उपराष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग... निशाने पर झारखंड के राज्यसभा सांसद, भाजपा में बढ़ा उत्साह
उपराष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग के चलते झारखंड के एक राज्यसभा सदस्य संदेह के घेरे में हैं। विपक्षी गठबंधन के प्रत्याशी को वोट न देकर उन्होंने एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया। इस घटना से विपक्षी दलों में खलबली है और भाजपा खेमे में उत्साह है। पिछले साल भी झामुमो को सीता सोरेन और चंपई सोरेन के भाजपा में शामिल होने से झटका लगा था।

राज्य ब्यूरो, रांची। उपराष्ट्रपति पद के लिए हुए हालिया चुनाव में क्रॉस वोटिंग को लेकर झारखंड से एक राज्यसभा सदस्य की निष्ठा संदेह के घेरे में आ गई है। विपक्षी गठबंधन के प्रत्याशी को वोट देने के निर्देश के बावजूद उक्त राज्यसभा सदस्य ने एनडीए प्रत्याशी सीपी राधाकृष्णन को वोट दिया, जबकि विपक्ष के साझा प्रत्याशी बी सुदर्शन रेड्डी चुनाव में समर्थन के लिए रांची आए थे।
यहां मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में गठबंधन के घटक दलों ने उन्हें समर्थन की घोषणा की थी, लेकिन उपराष्ट्रपति पद के लिए मतदान के बाद आए परिणाम से गठबंधन के शीर्ष नेता सकते में हैं। एनडीए को इस चुनाव में अपेक्षा से लगभग 15 वोट ज्यादा पड़े। झारखंड से एक राज्यसभा सदस्य भी इसी कतार में हैं।
उपराष्ट्रपति पद के मतदान के दौरान प्रतिनियुक्त कांग्रेस के एक पर्यवेक्षक ने बताया कि गठबंधन में शामिल छोटे सात-आठ दलों ने निर्णय के विपरीत वोट दिए हैं, लेकिन यह श्योर नहीं कहा जा सकता है कि इसमें कौन व्यक्ति शामिल था, जबतक वह खुद सामने नहीं आ जाता।
हालांकि, पार्टी को इससे अवगत करा दिया गया है। इससे संबंधित आपत्ति प्रकट की जा सकती है। ऐसे में उक्त राज्यसभा सदस्य की मुसीबत बढ़ सकती है।
भाजपा खेमे में भितरखाने उत्साह
बताया जाता है कि अतिमहत्वाकांक्षा में उक्त राज्यसभा सदस्य ने भाजपा से संपर्क बढ़ाया है। इससे आईएनडीआईए नेताओं के कान खड़े हो गए हैं, वहीं भाजपा खेमे में भितरखाने उत्साह बढ़ा है। इससे राज्य के एक प्रभावी भाजपा सांसद का अपने दल के भीतर कद और बढ़ा है।
अपनी इस उपलब्धि के जरिए उन्होंने आलाकमान तक यह संदेश देने में कामयाबी पाई है कि उन्हें अगर फ्री हैंड दिया जाए तो वे झारखंड में कमाल दिखा सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) से सीता सोरेन और चंपई सोरेन ने भाजपा में जाकर झटका दिया था। लोकसभा चुनाव के दौरान झामुमो को उस वक्त तगड़ा झटका लगा था, जब सीता सोरेन ने भाजपा का दामन थाम लिया था।
उस वक्त हेमंत सोरेन ईडी की कार्रवाई की वजह से जेल में थे। जेल से रिहाई के बाद अपमान का बहाना बनाकर चंपई सोरेन ने पार्टी छोड़ दी थी। बताया जाता है कि चंपई सोरेन की गतिविधियों का अंदाज समय रहते झामुमो के शीर्ष नेतृत्व को लग गया था।
इससे पहले कि वे ज्यादा नुकसान कर पाते, उन्हें पद से हटाया गया। यही वजह है कि चंपई सोरेन के प्रभाव में झामुमो का कोई तत्कालीन विधायक नहीं आया और वे अकेले पड़ गए।
हालांकि, चंपई सोरेन और सीता सोरेन चुनावों में कुछ खास करामात नहीं दिखा पाए, लेकिन उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान के ट्रेंड ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि निर्णय के विपरीत जाकर कार्य करने वाले नेता की अतिमहत्वाकांक्षा से पार्टी को फिर से नुकसान पहुंच सकता है।
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