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    पानी का नया सोर्स: झारखंड की 50 से ज़्यादा बंद कोयला खदानों का जल उपयोग योग्य

    Updated: Tue, 19 Aug 2025 12:26 PM (IST)

    झारखंड में 50 से ज़्यादा बंद पड़ी खुली कोयला खदानों के पानी को खेती उद्योग मछली पालन और पेयजल के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। सीएमपीडीआई के एक अध्ययन के अनुसार परित्यक्त खुले खदानों के जल से बदल सकती है झारखंड की तकदीर। इन खदानों में सालाना 1060 लाख किलोलीटर पानी उपलब्ध है। यह पानी मामूली उपचार के बाद उपयोग में लाया जा सकता है।

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    सीसीएल के एनके एरिया अंतर्गत बंद कोयला खदान करकट्टा ‘ए’ ब्लाक, जिसमें कालांतर में पानी भर गया है।

    जागरण संवाददाता, रांची। झारखंड में करीब पचास से अधिक बंद खुले कोल खदानों के जल का उपयोग उद्योग, जलापूर्ति, खेती किसानी में उपयोग किया जा सकता है। हालांकि कुछ बंद खदानों के जल का उपयोग मत्स्य पालन में हो रहा है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।

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    सीएमपीडीआई ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि झारखंड के कोल खदानों में 1060 लाख किलोलीटर वार्षिक जल की उपलब्धता है। हम इसका बेहतर उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। बीएयू के साथ हुए अध्ययन में पाया कि झारखंड में परित्यक्त खुली कोयला खदानों को जैविक खाद और उर्वरकों का उपयोग करके फाइटोप्लांकटन की वृद्धि को बढ़ावा देकर, हाइड्रिला जैसी जलीय वनस्पतियों को लगाकर और सबमर्सिबल पंप प्रणालियों का उपयोग कर कई काम में उपयोग किया जा सकता है।

    हम इसे पीने योग्य भी बना सकते हैं। एक ओर राज्य सरकार जहां नए-नए डैम, जलाशय के निर्माण पर जोर दे रही है, वहीं, वह इन खदानों के जल भंडार का उपयोग कर जल की कमी को पूरा कर सकती है।

    झारखंड में विभिन्न कोल कंपनियों के पचास से ऊपर खदान हैं। ये खदान पचास हेक्टेयर से लेकर तीन सौ हेक्टेयर में फैले हुए हैं। ये विशाल गहराई वाले हैं। हजारीबाग, खलारी, रामगढ़ आदि में बंद खदानों का उपयोग मछली पालन में किया जा रहा है।

    खलारी में खदान से पानी की सप्लाई 

    खलारी में सीसीएल के एनके एरिया अंतर्गत करकट्टा ‘ए’ ब्लाक के दूसरा पार्ट, नौ नंबर बंद खदान में पानी भर गया था और अभी डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन ट्रस्ट फंड से केज कल्चर विधि से ग्रामीण मछली पालन कर रहे हैं। यहां से मोटर पंप द्वारा सीसीएल के कालोनियों में पानी की सप्लाई भी की जा रही है।

    यह एक दो उदाहरण है, लेकिन राज्य सरकार इसका उपयोग कर सकती है। इस बार बेहतर बारिश से जलाशय भर गए हैं, लेकिन हर साल झारखंड जल संकट से जूझता है। भूमिगत जल तेजी से नीचे जा रहा है। खेती किसानी से लेकर पेयजल के लिए भी धरती के जल का दोहन कर रहे हैं।

    जबकि भूगर्भ फिक्स डिपाजिट है। यह सीमित मात्रा में मौजूद है। सीएमपीडीआई के अधिकारियों का मानना है कि राज्य सरकार इस जल भंडारण का उपयोग कर रही है। केंद्र व राज्य सरकार की कई योजनाएं जल की चल रही हैं। ऐसे में इन योजनाओं में इस बेकार पड़े जल भंडार का लाभ लोगों को दिया जा सकता है।

    मामूली उपचार से उपयोग हो सकता है जल

    झारखंड के खदानों का जल मामूली उपचार से पीने योग्य बनाया जा सकता है। जबकि पश्चिमी देशों में खदानों का पानी अम्लीय होता है। पर भारत की अधिकांश कोयला खदानों से निकलने वाला खदान जल तुलनात्मक रूप से अच्छी गुणवत्ता का है और मामूली उपचार के बाद घरेलू, औद्योगिक और कृषि उपयोग में किया जा सकता है। बोतलबंद पानी के उत्पादन के लिए भी यह उपयुक्त हो सकता है।

    सीएमपीडीआई के अध्ययन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) वर्गीकरण और भारतीय मानक ब्यूरो :10500 मानकों के आधार पर खदान जल की गुणवत्ता का मानकीकरण किया है।