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    Sikidiri Hydel Scam: 59 लाख के आरंभिक प्राक्कलन से 20 करोड़ तक का खेल, जानिए कैसे हुए घपले

    Updated: Tue, 29 Jul 2025 06:30 PM (IST)

    सिकिदिरी हाइडल प्रोजेक्ट में हुए 20 करोड़ रुपये के घोटाले ने ऊर्जा विकास निगम और राज्य सरकार को गंभीर वित्तीय नुकसान पहुंचाया है। प्रोजेक्ट की मरम्मत के लिए शुरू में तैयार किया गया 59 लाख रुपये का प्राक्कलन ढाई करोड़ के बाद 20 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इस अनियमितता में मरम्मत की वास्तविक लागत से दस गुना अधिक बिलिंग की गई।

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    सिकिदिरी हाइडल घोटाला में करोड़ों रुपये का खेल हुआ है।

    प्रदीप सिंह,रांची। सिकिदिरी हाइडल प्रोजेक्ट में हुए 20 करोड़ रुपये के घोटाले ने ऊर्जा विकास निगम और राज्य सरकार को गंभीर वित्तीय नुकसान पहुंचाया है। यह घोटाला तत्कालीन झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड में 2011 में सामने आया।

    प्रोजेक्ट की मरम्मत के लिए शुरू में तैयार किया गया 59 लाख रुपये का प्राक्कलन ढाई करोड़ के बाद 20 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इस अनियमितता में मरम्मत की वास्तविक लागत से दस गुना अधिक बिलिंग की गई जिसके पीछे वरीय अधिकारियों का दबाव बताया जा रहा है।

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    बताया जाता है कि इसमें सिकिदिरी हाइडल प्रोजेक्ट के तत्कालीन परियोजना निदेशक बीके चौधरी, कार्यपालक अभियंता शशिभूषण प्रसाद सिंह और सहायक अभियंता संजय सिंह के नाम प्रमुखता से सामने आए।

    प्रारंभिक प्राक्कलन के अनुसार, मरम्मत कार्य के लिए केवल 59 लाख रुपये की आवश्यकता थी, लेकिन अंतिम बिलिंग 20 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। यह राशि वास्तविक लागत से कई गुना अधिक थी।

    इससे राज्य सरकार को भारी वित्तीय क्षति हुई। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि अधिक बिलिंग जानबूझकर की गई, जिसमें परियोजना से जुड़े अधिकारियों ने वरीय अधिकारियों के दबाव में काम किया।

    दोषियों की स्वीकारोक्ति

    बताया जाता है कि घोटाले में शामिल अधिकारियों ने अपनी संलिप्तता को स्वीकार की है। तत्कालीन परियोजना निदेशक बीके चौधरी, कार्यपालक अभियंता शशिभूषण प्रसाद सिंह और सहायक अभियंता संजय सिंह ने जांच के दौरान यह माना कि उन्होंने वरीय अधिकारियों के दबाव में अधिक बिलिंग की।

    उसका सत्यापन भी किया। इस स्वीकारोक्ति ने घोटाले की गंभीरता को और उजागर किया। हालांकि, बार-बार जांच के बावजूद दोषियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई में देरी ने कई सवाल खड़े किए हैं।

    यह स्थिति प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाती है। वर्तमान में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को इस मामले की जांच की अनुशंसा की गई है। ऊर्जा विकास निगम ने इस पुराने घोटाले के दोषियों को सजा दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाने की कोशिश शुरू की है।

    एसीबी की जांच पर सभी की निगाहें टिकी हैं, क्योंकि यह मामला न केवल वित्तीय अनियमितता से जुड़ा है, बल्कि यह तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को भी उजागर करता है।

    जांच के दायरे में आए अधिकारियों को तत्काल निलंबित करने की संभावना जताई जा रही है, जिससे यह संदेश जाए कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई में कोई ढिलाई नहीं बरती जाएगी।