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    Jharkhand में निकाय चुनाव को ले हाईकोर्ट सख्त, कहा- न्यायालय की अवमानना, अफसरों को भेजा नोटिस

    Updated: Wed, 10 Sep 2025 01:41 PM (IST)

    झारखंड में लंबित निकाय चुनाव को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। यह मामला उस अवमानना याचिका से जुड़ा है। इसमें आरोप लगाया गया है कि सरकार ने अदालत के आदेश के बावजूद समय पर चुनाव नहीं कराया। अदालत ने कहा कि आदेश का पालन न करना न्यायालय की अवमानना है। सरकार की ओर से दलील दी गई कि फिर से ‘ट्रिपल टेस्ट’ कराकर चुनाव कराया जाए।

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    सरकार की ओर से दलील दी गई कि फिर से ट्रिपल टेस्ट’कराकर निकाय चुनाव कराया जाए।

    राड्य ब्यूरो, रांची। झारखंड में लंबित निकाय चुनाव को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में गुरुवार को अहम सुनवाई हुई। यह मामला उस अवमानना याचिका से जुड़ा है।

    इसमें आरोप लगाया गया है कि सरकार ने अदालत के आदेश के बावजूद समय पर चुनाव नहीं कराया। अदालत ने कहा कि आदेश का पालन न करना न्यायालय की अवमानना है।

    सरकार की दलील पर अदालत नाराज

    सुनवाई के दौरान मुख्य सचिव अलका तिवारी और नगर विकास सचिव मौजूद रहे। सरकार की ओर से दलील दी गई कि फिर से ‘ट्रिपल टेस्ट’ कराकर चुनाव कराया जाए।

    इस पर अदालत ने नाराजगी जाहिर करते हुए टिप्पणी की कि सरकार कानून के साथ खिलवाड़ कर रही है और चुनाव टालने की कोशिश कर रही है।

    पांच साल से अटके निकाय चुनाव

    गौरतलब है कि राज्य में पिछली बार नगर निकाय चुनाव 2018 में हुए थे। संवैधानिक प्रावधानों के तहत पांच साल पूरा होने के बाद चुनाव होना जरूरी है।

    लेकिन ओबीसी आरक्षण को आधार बनाकर सरकार अब तक चुनाव नहीं करा सकी। इसको लेकर कई बार हाईकोर्ट ने निर्देश दिए, मगर प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। इसी कारण अवमानना याचिका दाखिल हुई।

    अफसरों को तलब, आरोप गठन की चेतावनी

    अदालत ने अगली सुनवाई के दौरान तत्कालीन नगर विकास सचिव विनय चौबे, अपर सचिव ज्ञानेश कुमार, कार्मिक सचिव वंदना दादेल, नगर विकास सचिव और मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया है। अदालत ने यह भी कहा कि 14 सितंबर को इन सभी पर आरोप गठन की कार्रवाई होगी।

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    सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल

    हाईकोर्ट की सख्ती से साफ है कि यदि चुनाव की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए तो वरिष्ठ अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई तय है।

    यह मामला न केवल सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर रहा है, बल्कि संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा को भी केंद्र में ला खड़ा करता है।