सिकिदिरी हाइडेल घोटाला: बिजली विभाग को 134 करोड़ रुपये की चपत, 6 अफसरों के खिलाफ सौंपी गई जांच रिपोर्ट
रांची में सिकिदिरी हाइडेल प्लांट की मरम्मत में अनियमितताओं के चलते बिजली विभाग को 134 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। जांच कमेटी ने छह अधिकारियों को दोष ...और पढ़ें

सिकिदिरी हाइडेल प्लांट। फाइल फोटो
प्रदीप सिंह, रांची। सिकिदरी हाइडेल प्लांट की मरम्मत संबंधी अनियमितता के 12 वर्ष से भी अधिक पुराने मामले में अधिकारियों की अनदेखी के कारण विभाग को 134 करोड़ की चपत लग रही है।
कॉमर्शियल कोर्ट के इस निर्देश के बाद बिजली निगम ने अनदेखी के आरोपित अधिकारियों को चिन्हित करने के लिए जांच कमेटी गठित की थी, जिसमें जीएम (एचआर) सुनील दत्त खाखा, ऊर्जा विभाग के संयुक्त सचिव सौरभ सिन्हा और जीएम (वित्त) डीके महापात्रा शामिल थे।
कमेटी ने अब प्रबंधन को रिपोर्ट सौंप दी है, जिसमें छह अफसरों को दोषी पाया गया है। जांच कमेटी के अनुसार जिन अधिकारियों की अनदेखी के कारण ऐसी नौबत आई, उसमें जीएम (एचआर-उत्पादन) अमर नायक, जीएम (तकनीकी) कुमुद रंजन सिन्हा, तत्कालीन प्रोजेक्ट मैनजर प्रदीप शर्मा, कार्यपालक अभियंता संजय सिंह समेत दो विधि अधिकारी सम्मिलित है। उधर विभाग ने 134 करोड़ रुपये देने के आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की है।
क्या है मामला?
सिकिदरी हाइडेल की मरम्मत के लिए वर्ष 2012-2013 में बीएचईएल को किए गए कार्य आवंटन को लेकर विवाद हुआ था। इसकी सीबीआइ जांच भी चल रही है, जिसमें बिजली बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष एसएन वर्मा समेत सात लोगों के विरुद्ध आरोप है। इस मामले में बीएचईएल ने जिस निजी कंपनी नार्दन पावर को कार्य आवंटित किया था, उसने पैसे के भुगतान के लिए मेरठ के एमएसएमई कोर्ट में अपील की थी।
कोर्ट ने बीएचईएल को निर्देश दिया तो कंपनी ने रांची कोर्ट में अपील की। कोर्ट ने 20.87 करोड़ के काम के एवज में ब्याज सही पैसे चुकाने का निर्देश दिया, जो राशि 134 करोड़ रुपये हैं। बिजली निगम ने इस आदेश को चुनौती नहीं दी।
इस संबंध में कामर्शियल कोर्ट ने पक्ष रखने के लिए निर्देश जारी किया, जिसे ऊर्जा उत्पादन निगम के दो अधिकारियों ने लगभग नौ माह तक दबाए रखा ताकि लाभ पहुंचाया जा सके। कोर्ट में अधिकारियों ने पक्ष रखा होता तो ऐसी नौबत नहीं आती।
दरअसल कोर्ट में अधिकारियों ने यह पक्ष रखा ही नहीं कि हाइडेल की मरम्मत का सिर्फ शार्ट टर्म का काम ही संपन्न हुआ था, जिसकी राशि चार करोड़ रुपये थी। लांग टर्म का कार्य नहीं हुआ था, लेकिन अधिकारियों ने तमाम बिल का सत्यापन कर दिया, जिसका लाभ कंपनी को मिला।
कोर्ट में पक्ष नहीं रखने के कारण एकतरफा निर्णय हो गया। जब इससे बिजली निगम प्रबंधन अवगत हुआ तो जांच के लिए कमेटी बनाई गई और एफआइआर करने का निर्देश दिया गया।

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