Weather Update: बंगाल की खाड़ी में 5 बार बना लो-प्रेशर, मौसम वैज्ञानिक ने कहा- इस साल पड़ेगी कड़ाके की ठंड
बंगाल की खाड़ी में इस साल पाँच बार लो-प्रेशर बनने से मौसम में बदलाव आया है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, इसके कारण इस साल कड़ाके की ठंड पड़ने की संभावन ...और पढ़ें
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मौसम विज्ञान केंद्र रांची के वैज्ञानिक अभिषेक आनंद। फोटो जागरण
जागरण संवाददाता, रांची। इस वर्ष बंगाल की खाड़ी में पांच बार से अधिक लो-प्रेशर जोन तैयार हुआ है। मानसून की सक्रियता ने जहां पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय होने की संभावना को बढ़ा दिया है, तो दूसरी ओर उत्तर पश्चिमी दिशा से आ रही ठंडी हवा ने राजधानी रांची समेत पूरे राज्य का तापमान गिरा दिया है।
इसका असर दिसंबर से लेकर फरवरी 2026 के अंत तक बने रहने की संभावना है। प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में सक्रिय ला-नीना स्थिति बनने के कारण भी इस वर्ष ठंड का असर लगातार बढ़ रहा है, इसका असर फरवरी 2026 के अंत तक बना रहेगा, जबकि मार्च मध्य से असर कम होने लगेगा।
दिसंबर माह में ला-नीना की गतिविधियों की संख्या में वृद्धि के हैं संकेत, जिससे पश्चिमी विक्षोभ के अधिक सक्रिय होने की संभावना है। ये बातें मौसम विज्ञान केंद्र रांची के वरीय वैज्ञानिक अभिषेक आनंद ने दैनिक जागरण के संवाददाता कुमार गौरव से विशेष बातचीत के क्रम में कही, पेश है बातचीत के अंश...
सवाल : मौसम में लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है, मूल कारण क्या है?
जवाब- मौसम में बदलाव के कई कारण हैं। जिसमें पर्यावरण में फैल रहे प्रदूषक तत्व अहम कारक हैं। साथ ही सिमट रही हरियाली और कांक्रीट के जंगल ने मौसम में बदलाव को गति दी है।
सवाल : अबकी बार रांची के तापमान में लगातार गिरावट हो रही है, जो कि पिछले कई वर्षों से कम है।
जवाब- इस वर्ष मानसून की अधिक सक्रियता ने अपना असर दिखाया है। रिकार्ड वर्षापात हुए और पर्याप्त नमी ने रांची व आसपास के क्षेत्रों में हरियाली का रकबा भी बढ़ाया है, जो कि तापमान को स्थिर बनाए हुए है।
सवाल : इसका आगामी दिनों कितना असर पड़ेगा?
जवाब- आप यहां के पुराने निवासियों से बात करें, वो बताएंगे कि रांची का मौसम कैसा रहता था। इस वर्ष कमोबेश यही स्थिति है। यहां के तापमान में बड़ा उलटफेर नहीं हुआ है, बस प्राकृतिक रुप से हम अबकी बार मजबूत हुए हैं।
सवाल : किस तरह होता है झारखंड में ला-नीना का असर?
जवाब- मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से 0.5 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक ठंडा हो जाता है। सामान्य से अधिक मजबूत पूर्वी हवाएं (ट्रेड विंड्स) प्रशांत महासागर के पश्चिमी हिस्से की ओर चलती हैं। ये हवाएं प्रशांत महासागर के पश्चिमी भाग में गर्म पानी जमा करती हैं और पूर्वी भाग (दक्षिण अमेरिका की ओर) में गहरे ठंडे पानी को सतह पर ले आती हैं। महासागर की सतह के तापमान में इस बदलाव से वायुमंडलीय दबाव पैटर्न में भी बदलाव आता है। दिसंबर माह में ला-नीना का असर बढ़ेगा, जिस कारण उत्तर पश्चिमी क्षेत्र से ठंडी हवा बहनी शुरू हो जाएगी और तापमान गिरेगा।
सवाल : अबकी बार समय से पूर्व ठंड का असर शुरू हो गया, क्या कारण है?
जवाब- ला-नीना का असर शुरू हो गया है और झारखंड में उत्तर पश्चिमी क्षेत्र से ठंडी हवाओं का झोंके का असर पूरे राज्य में देखने को मिलने लगा है।
सवाल : क्या पर्यावरण में बदलाव का असर भी कारक है?
जवाब- बेशक, पर्यावरण विशेषकर प्रकृति के साथ हो रहे छेड़छाड़ ने मौसम में परिवर्तन लाया है। लोग स्वार्थवश प्लास्टिक को इस्तेमाल में लाते हैं जो कि प्रकृति के लिए घातक है। आमतौर पर लोग ठंड के मौसम में प्लास्टिक जलाने से भी गुरेज नहीं करते।
सवाल : प्लास्टिक जलाने का पर्यावरण पर कितना असर होता है?
जवाब- प्लास्टिक जलाने के बाद उससे उत्पन्न घातक विषैली गैस पर्यावरण चक्र के लिए घातक हो जाती हैं।ठंड के मौसम में वाष्पीकरण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और विषैली गैस ऊपर जाने के बजाए एक ही जगह संघनित होकर रह जाती हैं जो हर लिहाज से घातक है।
सवाल : पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने के लिए क्या उपाय किए जाएं?
जवाब- पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने के लिए पौधारोपण के साथ साथ जलस्तर को भी सुधारने की प्रक्रिया अमल में लाई जाए ताकि रांची समेत आसपास के क्षेत्रों की मिट्टी में नमी बनी रहे। शहर का विस्तार हो और बड़े बड़े बनने वाले भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग को सख्ती से अनुपालन कराया जाए।

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