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सामा-चकेवा पर्व: इसके पीछे भगवान श्री कृष्ण, पुत्री सामा और पुत्र चकेवा की क्या है कहानी, जानें

Sama Chakeva भाई बहन के प्रेम और विश्वास का पर्व सामा चकेवा को लेकर पूरे बिहार समेत झारखंड की राजधानी रांची में भी चहलकदमी तेज हो चुकी है। इस पर्व के पीछे भगवान श्री कृष्ण उनकी पुत्री सामा और पुत्र चकेवा की कहानी क्या है विस्तार से जानें...

By Jagran NewsEdited By: Sanjay KumarPublished: Thu, 03 Nov 2022 02:04 PM (IST)Updated: Thu, 03 Nov 2022 02:13 PM (IST)
सामा-चकेवा पर्व: इसके पीछे भगवान श्री कृष्ण, पुत्री सामा और पुत्र चकेवा की क्या है कहानी, जानें
Sama Chakeva: सामा-चकेवा पर्व के पीछे की क्या है पौराणिक मान्यता।

रांची, जासं। Sama Chakeva झारखंड की राजधानी रांची में भाई बहन के प्रेम और विश्वास का पर्व सामा चकेवा को लेकर चहलकदमी तेज हो चुकी है। झारखंड मिथिला मंच (जानकी प्रकोष्ठ) की महासचिव निशा झा मिथिलानी ने बताया कि इसकी शुरुआत छठ के पारण के दिन से हो जाती है। सभी अपने अपने घर में इस दिन से सामा चकेवा बनाना शुरु कर देती हैं। जो भी इस दिन बना नहीं पाती हैं वो देवउठान एकादशी के दिन बनाती हैं। जिसमें सामा, चकेवा, वृंदावन, चुगला, सतभैया, पेटी, पेटार आदि मिट्टी से बनाया जाता है। उस दिन से नियमित रात्रि के समय आंगन में बैठ कर खूब खेलती हैं, नियमित गीत गाती हैं। जिसमें भगवती गीत, ब्राम्हण गीत और अंत में बेटी विदाई का समदाउन गाती हैं। यह सिलसिला कार्तिक पूर्णिमा के दिन तक चलता है। उसके बाद कार्तिक पूर्णिमा की रात में सामा का विसर्जन किया जाता है। जिसमें महिला के संग संग घर के पुरुष वर्ग भी शामिल रहते हैं।

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सामा चकेवा को लेकर क्या है मान्यता

ऐसा मान्यता है कि सामा भगवान श्री कृष्ण की पुत्री थी जो कि प्रत्येक दिन वृंदावन के जंगल में खेलने जाया करती थी। एक दिन चुगला नाम का एक व्यक्ति श्री कृष्ण को झूठा बोल दिए कि आपकी बेटी कोई साधु से मिलने जाती है। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बेटी यानी सामा को श्राप दे देते हैं पक्षी बनने का। अब वो सामा रूपी पक्षी वृंदावन के जंगल में ही रहती थी।

एक दिन सामा के भाई चकेवा को पता चला जो मेरी बहन को चुगला ने चुगल्पन कर के श्राप दिलवा दिया तो वो भी उसी दिन तपस्या में बैठ गया और भगवान को प्रसन्न किया। फिर भगवान ने वर मांगने को कहा तो वे अपनी बहन को वापस मांग लिया। इसलिए इस पर्व को भाई बहन के प्रेम और स्नेह के रूप में मनाया जाता है। हरेक बहन अपने भाई की दीर्घायु की कामना करती हैं।

झारखंड मिथिला मंच के सदस्य साथ साथ मनाते हैं पर्व

सामा चकेवा का पर्व गांव में होता ही है। हमलोग शहर में भी मनाते हैं। झारखंड मिथिला मंच के जानकी प्रकोष्ठ के द्वारा रांची के हरमू में कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रांची के कोने कोने से मैथिल मिथिलानी अपने अपने बच्चों के संग डाला सजा कर आती हैं। जिसमें सर्वश्रेष्ठ पहले, दूसरे और तीसरे डाला को पुरस्कार दिया जाता है। बाकी प्रतिभागियों को भी सांत्वना पुरस्कार दिया जाता है।

प्रत्येक वर्ष 100 से 150 के बीच डाला आता है। गीत संगीत का भी कार्यक्रम होता है। अंत में सभी कोई साथ में रात्रि भोजन करते हैं। निशा झा (मिथिलानी) ने बताया कि इस बार के कार्यक्रम के लिए हमलोग घर घर जाकर हकार (निमंत्रण) दे रहे हैं। यह कार्यक्रम ईडब्लूएस कालोनी शिवशक्ति मंदिर के पास हरमू मैदान रांची में 7 नवंबर को शाम 6 बजे से होगा। इस कार्यक्रम में रांची में रहने वाले सभी मिथिला वासी शामिल होते हैं।


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