सड़कों पर इंसान, अदालतों में दम तोड़ रहे मुकदमे; सड़क दुर्घटनाओं में मृत के परिजनों को नहीं मिलता मुआवजा!
Road Safety With Jagran यह कहना अनुचित नहीं होगा कि सड़कों पर जिस तरह से इंसान की मौत होती है न्यायालयों में मुकदमे दम तोड़ देते हैं। पुलिस की ओर से सड़क दुर्घटनाओं का पूरा विवरण नहीं दिए जाने के कारण आधे से अधिक मुकदमे आगे नहीं बढ़ पाते।

रांची, राज्य ब्यूरो। Road Safety With Jagran सरकार ने सड़क दुर्घटनाओं में मारे जानेवाले लोगों के परिजनों की सुध लेते हुए मुआवजा का पुख्ता प्रबंध किया है। आपदा प्रबंधन के माध्यम से यह राशि पीड़ित परिवार को देने की व्यवस्था की गई है लेकिन कम ही लोगों को यह राहत मिल पाती है। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि सड़कों पर जिस तरह से इंसान की मौत होती है, न्यायालयों में मुकदमे दम तोड़ देते हैं। इसमें सबसे गलत भूमिका पुलिस की नजर आती है और कई बार पुलिस के माध्यम से सही सूचनाएं अदालतों तक नहीं पहुंचने के कारण ही पीड़ित परिवार मुआवजा से वंचित हो जाता है।
कई मामलों में लोग शिकायत नहीं करने जाते हैं तो कुछ मामलों में पुलिस की ओर से सही-सही जानकारी नहीं दी जाती है। तमाम कारणों से नुकसान आम लोगों का ही हाेता है। जिलों में विधिक सेवा प्राधिकार के माध्यम से कोर्ट में मामला पहुंचता है जहां न्यायाधीश मुआवजे की राशि को लेकर अपना फैसला देते हैं और इसी आधार पर सरकार से राशि भी जारी होती है।
एसडीओ तक सूचना पहुंचने पर मिल सकता है दो लाख मुआवजा
झारखंड सरकार ने व्यवस्था दी है कि सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए लोगों को आपदा राहत कोष से दो लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा। इसके लिए तरीका यह है कि पीड़ित परिवार की ओर से मुआवजा के लिए परिजन एसडीओ के यहा आवेदन देंगे जिसमें दुर्घटना को लेकर सभी प्रकार का विवरण दिया गया होगा। इसके आधार पर एसडीओ संतुष्ट होते ही मुआवजा राशि जारी करने को लेकर निर्देश देते हैं।
अदालतों में लंबा चलता मुकदमा
सड़क दुर्घटनाओं से संबंधित अधिसंख्य मामलों में पीड़ित पक्ष की ओर से जिला विधिक सेवा प्राधिकार आवेदन करता है और इसमें पीड़ित पक्ष को आधे से अधिक मामलों में न्याय मिलता है और परिजनों को मुआवजा मिल जाता है। कुछ मामलों में मुकदमा लंबा चलता है और वर्षों तक पीड़ित परिवार को इंतजार करना पड़ता है। ऐसे मामलों में अब त्वरित निदान को लेकर केंद्र एव राज्य सरकार गंभीरता दिखा रही है।
शहरों में जागरुक हो रहे लोग, गांवों में सुध नहीं
शहरी क्षेत्रों में लोग जागरुक हो रहे हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में ऐसे मामलों को लेकर कोई सुध लेनेवाला भी नहीं। पीड़ित परिवार भी इसे अपनी किस्मत मानकर घर में बैठ जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि डालसा के अलावा कोई भी सार्वजनिक संगठन इसमें पीड़ितों की मदद करने के लिए आगे भी नहीं आ रहा।
पिछली तिमाही (अप्रैल से जून 2022) में जिलावार स्थिति
- जिला का नाम - कितने मुकदमे - कितने को राहत
- बोकाराे - 42 - 15
- चाईबासा - 32 - 12
- चतरा - 11 - 12
- देवघर - 39 - 04
- धनबाद - 99 - 52
- दुमका - 23 - 21
- गढ़वा - 11 - 02
- गिरिडीह - 25 - 15
- गोड्डा - 19 - 08
- गुमला - 28 - 01
- हजारीबाग - 28 - 17
- पूर्वी सिंहभूम - 63 - 51
- जामताड़ा - 0 - 01
- खूंटी - 02 - 00
- कोडरमा - 12 - 01
- लातेहार - 05 - 00
- लोहरदगा - 07 - 11
- पाकुड़ - 23 - 12
- पलामू - 25 - 15
- रामगढ़ - 13 - 03
- रांची - 123 - 99
- साहिबगंज - 12 - 03
- खरसावां - 00 - 02
- सिमडेगा - 05 - 02
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