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महारानी विक्टोरिया का नाम इतिहास में दर्ज कराने के लिए 22 एकड़ भूमि में लोहरदगा में खोदा गया था तालाब

फिल्मों में आपने कैदियों को सजा के रूप में पत्थर तोड़ते तो जरूर देखा होगा आपको एक ऐसी सजा के बारे में बताते हैं जिस सजा को आज से कई दशक पहले....

By Vikram GiriEdited By: Published: Fri, 11 Sep 2020 10:53 AM (IST)Updated: Fri, 11 Sep 2020 12:17 PM (IST)
महारानी विक्टोरिया का नाम इतिहास में दर्ज कराने के लिए 22 एकड़ भूमि में लोहरदगा में खोदा गया था तालाब
महारानी विक्टोरिया का नाम इतिहास में दर्ज कराने के लिए 22 एकड़ भूमि में लोहरदगा में खोदा गया था तालाब

लोहरदगा (राकेश कुमार सिन्हा) । फिल्मों में आपने कैदियों को सजा के रूप में पत्थर तोड़ते तो जरूर देखा होगा, आपको एक ऐसी सजा के बारे में बताते हैं, जिस सजा को आज से कई दशक पहले अंग्रेजों ने कैदियों को दिया था, परंतु यह सजा आज खूबसूरत नजारे के रूप में इतिहास की पहचान है। हम बात कर रहे हैं लोहरदगा शहर के बीचों बीच विक्टोरिया तालाब की। इस तालाब का निर्माण कैदियों ने किया था।

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महारानी विक्टोरिया का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करने और हमेशा जिंदा रखने के लिए इस तालाब की खुदाई कराई गई थी। लगभग 22 एकड़ भूमि में अंग्रेजी हुकूमत ने कैदियों से इस तालाब का निर्माण कराया था। यह बात 1857 से लेकर 1881 के बीच की है। कैदियों को मिली यह सजा 139 साल से भी ज्यादा समय से  हजारों की आबादी के लिए पानी की आवश्यकता को पूरी कर रही है।

परतंत्र भारत में सामरिक गतिविधि का केंद्र था लोहरदगा

अंग्रेजी हुकूमत के दृष्टिकोण से लोहरदगा का इतिहास और विक्टोरिया तालाब की पहचान काफी पुरानी है। परतंत्र भारत में लोहरदगा सामरिक गतिविधि का केंद्र था। तभी तो अंग्रेजों ने 1833 में साउथ वेस्ट फ्रंटियर एजेंसी का प्रशासकीय इकाई का मुख्य मुख्यालय लोहरदगा को बनाया था। 1857 में भी छोटानागपुर कमिश्नरी का प्रमुख नगर था। 1881 तक आर्मी का नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर पोस्ट का मुख्यालय रहा।

तभी तो लोहरदगा में शंख पुल, नगरपालिका भवन, कंडरा, चिरी, शंख नदी के निकट वाच टावर जैसे कार्य किए गए। हुकूमत ने शहर के मध्य बड़ा तालाब का निर्माण कराया था। बड़ा तालाब या कहें कि विक्टोरिया तालाब उस समय के हिसाब से काफी बड़े भू-भाग में था। इसलिए इसे बड़ा तालाब कहते हैं। ब्रिटिश हुकूमत ने इसे अपनी महारानी के सम्मान में इसका नामकरण विक्टोरिया कर दिया। इसलिए लोग इसे विक्टोरिया तालाब भी कहते हैं।

जेलखाना रोड़ में बची है सिर्फ यादें

तालाब के निकट लोहरदगा प्रखंड कार्यालय के पीछे स्थित कुटुमू गांव में अंग्रेज कैदियों को रखते थे। यहां पर अब सिर्फ यादें बची है। सामाजिक कार्यकर्ता और लोहरदगा के इतिहास के जानकार संजय बर्मन बताते हैं कि इस कैदखाने में फांसी घर भी था। अंग्रेजों ने इन्हीं कैदियों से तालाब की खुदाई कराई थी। उपेक्षा के कारण तालाब की जमीन का घनत्व सिकुड़ता चला गया। पिछले 40-45 वर्ष पहले यह तालाब इतना निर्मल व स्वच्छ था की शहर के पावरगंज से मिशन चौक के साथ निंगनी, चंदकोपा से नदिया गांव तक के लोग इसी झील के पानी से दाल बनाते थे। साथ हीं पेयजल के लिए भी इसका इस्तेमाल करते थे।

दोनों ओर तालाब और सूर्यास्त का नजारा

झारखंड में यही वह स्थान है, जहां सड़क के दोनों तरफ तालाब का खूबसूरत दृश्य और सूर्योदय एवं सूर्यास्त का नजारा काफी सुंदर दिखता था, परंतु अविवेकता के कारण एक तालाब दिखती नहीं। लगातार बदहाली देखकर जनता के सामूहिक सहयोग से आवाज उठाई गई। अब इसके अच्छे दिन आने शुरू हो रहे हैं। संध्याकालीन यहां से सूर्यास्त का नजारा काफी अद्भुत व नयनाभिरा भी राहत है।


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