तर्पण करने वाले पुत्र के पूर्वज होते हैं प्रसन्न, यहां जानें तर्पण की विधि एवं पूरा शेड्यूल
आगामी 8 सितंबर 2025 सोमवार से पितृ पक्ष प्रारंभ हो रहा है। इस वर्ष पितृपक्ष अर्थात अश्विन मास का कृष्ण पक्ष 14 दिनों का ही होगा। नवमी तिथि हानि है। उक्त बातें ज्योतिषाचार्य पंडित गोपाल मिश्रा ने कहीं। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में पितृ पक्ष को पितृ महोत्सव के रूप में मनाने का विधान है। पितृ का अर्थ पूर्वजों से है।

संवाद सूत्र, जागरण पंडवा (पलामू) । आगामी 8 सितंबर 2025 सोमवार से पितृ पक्ष प्रारंभ हो रहा है। इस वर्ष पितृपक्ष अर्थात अश्विन मास का कृष्ण पक्ष 14 दिनों का ही होगा। नवमी तिथि हानि है।
उक्त बातें ज्योतिषाचार्य पंडित गोपाल मिश्रा ने कहीं। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में पितृ पक्ष को पितृ महोत्सव के रूप में मनाने का विधान है। पितृ का अर्थ पूर्वजों से है।
अर्थात कुल में उत्पन्न वैसे सारे लोग जो अब अपने शरीर रूप में इस पृथ्वी पर नहीं रहे, उनकी आत्मा को पुष्ट करने के लिए संस्कारी सनातन धर्मावलंबी पिंडदान या तर्पण आदि शास्त्र सम्मत धर्मादेश का पालन करते हैं।
ऐसा करने से पूर्वज अति प्रसन्न होते हैं। उनका अनुग्रह परोक्ष रूप से प्राप्त होता है। जो सनातनी इसका अनुसरण नहीं करते हैं उनका यश, कीर्ति, आयु व कुल का विनाश तय है।
क्योंकि पितृ अप्रसन्न होकर श्राप देते हैं। देवतुल्य पितरों का श्राप कभी निष्फल नहीं हो सकता। कुछ लोग समाज में यह भ्रम फैला हैं कि गयाजी में श्राद्ध के बाद पितृ पक्ष में तर्पण आदि की जरूरत नहीं होती, जो सर्वथा अनुचित है।
गयाजी में श्राद्ध के बाद भी पितरों की मृत्यु तिथि पर तर्पण आदि जरूर करना चाहिए। यह शास्त्र सम्मत है। कहीं-कहीं समाज में ऐसा भी सुनने को मिलता है कि दो या दो से अधिक भाई होने पर ज्येष्ठ को ही तर्पण करना चाहिए।
कनिष्ठ को तर्पण आदि की आवश्यकता नहीं है। यह बात भी मिथ्या व भ्रमयुक्त है। ज्येष्ठ या कनिष्ठ सभी को तर्पण करके अपने पूर्वजों की तृप्ति व पुष्ट करने से चमत्कारी लाभ व भरपूर आशीर्वाद मिलते हैं।
यहां एक बात यह भी बताने योग्य है कि किन्ही के पितरों की मृत्यु तिथि अज्ञात हो तो उनके लिए अथवा किसी कारणवश मृत्यु तिथि को तर्पण या पिंडदान न करने वालों के लिए पक्ष के अंतिम तिथि अमावस्या को कर लेना चाहिए।
पितृ पक्ष में किस तिथि को कौन सा श्राद्ध
- 8 सितंबर को प्रथम श्राद्ध
- 9 सितंबर को द्वितीय श्राद्ध
- 10 सितंबर को तृतीय श्राद्ध
- 11 को चतुर्थी श्राद्ध
- 12 को पंचमी और षष्ठी श्राद्ध, 13 को सप्तमी श्राद्ध
- 14 को अष्टमी श्राद्ध
- 15 को नवमी श्राद्ध
- 16 को दसवीं श्राद्ध
- 17 को एकादशी श्राद्ध
- 18 को द्वादश श्राद्ध
- 19 को त्रयोदश श्राद्ध
- 20 को चतुर्दश श्राद्ध व 21 सितंबर अमावस्या तिथि को सार्वपैत्री श्राद्ध पितृ विसर्जन व महालया है।
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