मौजूद पानी को दर्शाता है। यह सर्वे ज्यादातर इस्तेमाल किए जा रहे कुएं पर आधारित होता है। जबकि स्टेटिक वाटर कितना मौजूदा है, इसका कभी सर्वे ही नहीं किया गया। यह वह पानी होता है जो पत्थर की चट्टानों के बीच जमा होता है। हमने ग्राउंट वाटर बोर्ड से अनुरोध किया है कि वे इसका सर्वे करें। हालांकि यह मुश्किल होता है, सेटेलाइट के माध्यम से भी इस रिजर्व का आकलन मुश्किल है। झारखंड में हम स्टेटिक वाटर पर अधिक निर्भर हैं।

    वर्ष 2024 तक हासिल करेंगे हर घर नल जल से पानी पहुंचाने का लक्ष्य

    पेयजल सचिव ने जल जीवन मिशन के तहत किए जा रहे कार्यों व भावी लक्ष्य को भी साझा किया। उन्होंने बताया कि वर्ष 2024 तक झारखंड के कुल 59.23 लाख परिवारों को क्रियाशील नल जल कनेक्शन प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है। यह योजना 2019 में जब शुरू हुई थी तब 3.45 लाख घरों तक नल से जल पहुंचाया गया था। इसका दायरा 31 मार्च तक 2022 बढ़कर 11.60 लाख से अधिक ग्रामीण परिवारों तक पहुंच चुका है। स्पष्ट है कि 2024 तक 47.62 लाख घरों तक नल जल की आपूर्ति की जानी है। इसके तहत वर्ष 2022-23 में कुल 22 लाख परिवारों और 2023-24 में 25.62 लाख से अधिक घरों को क्रियाशील नल से आच्छादित करना है।

    पेयजल समस्या के समाधान के लिए शुरू किया गया काल सेंटर

    पेयजल सचिव प्रशांत कुमार ने बताया कि गर्मी के दिनों में विशेषरूप से पेयजल की समस्या के समाधान के लिए काल सेंटर में टोल फ्री नंबर 18003456502 जारी किया गया है। लोग वा्टसएप नंबर 9470176901 या ईमेल कालसेंटरडब्ल्यूएसडी डाट झारखंड @ जीमेल डाट काम अथवा झारजल मोबाइल एप पर भी शिकायत दर्ज करा रहे हैं। इसका समाधान तत्काल करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि कल सेंटर में 21 अप्रैल तक 2326 शिकायतें आईं, इनमें 1502 का समाधान किया जा चुका है। वहीं, मीडिया के माध्यम से आई 178 शिकायतों में से 144 का समाधान किया जा चुका है।

    4.4 लाख हैंडपंप, 88 प्रतिशत चालू हालत में

    विभागीय सचिव ने बताया कि गर्मी के दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल का प्रमुख स्रोत हैंडपंप ही होता है। राज्य में 4.40 लाख से अधिक हैंडपंप हैं। इनमें 88.37 प्रतिशत चालू हालत में हैं। गर्मी के दिनों में युद्धस्तर पर हैंडपंप की मरम्मत की जा रही है। अप्रैल माह में ही 16,764 हैंपपंप की मरम्मत की गई है।

    राज्य में आर्सेनिक-फ्लोराइड प्रभावित हैं 73 टोले, पलामू-गढ़वा में अधिक

    पेयजल सचिव ने स्वीकारा कि पलामू में गुणवत्तापूर्ण जल की आपूर्ति चैलेंज हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में कुल 73 आर्सेनिक-फ्लोराइड प्रभावित टोले हैं, इनमें सबसे अधिक पलामू व गढ़वा में हैं। वहां ट्रीटमेंट प्लांट लगा जलापूर्ति मुहैया कराई जा रही है। लेकिन स्थायी समाधान के सरफेस वाटर सप्लाई योजनाओं पर जोर दिया जा रहा है।

    रांची में दूषित पेयजल आपूर्ति का बड़ा कारण अवैध कनेक्शन

    रांची पेयजल सचिव प्रशांत कुमार ने राजधानी रांची में हो रही दूषित पेयजल आपूर्ति को कुछ हद तक स्वीकारा है। उन्होंने इसका बड़ा कारण अवैध वाटर कनेक्शन को बताया। यह भी स्वीकारा कि दो ट्रीटमेंट इंटकवेल में एल्गी (शैवाल) का अधिक मात्रा में होना भी एक बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा कि एक सीमा तक कैमिकल के इस्तेमाल से इसे दूर किया जा रहा है। जरूरत से ज्यादा कैमिकल का इस्तेमाल हानिकारक है, इसलिए इससे परहेज किया जाता है। यही कारण है कि वाटर कलर की समस्या आ रही है। यह भी बताया कि उनके घर में होने वाली पेयजल आपूर्ति में भी कलर की समस्या आ रही है। पेयजल सचिव ने कहा कि रांची में कई जगहों पर सीवर का गंदा पानी की आपूर्ति की भी शिकायत आती है। ऐसा अवैध कनेक्शन के कारण होता है। लोग कहीं से भी पाइप लाइन को काट देते हैं, जिससे लीकेज होता है और इसी की वजह से दूषित पानी लोगों के घरों में जाने लगता है। यदि लोगों का सहयोग नहीं मिलेगा तो ऐसी समस्या का जल्द समाधान संभव नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि रांची में हाउस वाटर कनेक्शन नगर निगम की जिम्मेदारी है। सचिव ने बताया कि पानी के नमूनों की निरंतर जांच की जा रही है।

    शहरी क्षेत्र में नहीं होगी पेयजल की समस्या, डैम में पर्याप्त पानी

    पेयजल सचिव ने गर्मी के दिनों में शहरी क्षेत्रों में पेयजल की समस्या होने से इन्कार किया है। उन्होंने कहा कि डैम में पर्याप्त पानी है। इस मौके पर उन्होंने रांची के दो प्रमुख डैम हटिया और रूक्का की क्षमता का भी जिक्र किया। कहा, हटिया डैम की क्षमता 20 एमसीएम है जबकि रुक्का की 180 एमसीएम। राची शहर में अधिकांश आपूर्ति रूक्का से होती है। हटिया डैम के गहरीकरण की जरुरत से उन्होंने इन्कार किया। कहा, यह डैम पांच साल में कभी एक बार अपनी अपनी क्षमता के अनुरूप भरता है। औसतन 12 एमसीएम तक ही भरता है, आठ एमसीएम खाली रह जाता है। 1955 में जब इस डैम को बनाया गया था तब इसकी यील्ड 16 एमसीएम आंकी गई थी लेकिन रशियन ने इसे 20 एमसीएम का डिजायन किया था।

    डैम गहरा करने की जरूरत नहीं

    पेयजल सचिव ने हटिया डैम के गहरीकरण की जरूरत से इन्कार किया है। उन्होंने कहा कि इस डैम की क्षमता 20 एमसीएम है। औसतन पांच साल में ही यह अपनी क्षमता

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