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    Jharkhand Netarhat Story : आप भी आइए, परिवार बच्चों को साथ लाइए, क्योंकि अब बदल गया है झारखंड, नेतरहाट की कहानी

    By Sanjay KumarEdited By:
    Updated: Thu, 27 Jan 2022 07:21 AM (IST)

    Jharkhand Netarhat Story एक समय था कि नेतरहाट में भय व अविश्वास के कारण हर अनजान सख्श में उग्रवादी अक्स दिखता था। एक छोटा सा कागज के टुकड़े पर नक्सलियों के नाम पर बंद लिख देने से ट्रेनों के पहिए थम जाते थे अब सैलानी बिंदास घूम रहे है।

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    Jharkhand Netarhat Story : अब बदल गया है झारखंड का नेतरहाट

    रांची, (कंचन कुमार)। Republic Day Special : सुशील बाबू अचानक चौंक गए। समझ में नहीं आ रहा था, हो क्या रहा है। वे पटना से डालटनगंज (पलामू) के लिए रात में बस से निकले थे। झारखंड में घुसने के पहले ही बस के आगे की दो लाइटों के अलावा पीछे एवं दोनों साइड से दूर तक रोशनी करने वाली लाइटें जल उठीं। लगभग 500 मीटर की दूरी तक चारों दिशाओं में उजाला हो गया। बस में बैठे दो राइफलधारी सुरक्षा गार्ड भी सतर्क हो गए। पीछे वाली सीट पर उनकी पत्नी एवं बच्चा बैठा था। जबकि बगल में पलामू का कोई व्यक्ति सफर कर रहा था।

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    बस में इस तरह से चारों ओर लाइट का जलना उन्होंने पहली बार देखा था। बगल में बैठे यात्री से उन्होंने कारण पूछा। जवाब मिला, हमलोग उग्रवादियों के प्रभाव वाले क्षेत्र में हैं। लुटेरों का भी डर रहता है। दूर तक देखने के लिए या यात्री बस होने का संकेत देने के लिए इस तरह लाइट का उपयोग किया जाता है।

    सुधीर बाबू (डाक्टर एसके सिंह) पटना में प्राध्यापक हैं। अपनी पत्नी भारती सिंह एवं बच्चा को साथ लेकर गर्मी की छुट्टियां बिताने डालटनगंज अपने रिश्तेदार के यहां जा रहे थे। वहां से बेतला तथा नेतरहाट घूमने जाने की योजना थी। बगल के यात्री की बात सुन काफी डर गए। पलामू व झारखंड में सुरक्षा को लेकर मन में कई तरह के सवाल उठ रह थे।

    डालटनगंज पहुंचने के बाद दूसरे दिन अपने रिश्तेदार के साथ बोलेरो गाड़ी से नेतरहाट के लिए निकले। रास्ते में गारु थाना है। थाना के समीप पुलिस ने बैरियर लगा रखा था। थाना के अंदर ही बने मोर्चे पर तैनात जवान बिल्कुल ही चौकस नजर आ रहे थे। बैरियर पर गाड़ी पहुंचते ही जवान ने इसे उठाकर गाड़ी निकालने का इशारा किया। लेकिन मोर्चा से बाहर नहीं आया। जवान के हाव भाव से सुशील बाबू के मन में फिर आशंकाएं बढ़ने लगीं।

    उन्होंने चालक अमर से इसका कारण पूछा। चालक ने बताया, इधर नक्सलियों का आतंक है। वह पुलिस वालों को भी टारगेट करते हैं। इसलिए जवान मोर्चा से बाहर नहीं निकलते। बात 2006 की है। उस समय पलामू प्रमंडल समेत चतरा, लोहरदगा, गुमला सिमडेगा एवं राज्य के कई जिलों में एक छोटा सा कागज के टुकड़े पर नक्सलियों के नाम पर बंद लिख देने से ट्रेनों के पहिए थम जाते थे। सड़कें सूनी हो जाती थीं। बाजार में सन्नाटा पसर जाता था। जिंदगी ठहर सी जाती थी। खौफ के साए में सुशील बाबू महुआडांड़ पहुंचे। वहां से एक पत्रकार मित्र साथ हो गया। दोनों अलग-अलग गाडिय़ों में नेतरहाट पहुंचे।

    पलामू बंगला में ठहरने की व्यवस्था थी। अपने कमरे में सामान रखा और परिवार के साथ सनसेट प्वाइंट देखने निकल गए। आगे पत्रकार मित्र की गाड़ी थी। नेतरहाट थाना पहुंचते ही पत्रकार की गाड़ी अंदर चली गई। इन्हें रुकने के लिए कहा गया। करीब आधा घंटा बाद थाना से वज्र वाहन एवं काफी संख्या में सुरक्षा बल निकला। दरअसल पत्रकार मित्र ने पुलिस को इनके बारे में अपना रिश्तेदार के अलावा वीआइपी होने की बात बताई थी। इसलिए दिखावे के लिए ही सही, लेकिन सुरक्षा कड़ी कर दी गई। इस तरह की सुरक्षा देखकर सुशील बाबू को अब पूरा समझ में आ गया था कि यहां लोग काफी असुरक्षित हैं।

    सनसेट प्वाइंट पहुंचकर देखा, बच्चे उछल कूद कर रहे हैं। प्रकृति का अनुपम नजारा देखने लोग दूर दूर से आए हुए थे। लेकिन इन्हें अच्छा नहीं लग रहा था। शाम होते ही सैलानी नक्सलियों की बात आते ही सहम जाते थे। सुशील बाबू लौट कर पलामू बंगला पहुंचे। शाम में नेतरहाट थाना के एक पुलिस अधिकारी पहुंचे।

