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    Durga Puja Special: यहां मां दुर्गा के कुंवारी स्‍वरूप की होती है पूजा, पहाड़ पर घुटनों पर चलकर पहुंचते हैं भक्त

    By Sujeet Kumar SumanEdited By:
    Updated: Tue, 12 Oct 2021 07:58 AM (IST)

    Chanchalini Dham Jharkhand News कोडरमा जिले के मरकच्‍चो में करीब चार सौ फीट ऊंची चंचल पहाड़ी पर चंचालिनी धाम है। 1956 में राजमाता सोनामति देवी ने यहां कच्चा रास्ता बनवाया था। यहां मां दुर्गा पर सिंदूर नहीं चढ़ता है।

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    Chanchalini Dham, Durga Puja Special, Koderma News, Jharkhand News 1956 में राजमाता सोनामति देवी ने यहां कच्चा रास्ता बनवाया था।

    मरकच्चो (कोडरमा), [प्रदीप कुमार सिन्हा]। नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। कोडरमा जिले में एक ऐसा मंदिर है, जहां उनके दसवें स्वरूप की पूजा होती है। जंगल के बीच पहाड़ी पर बने मंदिर में मां दुर्गा के कुंवारी स्वरूप की पूजा होती है। यहां सिंदूर का प्रयोग वर्जित है। जिला मुख्यालय से 37 किलोमीटर दूर चंचल पहाड़ी पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित है। यहां भक्तों की भारी भीड़ जुटती है और भक्तों को मां दुर्गा के साक्षात दर्शन का अनुभव होता है। बीहड़ जंगल के बीच करीब 400 फीट ऊंची पहाड़ी पर लोग पहुंचते हैं।

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    मंदिर गुफा में है। इसके लिए करीब पांच मीटर तक घुटनों पर चलकर भक्त पहुंचते हैं। 20वीं सदी के नौवें दशक में लोग इस बीहड़ जंगल में प्रवेश करने से भी डरते थे, लेकिन मां चंचालिनी में आस्था के कारण लोग यहां खींचे चले आते हैं। श्रद्धालु कोडरमा गिरिडीह मुख्य मार्ग के कानीकेंद मोड़ से सात किलोमीटर की दूरी पर घने बीहड़ जंगलों में चलकर मां चंचालिनी धाम पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं व मन्नत मांगते हैं। 1956 में झरिया की राजमाता सोनामती देवी चंचालनी धाम में माता के दर्शन के लिए पहुंची थी।

    इस दौरान उन्होंने पहाड़ के दुर्गम स्थानों पर लोहे की दो भारी-भरकम सीढ़ियां लगवाईं। कुछ साल पहले मुख्य मार्ग से चंचल पहाड़ी तक पक्की सड़क बनाई गई है। इसके पूर्व पेड़ व झाड़ियों को काटकर माता के धाम तक जाने के लिए प्रथम कच्ची पगडंडियों को बनाने का श्रेय सोनामती देवी को ही जाता है। जंगल के बीच काले चट्टानों के मध्य बीच पहाड़ पर मां विराजमान हैं। यहां से रास्ता थोड़ा संकीर्ण है और गुफा में प्रवेश करना पड़ता है। दीपक जलाने के लिए श्रद्धालुओं को घुटनों के बल रेंगकर गुफा में प्रवेश करना पड़ता है।

    पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर देवाधिदेव महादेव विराजमान हैं। ऊपर की चोटी पर पूजा के लिए भक्तों का यहां तक पहुंच पाना चुनौतीपूर्ण कार्य है। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं, यहां सैकड़ों वर्षों से लोग पूजा करते आ रहे हैं। सभी लोग उन्हें बड़की चंचाल मां के नाम से जानते हैं। वह बताते हैं, जो श्रद्धालु यहां शुद्ध मन से पूजा कर मनौती मांगते हैं, धरने पर बैठते हैं, उनकी मुराद पूरी होती है।

    स्थानीय लोग बताते हैं, झरिया के राजा काली प्रसाद सिंह को शादी के कई वर्षों तक संतान सुख नहीं मिल पाया थ। इस पर उन्होंने व उनकी पत्नी सोनामती देवी ने मां चंचाल से मन्नतें मांगी थी। इसके बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इसके बाद उन्होंने 1956 में मां के दरबार में पूजा की और कानीकेंद से माता के दरबार तक घने जंगलों के बीच सड़क नुमा पगडंडी बनवाई।

    साथ ही पहाड़ के दुर्गम रास्तों पर लोहे की दो भारी-भरकम सीढ़ी लगवाई। यहां मंगलवार व शनिवार को श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रहती है। यहां कई धर्मशाला, कुआं, प्रवेश द्वार, यज्ञशाला, पहाड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाें का निर्माण करवाया गया है। स्थानीय लोग बताते हैं कि जो लोग गलत उद्देश्य लेकर इस पहाड़ पर चढ़ते हैं, उन पर भंवरे हमला कर देते हैं। उन्हें डंक मार-मारकर लहूलुहान व बेहोश कर देते हैं।

    अरवा चावल व मिश्री से पूजा

    श्रद्धालु बिना अन्न जल ग्रहण किए ही पहाड़ पर चढ़ते हैं और माता की पूजा अरवा चावल और मिश्री से करते हैं। पूजा स्थल से हटकर दीपक जलाने वाली गुफा में ध्यान से देखने पर माता के सात रूप पत्थरों पर उभरे नजर आते हैं। क्षेत्र के नवजात बच्चों के चूड़ाकरण (मुंडन) संस्कार भी यहां होते हैं। यहां अन्य राज्यों बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड‍िशा, महाराष्ट्र से भी श्रद्धालु पूजा करने आते हैं।