Ramtirth Temple: भगवान राम ने स्थापित किया था शिवलिंग... बैतरणी नदी तट पर करें श्रीराम के पैरों का दर्शन... जानिए, रामतीर्थ मंदिर का इतिहास
Jharkhand Unique Temple झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले में बैतरणी नदी तट पर एक शानदार मंदिर है- रामतीर्थ रामेश्वर मंदिर। इस मंदिर के बारे में कई रोचक किस्से मशहूर हैं। यहां भगवान राम के पैरों के निशान मौजूद हैं। आप इन पैरों का दर्शन कर धन्य हो सकते हैं।

चाईबासा, (तपन कुमार सिंह)। झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। यह इलाका जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है। सारंडा के घने जंगल इस इलाके की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। इलाके में कई पहाड़ी नदियां इन दिनों मदमस्त बह रही हैं। इन नदियों को देखकर आप आनंद से भर उठेंगे। ऐसी ही एक नदी है- बैतरणी नदी। इस नदी तट पर एक मंदिर भी है। यह नदी और मंदिर दोनों ही आपको सम्मोहित कर लेंगे। अगर आप झारखंड की यात्रा पर हैं तो एक बार यहां जरूर आएं। यहां नदी के साथ-साथ भगवान राम के पैरों के निशान का भी आप दर्शन कर सकते हैं।
यहां भगवान राम ने शिवलिंग की स्थापना की है
इलाके में ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ जब 14 वर्षों के वनवास पर थे, तो समय यहां भी पहुंचे थे। तीनों ने बैतरणी नदी के इस तट पर आराम किया था। इसके बाद भगवान राम ने खुद अपने हाथाें से यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। भगवान राम ने इस शिवलिंग की पूजा की थी। कुछ दिनों तक यहां विश्राम करने के बाद भगवान राम नदी पार कर आगे की यात्रा पर निकल गए थे। कहा जाता है कि वे जाते समय अपना खड़ाऊं और पदचिह्र यहां छोड़ गए थे। कहा जाता है कि बहुत दिनों बाद पास के देव गांव के एक देवरी को स्वप्न आया। तब इस स्थान के बारे में पता चला। इसके बाद स्थानीय लोगों ने यहां मंदिर का स्वरूप दे दिया। ग्रामीण बताते हैं कि यहां मंदिर का निर्माण 1910 में कराया गया।
यहां आप एक साथ देख सकते हैं चार मंदिर
यह मंदिर पश्चिमी सिंहभूम जिले के जगन्नाथपुर प्रखंड में पड़ता है। यह रामतीर्थ के नाम से मशहूर है। अब यहां चार मंदिर मौजूद हैं। इनमें रामेश्वर शिव मंदिर, सीताराम मंदिर, भगवान जगन्नाथ मंदिर और बजरंग बली मंदिर शामिल हैं। यह सभी मंदिर देखने में काफी आकर्षक हैं। यहां का प्राकृतिक वातावरण मन को काफी सुकून देता है। यहां हर वर्ष मकर संक्रांति पर बहुत बड़ा मेला लगता है। दूर दूर से यहां लोग नदी में स्नान करने आते हैं। सुबह से ही स्नान कर पूजा करने का सिलसिला शुरू हो जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि यहां झारखंड के अलावा ओडिशा के मयूरभंज और सुदंरगढ़ से भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं। भगवान श्रीराम के पदचिह्रों का दर्शन कर खुद को धन्य महसूस करते हैं।
गांव की मंदिर कमेटी करती है यहां देखरेख
मंदिर के पास में ही एक छोटा-सा गांव है- देव गांव। यहां के ग्रामीणों ने इस मंदिर की देखभाल के लिए कमेटी बना रखी है। कमेटी ने ही मंदिर को विशाल और सुंदर स्वरूप दिया है। प्रत्येक सोमवार को यहां पूजा अर्चना की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पूजा अर्चना करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अन्य मंदिरों की तुलना में रामतीर्थ मंदिर की अलग पहचान है। सावन, महाशिवरात्रि और मकर मेला, कार्तिक पूर्णिमा पर यहां मंदिर कमेटी की ओर से विशेष व्यवस्था की जाती है। मंदिर भव्य तरीके से सजाए जाते हैं।
ट्रेन और बस से यहां पहुंच सकते हैं आप
रामतीर्थ मंदिर पहुंचने के कई रास्ते हैं। ट्रेन से अगर पहुंचना चाहते हैं तो आपको डांगवापोसी रेलवे स्टेशन आना होगा। यहां से यह 13 किलोमीटर दूर है। इस छोटे से रेलवे स्टेशन पर बड़बिल टाटा पैसेंजर, टाटा गुआ पैसेंजर, जनशताब्दी एक्सप्रेस आदि ट्रेनें रुकती हैं। स्टेशन से उतरकर रामतीर्थ के लिए आपको छोटे वाहन आसानी से मिल जाएंगे। अगर आप बस से यहां पहुंचाना चाहते हैं तो पहले चाईबासा आइए। यहां से रामतीर्थ की दूरी करीब 70 किलोमीटर है। आप जैंतगढ़ में उतरकर छोटे वाहनों से यहां पहुंच सकते हैं। हर क्षण यहां छोटे वाहन मिल जाएंगे। वहीं, ओडिशा के केउनझर से चंपुआ की दूरी 60 किलोमीटर है। चंपुआ में उतरकर भी आप रामतीर्थ जा सकते हैं। चंपुआ से दूरी 5 किलोमीटर है।
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