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    सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी उत्सव पर क्या कही महत्वपूर्ण बातें, यहां पढ़ें

    By Jagran NewsEdited By: Sanjay Kumar
    Updated: Wed, 05 Oct 2022 12:17 PM (IST)

    RSS Foundation Day 2022 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आज स्थापना दिवस है। आरएसएस के सरसंघचालक डाक्टर मोहन भागवत ने बुधवार को नागपुर में आयोजित विजयादशमी ...और पढ़ें

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    RSS Foundation Day 2022: विजयादशमी उत्सव पर सरसंघचालक मोहन भागवत का नागपुर में संबोधन।

    रांची, [संजय कुमार]। RSS Foundation Day 2022 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डाक्टर मोहन भागवत ने बुधवार को नागपुर में आयोजित विजयादशमी उत्सव पर नारी शक्ति, देश की वर्तमान स्थिति, संघ की स्थिति, मातृभाषा, बच्चों को संस्कार, स्वावलंबी भारत, स्वरोजगार सहित कई विषयों पर अपनी बातें रखीं। लगभग डेढ़ घंटे के संबोधन में उन्होंने नई जनसंख्या नीति पर अगले 50 वर्षों को ध्यान में रखते हुए नीति बनाने का आह्वान किया, तो स्वरोजगार को बढ़ावा देने पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने नारी शक्ति को आगे बढ़ाने पर भी अपने विचार रखे। देश में बढ़ रही अराजक स्थिति पर भी प्रहार किया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पर्वतारोही पद्मश्री संतोष यादव थीं।

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    डाक्टर मोहन भागवत द्वारा कही गई महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार है...

    1. संघ प्रमुख ने कहा कि शक्ति शांति का आधार है। शुभ काम करने के लिए भी शक्ति चाहिए। दूसरे के दुख को दूर करने के लिए भी साधना करना पड़ता है।

    2. संघ के उत्सव में पहले भी नारी शक्ति का आगमन होता रहा है। संघ के कार्यक्रमों में अतिथि के नाते समाज की महिलाओं की उपस्थिति की परंपरा पुरानी है। व्यक्ति निर्माण की शाखा पद्धति पुरुष और महिला के लिए संघ तथा राष्ट्र सेविका समिति पृथक करती है बाकी सभी कामों में महिला और पुरुष साथ मिलकर ही कार्य करते हैं। मातृशक्ति की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। उनकी सक्रियता के दायरे को सीमित नहीं किया जा सकता है। देश पर आक्रमण के समय उन्हें पर्दा में रखा गया लेकिन अब सक्रिय करने की आवश्यकता है। कई काम ऐसे हैं जो मातृशक्ति कर सकती हैं, वह पुरुष नहीं कर सकता। इसलिए सभी कामों में उनको बराबरी की भागीदारी मिलनी चाहिए। इसे अपने परिवार से शुरू करना है। 2017 में विभिन्न संगठनों में काम करने वाली महिला कार्यकर्ताओं ने भारत की महिलाओं का सर्वांगीण सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के निष्कर्षों में भी मातृशक्ति के प्रबोधन, सशक्तीकरण तथा उनकी समान सहभागिता की आवश्यकता अधोलिखित होती है।

    3. भारत की प्रतिष्ठा विश्व में बढ़ी है। संकट में घिरे श्रीलंका की हमने सहायता की तो रूस यूक्रेन युद्ध में हमारी नीति सराहनीय रही। हमारी बातों को आज विश्व में सुना जा रहा है।

    4. राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में हम स्वाबलंबी होते जा रहे हैं। हमारी अर्थव्यवस्था ठीक हो रही है। खेल के क्षेत्र में हमारी नीतियां अच्छी बनी है। ओलंपिक और पैरालंपिक खेल में हमने बेहतर किया है। नई दिल्ली में कर्तव्य पथ के उद्घाटन के समय प्रधानमंत्री के भाषण का भी उन्होंने उल्लेख किया और कहा आत्मनिर्भर भारत की आहट दिख रही है।