    सुशील बाबू से परिचय हुआ। इसके बाद अधिकारी ने अपनी बहादुरी का बखान शुरू कर दिया ।

    उन्होंने बताया किस तरह से उग्रवादियों ने पलामू बंगला को घेरकर हमला कर दिया था। पुलिस के जवानों ने उन्हें वहां से हटाया। अभी भी आसपास में उग्रवादियों का दबदबा है। पुलिसवालों की बहादूरी गाथा ने उनके मन में बैठे डर को और बढ़ा दिया। दे शाम अंधेरा होते ही अपने कमरे में चले गए। खिड़की खुली थी। तभी हथियार लिए केहुनियों के बल चलते हुए कुछ लोगों को आते देखा। उनकी संख्या लगभग एक दर्जन थी। आते ही बंगले को चारो ओर से घेर लिया। कुछ मोर्चा पर चढ़ गए व कुछ ने बंगले के आसपास पॉजिशन ले लिया।

    अब सुशील बाबू को समझ में आ गया था कि वे उग्रवादियों से पूरी तरह घिर गए हैं। बचने का कोई रास्ता नहीं है। उन्होंने अपनी पत्नी को बताया। पूरी रात जाकर विदाई। सांस छोड़ने में भी डर रहे थे, कि कहीं आवाज बाहर न चली जाए। सुबह होने पर पूरी स्थिति की जानकारी अपने पत्रकार मित्र को दी। पत्रकार मित्र ने समझाया कि घुटनों के बल आए उग्रवादी नहीं बल्कि सीआरपीएफ के जवान थे। वे बंगले की सुरक्षा में लगाए गए हैं।

    दूसरे दिन सुधीर बाबू अपने पत्रकार मित्र एवं बीवी-बच्चों के साथ घूमने नेतरहाट विद्यालय गए। वहां अजीब सी शांति दिखी। बच्चे अध्ययन में लगे थे। दूसरे दिन उन्हें लौटना था। लेकिन संयोग से नक्सलियों ने दो दिनों के लिए बंद कॉल कर दिया। चाह कर भी निकाल नहीं सकते थे। चालक ने गाड़ी ले जाने से साफ मना कर दिया। नेतरहाट के आसपास घूमने लायक बहुत सारे पर्यटन स्थल थे। लेकिन सभी सैलानी बंगले एवं होटलों में ही कैद हो गए।

    दिल में खौफ का आलम यह था कि बकरियां चरा रहे या जंगलों से लकड़ुियां काटकर ले जा रहे हर अनजान सख्श में उन्हें उग्रवादी अक्स दिखता था। भय व अविश्वास के बादल में पहाड़ों की रानी नेतरहाट की अनुपम छटा भी उन्हें डरावनी लग रही थी। पटना से किसी मित्र या परिचित का कॉल आता तो कहते - मैं तो यहां आकर मुसीबत में फंस गया हूं। अब कभी यहां आने की नहीं सोचूंगा। किसी तरह समय बीता। अब लौटने की घड़ी आ गई थी। इतने दिनों में पुलिस अधिकारी से काफी मित्रता हो गई थी। उन्होंने कहा कि जाते समय मिलने जरूर आएंगे। लेकिन अचानक अधिकारियों के निर्देश पर छापेमारी के लिए निकल पड़े थे।

    इधर सुशील बाबू अपने परिवार के साथ डालटनगंज के लिए निकले। रास्ते में आर्मी ड्रेस में कुछ जवानों ने गाड़ी रोकने का इशारा किया। बियाबान जंगल क्षेत्र था। अब एक बार फिर उन्हें विश्वास हो गया कि वे उग्रवादियों के चंगुल में आ गए हैं। धड़कनें बढ़ गईं। हाथ-पांव कांपने लगे। जवानों ने गाड़ी से उतरने को कहा। आगे मुंह पर काली तौलिया लपेटे पुलिस पदाधिकारी पर नजर पड़ गई। उन्होंने बताया कि वे छापेमारी में निकले हैं। गाड़ियां सर्च कर रहे हैं। उन्होंने सतर्कता के कुछ टिप्स देते निकलने को कहा। डालटनगंज के बाद वे पटना लौट गए।

    लेकिन जब कोई कभी नेतरहाट घूमने की बात कहता, वे मना करते हुए बोल पड़ते थे- जान बची तो लाखो उपाय।

    लगभग 15 वर्षों बाद उनका पुत्र नेतरहाट चलने की जिद पर अड़ गया। दिसंबर 2021 में पुत्र के दबाव में वे जाने के लिए तैयार हुए। पत्नी- पुत्र व के साथ नेतरहाट पहुंचे। लेकिन इस बार नजारा बिल्कुल ही बदला-बदला सा था। रास्ते में कई जगहों पर पुलिस की तैनाती दिखी। सैलानी बेफिक्र बिंदास घूमते दिखे। नेतरहाट पहुंचकर इस खूब मजे किए। रास्ते में बकरियां चरा रहे बच्चों के साथ तस्वीरें खिंचवाईं। कुछ स्थानीय फलों का भी आनंद लिया। इस बीच पटना से किसी परिचित ने फोन पर कमेंट किया- क्यों भाई साहब फिर नेतरहाट में फंस तो नहीं गए। सुशील बाबू ने जवाब दिया- आप भी आइए, परिवार बच्चों को साथ लाइए, खूब मजे कीजिए क्योंकि अब बदल गया है झारखंड।

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