सारंडा को संरक्षित क्षेत्र घोषित नहीं किया तो अधिकारियों को भेजेंगे जेलः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार को सारंडा वन को अभयारण्य घोषित करने में देरी पर कड़ी फटकार लगाई है। मुख्य सचिव को 8 अक्टूबर को अदालत में पेश होने का आदेश दिया गया है। अदालत ने चेतावनी दी है कि निर्देशों का पालन न करने पर अधिकारियों को जेल भेजा जा सकता है। राज्य सरकार पर न्यायालय की अवमानना का आरोप लगाया गया है।

राज्य ब्यूरो, रांची। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के सारंडा वन क्षेत्र को सेंचुरी घोषित नहीं करने पर कड़ी नाराजगी जताते हुए राज्य के मुख्य सचिव को आठ अक्टूबर को अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर जवाब देने को कहा है। अदालत ने राज्य सरकार को इस संबंध में आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया। साथ ही चेतावनी दी कि ऐसा नहीं करने पर संबंधित अधिकारियों को जेल भेजा जा सकता है।
पीठ राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा जारी पूर्व निर्देशों का राज्य द्वारा पालन न करने से उत्पन्न एक मामले की सुनवाई कर रही थी। मामले पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि झारखंड सरकार न केवल टालमटोल कर रही है, बल्कि न्यायालय के साथ छल भी कर रही है। हमारा मानना है कि राज्य सुप्रीम कोर्ट के 29 अप्रैल के आदेश की स्पष्ट अवमानना कर रहा है।
पीठ ने कहा कि हम झारखंड के मुख्य सचिव को निर्देश देते हैं कि वह 8 अक्टूबर को अदालत में उपस्थित होकर कारण बताएं कि उनके खिलाफ अवमानना के लिए कार्रवाई क्यों न की जाए।
पीठ ने राज्य के वकील से कहा कि अगर आठ अक्टूबर तक सारंडा वन को अभयारण्य घोषित करने संबंधी अधिसूचना जारी नहीं की जाती है तो मुख्य सचिव जेल जाएंगे और सुप्रीम कोर्ट वन को अभयारण्य घोषित करने के लिए परमादेश जारी करेगा।
अदालत ने उल्लेख किया कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत राज्य सरकारों को स्थानीय समुदायों से परामर्श के बाद अभयारण्यों, राष्ट्रीय उद्यानों और पारिस्थितिक गलियारों से सटे क्षेत्रों और दो संरक्षित क्षेत्रों को एक-दूसरे से जोड़ने वाले इलाकों को संरक्षित क्षेत्र घोषित करना है। संरक्षित क्षेत्र की घोषणा के साथ ही उसके प्रबंधन का प्रविधान है। इसका उद्देश्य भूदृश्यों, समुद्री दृश्यों, वनस्पतियों और जीवों और उनके आवास की सुरक्षा करना है।
पीठ ने इस बात की आलोचना की कि राज्य सरकार ने अपने पहले के आदेशों का पालन करते हुए संरक्षण रिजर्व के रूप में अधिसूचित करने के बजाय इस मुद्दे पर आगे विचार-विमर्श के लिए 13 मई को अपने अधिकारी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार एक प्राधिकरण से दूसरे प्राधिकरण को फाइलें भेजकर मामले में अनावश्यक रूप से विलंब कर रही है।
वन विभाग के सचिव अदालत में हुए पेश, बिना शर्त मांगी माफी
पिछली सुनवाई के दौरान वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव अबूबकर सिद्दीक व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश हुए और बिना शर्त माफी मांगी। अदालत ने उनकी माफी स्वीकार कर ली और उन्हें आगे व्यक्तिगत रूप से पेश होने से छूट दे दी।
सरकार ने प्रस्ताव भेजे जाने की दी जानकारी
राज्य सरकार ने पीठ को सूचित किया कि उसने प्रस्तावित अभयारण्य क्षेत्र को पहले के 31,468.25 हेक्टेयर से बढ़ाकर 57,519.41 हेक्टेयर कर दिया है और अतिरिक्त 13,603.806 हेक्टेयर क्षेत्र को सासंगदाबुरू संरक्षण रिजर्व के रूप में अधिसूचित करने के लिए चिह्नित किया है। पीठ ने कहा कि प्रस्ताव पहले ही विशेषज्ञ टिप्पणियों के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून को भेजा जा चुका है।
पीठ ने भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) को प्रस्ताव भेजे जाने की जांच करने और एक महीने के भीतर राज्य सरकार को अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। पीठ ने राज्य सरकार को डब्ल्यूआईआई की टिप्पणियां प्राप्त होने के दो महीने के भीतर शेष सभी औपचारिकताएं पूरी करने का निर्देश दिया, जिसमें राज्य वन्यजीव बोर्ड द्वारा विचार, राज्य मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदन और अंतिम अधिसूचना जारी करना शामिल है।
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