Sanskrit Day: संस्कृत बोलिए, ज्ञान के द्वार खोलिए, झारखंड में बने 50 से अधिक संस्कृत घर
Sanskrit Day झारखंड में संस्कृत बोलने-पढ़ने व समझने वालों की संख्या बढ़ रही है। आदिवासियों में भी इसकी लोकप्रियता बढ़ी है। संस्कृत भारती भाषा के प्रचार-प्रसार का अभियान चला रही है। संस्कृत बोलने पर जोर दे रही है। राज्य में 50 से अधिक संस्कृत घर तैयार हो चुके हैैं ।
रांची {आरपीएन मिश्र} । संस्कृत ज्ञान, संस्कार और संस्कृति की भाषा है। खुद में गौरवशाली इतिहास समेटे इस भाषा में फिर से जन-जन की भाषा बनने की क्षमता है, लेकिन यह तब संभव हो पाएगा, जब लोग केवल पढ़ने की बजाय इस भाषा में बात करेंगे। यह मानना है संस्कृत के संरक्षण और संबर्धन पर काम कर रही देशव्यापी संस्था संस्कृत भारती का। स्कूल-कालेजों में नियमित रूप से संस्कृत संभाषण शिविर, संस्कृत अभ्यास वर्ग और इस तरह के अन्य कार्यक्रमों के जरिये इस संस्था से जुड़े शिक्षक विद्यार्थियों को संस्कृत बोलने का अभ्यास कराते हैैं। संस्कृतसेवियों के निरंतर प्रयास का असर यह हुआ है कि अब अच्छी-खासी संख्या में संस्कृत बोलने-समझने वाले तैयार हो रहे हैैं।
संस्कृत भारती के प्रांत अध्यक्ष प्रोफेसर डा. चंद्रकांत शुक्ल बताते हैैं कि संस्कृत भारती का पूरा जोर लोगों को संस्कृत बोलने का अभ्यास कराने पर है। इस संगठन से जुड़े भाषाधर्मियों की मेहनत का ही असर है कि झारखंड में अब 50 से अधिक संस्कृत घर तैयार हो चुके हैैं। वहीं बड़ी संख्या में ऐसे छात्र और युवा मिल जाएंगे जो संस्कृत बोल और समझ लेते हैैं। संस्कृत घर का आशय ऐसे घर से है, जिस घर के सभी सदस्य आपस में संस्कृत में बात करते हैैं। हमें भरोसा है कि यह अभियान रंग लाएगा और ऐसे घरों की संख्या आने वाले दिनों में अच्छी-खासी होगी। सुखद पहलू यह है कि हाल के दिनों में संस्कृत के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। बड़ी संख्या में आदिवासी भी संस्कृत पढ़ते और बोलते हैैं।
संस्कृत भारती पूरे देश में पांच हजार से अधिक संस्कृत घर बना चुकी है। इनमें 50 से अधिक घर झारखंड में हैैं। संस्कृत बोलकर हम धार्मिक-आध्यात्मिक वातावरण बनाते हैैं, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
गठन के रामगढ़ जिला संयोजक डा. सुनील कश्यप बताते हैैं कि हाल के वर्षों में संस्कृत का आंदोलन काफी आगे बढ़ा है। संगठन के रामगढ़ जिला संयोजक डा. सुनील कश्यप बताते हैैं कि हाल के वर्षों में संस्कृत का आंदोलन काफी आगे बढ़ा है। लोगों को समझना होगा कि संस्कृत केवल एक भाषा नहीं है। वेद समेत हमारे तमाम धर्मग्रंथ संस्कृत में हैैं। उनमें ज्ञान का खजाना छिपा है। उन्हें समझने के लिए भी संस्कृत जानना जरूरी है। वेदों, धर्मशास्त्रों, पुराणों और उपनिषदों में ज्ञान के साथ विज्ञान भी है।
आयुर्वेद और ज्योतिष के तमाम ग्रंथ संस्कृत में है। यह ज्ञान हमें हासिल करना चाहिए। अगर हम संस्कृत से दूर हैैं तो अपने देश के पुरातन ज्ञान से वंचित हैैं। संस्कृत की इस अहमियत को समझना होगा। फिर भी 1995 में जब हमलोगों ने झारखंड में यह अभियान शुरू किया था, तब से अबतक स्थिति में उत्साहजनक बदलाव आए हैैं। खास बात यह है कि लड़कियां भी संस्कृत बोलने और पढ़ने में लगातार आगे आ रही हैैं। संस्कृत में उनके परीक्षा परिणाम बेहतर हुए हैैं। संस्कृत की भाषा कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त साबित हो चुकी है। केवल जाति विशेष की भाषा या कर्मकांड की भाषा से अलग इस भाषा का व्यापक महत्व है।
संगठन के प्रांत मंत्री दीपचंद राम कश्यप कहते हैैं कि सरकार को इस भाषा के उत्थान के प्रति विशेष प्रयास करने होंगे। स्कूली शिक्षा में कोर्स में तो यह विषय शामिल है, लेकिन रिजल्ट में इसके अंक नहीं जोड़े जाते। इस कारण विद्यार्थियों का संस्कृति की पढ़ाई पर विशेष ध्यान नहीं जाता। इस स्थिति को बदलना होगा। संस्कृत बोलकर हम धार्मिक-आध्यात्मिक वातावरण बनाते हैैं, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। संस्कृत भारती के झारखंड के अलग-अलग हिस्सों में सक्रिय रहकर दर्जनों विद्वान संस्कृत का प्रचार-प्रसार कर रहे हैैं। इनमें डा. चंद्रकांत शुक्ल, डा. मीना शुक्ला, डा. नीलिमा पाठक, डा. गोपाल पाठक, डा. रामशीष पांडेय, डा. कुसुमलता डा. भगवती प्रसाद, डा. प्रतिमा कुमारी, डा. जेएन पांडेय, डा. चंद्र माधव, डा. पृथ्वी राज सिंह, डा. विनय कुमार पांडेय, डा. रामप्यारे मिश्र, डा. ताराकांत शक्ला, डा. अजीत नारायण पांडेय, गणेश वत्स आदि शामिल हैैं।
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