चारा घोटालाः जब्त सोने से समृद्ध होगा झारखंड का खजाना
चारा घोटाले के आरोपियों से जब्त सोने से झारखंड का खजाना समृद्ध होगा।
प्रदीप सिंह, रांची। अविभाजित बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाले के आरोपियों से जब्त किया गया अकूत सोना झारखंड के हिस्से आएगा। इस मामले की जांच कर रही सीबीआइ ने लंबे अरसे तक जांच और सुनवाई के क्रम में आरोपियों को अंजाम तक पहुंचाया है।
पशुपालन घोटाले के सर्वाधिक चर्चित केस आरसी 20ए/96 की सुनवाई के दौरान सीबीआइ की अदालत के तत्कालीन विशेष न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने इस बाबत आदेश दिया था। तत्कालीन न्यायाधीश ने कहा था कि घोटाले में संलिप्त आरोपियों ने इसके तहत जमा किए गए पैसे से सोना खरीदा। ऐसे में इसे जब्त करना चाहिए। इसके बाद वित्त विभाग ने आरबीआइ से संपर्क किया। पहली कड़ी में राज्य सरकार को 34 किलोग्राम सोना मिला है।
आरोपियों से जब्त दो क्विंटल सोना आरबीआइ के पास रखा है। पूरा सोना कड़ी दर कड़ी राज्य सरकार के खजाने में आएगा। राज्य सरकार ने आरबीआइ से आग्रह किया है कि इसे गोल्ड बांड के रूप में दिया जाए। दो क्विंटल सोने का बाजार मूल्य करीब 60 करोड़ रुपये होगा। पूरा चारा घोटाला करीब 950 करोड़ रुपये का था।
गजब संयोग, एक ही अफसर के जिम्मे दोनों काम
पशुपालन घोटाले का पर्दाफाश चाईबासा के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने किया था। उन्होंने पशुपालन विभाग के दफ्तरों पर छापे मारे और तमाम दस्तावेज जब्त किए। पता चला कि पशुओं का चारा सप्लाई करने के नाम पर फर्जी कंपनियों ने कोषागार से सरकारी धन की हेराफेरी की। उन्होंने इस बाबत प्राथमिकी दर्ज कराई। यह संयोग है कि फिलहाल अमित खरे वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव सह राज्य के विकास आयुक्त हैं। वे सोना लाने की कार्रवाई में अहम भूमिका निभा रहे हैं। विभागीय अधिकारी उनकी देखरेख में इसे अंजाम दे रहे हैं।
पशुपालन घोटाले के महत्वपूर्ण घटनाक्रम
11 मार्च, 1996 : पटना हाई कोर्ट ने सीबीआइ को जांच का आदेश दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर मुहर लगाई।
27 मार्च, 1996 : सीबीआइ ने चाईबासा कोषागार मामले में प्राथमिकी दर्ज की।
23 जून, 1997 : सीबीआइ ने दाखिल की चार्जशीट। राजद प्रमुख लालू प्रसाद को आरोपी बनाया।
30 जुलाई, 1997 : लालू प्रसाद ने सीबीआइ अदालत में आत्मसमर्पण किया। न्यायिक हिरासत में भेजे गए।
05 अप्रैल, 2000 : विशेष सीबीआइ अदालत में आरोप तय किया गया।
05 अक्टूबर, 2001 : सुप्रीम कोर्ट ने नया राज्य झारखंड बनने के बाद यह मामला यहां स्थानांतरित कर दिया।
फरवरी, 2002 : रांची की विशेष सीबीआइ अदालत में सुनवाई शुरू।
13 अगस्त, 2013 : सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के न्यायाधीश के स्थानांतरण की लालू की मांग ठुकराई।
30 सितंबर, 2013 : लालू और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र तथा 45 अन्य को सीबीआइ न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने दोषी ठहराया।
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