    5. मातृभाषा पर संघ प्रमुख ने कहा कि नई शिक्षा नीति में यह लागू हो रहा है परंतु क्या हम अपने बच्चों को मातृभाषा में पढ़ाने के लिए भेजते हैं। अंग्रेजी करियर के लिए आवश्यक नहीं है। आज देश में शासन प्रशासन में काम करने वाले 80% लोग मातृभाषा में पढे हैं । नई शिक्षा नीति के कारण एक छात्र मनुष्य बने, उसमें देशभक्ति की भावना जगे, वह सुसंस्कृत नागरिक बने यह हम सभी चाहते हैं। संस्कार बच्चों में अपने घर से ही दे सकते हैं।

    6. स्वास्थ्य पर उन्होंने कहा कि सबको सस्ता और सुलभ चिकित्सा मिले यह प्रयास है। हम स्वस्थ रहें इसके लिए योग करना चाहिए। स्वच्छता और पर्यावरण को लेकर अपनी आदत बदलनी होगी। समाज जब तक सहयोग नहीं करता व्यवस्था नहीं बनती । समाज में समानता लाने के लिए कानून तो है पर मन से जब तक विषमता हटाएंगे नहीं तब तक यह लागू नहीं होगा। वह घोड़ी पर नहीं चलेगा या विचार त्यागना होगा।

    7. स्वरोजगार बढ़ाने वाली अर्थव्यवस्था हो इस पर हमें ध्यान देना होगा । सरकार 10 से 30% लोगों को ही नौकरियां उपलब्ध करा सकती है। इसलिए हमें उधमिता को बढ़ावा देने के लिए काम करना होगा। आर्थिक क्षेत्र में काम करने वाले कई संगठन समाज के साथ मिलकर स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं। देश के 275 जिलों में प्रशिक्षण एवं रोजगार उपलब्ध कराने के लिए काम शुरू हो चुका है। लघु उद्योग, सहकारिता व कृषि के क्षेत्र में रोजगार ज्यादा है । सरकार अपना दायित्व निभा रही है लेकिन हमारी भी जिम्मेदारी है कि स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए हम लोग काम करें।

    8. देश में जनसंख्या नीति सारी बातों का समग्र व एकात्म विचार करके बने। यह सभी पर समान रूप से लागू हो। लोकप्रबोधन द्वारा इसके पूर्ण पालन की मानसिकता बनानी होगी। तभी जनसंख्या नियंत्रण के नियम परिणाम ला सकेंगे। उन्होंने कहा कि जब-जब किसी देश में जनसांख्यिकी असंतुलन होता है तब-तब उस देश की भौगोलिक सीमाओं में भी परिवर्तन आता है। जन्मदर में असमानता के साथ-साथ लोभ, लालच, जबरदस्ती से चलने वाला मतांतरण व देश में हुई घुसपैठ भी बड़े कारण है। जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ पंथ के आधार पर जनसंख्या संतुलन भी महत्व का विषय है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक भूभाग में जनसंख्या में संतुलन बिगड़ने का परिणाम है कि इंडोनेशिया से ईस्ट तिमोर, सुडान से दक्षिण सुडान व सर्बिया से कोसोवा नाम से नये देश बन गये। जनसंख्या नीति बनाते समय अगले 50 वर्षों की स्थिति को ध्यान में रखना होगा। चीन आज बुढा हो गया है जबकि जबकि भारत में 57 प्रतिशत युवा है।

    9. जब देश के हित में या दुर्बलों के हित में अपने स्वार्थ को छोड़ना पड़े, वहां इस त्याग के लिए जनता सदैव तैयार रहे इसलिए समाज में स्व का बोध व गौरव जगाए रखने की आवश्यकता होती है।

    10. "ना भय देत काहू को ना भय जानत आप" ऐसा हिंदू समाज खड़ा हो यह समय की आवश्यकता है। यह किसी के विरुद्ध नहीं है। संघ पूरे दृढ़ता के साथ आपसी भाईचारा, भद्रता व शांति के पक्ष में खडा है। हमने अपनी प्रार्थना में हमको कोई जीत नहीं सकते इसके लिए शक्ति मांगी है, किसी को जीते इसके लिए नहीं।

    11. समाज को तोड़ने का प्रयास चल रहा है। अभी पिछले दिनों उदयपुर, अमरावती आदि जगहों में एक अत्यंत ही जघन्य एवं दिल दहला देने वाली घटना घटी। सारा समाज स्तब्ध रह गया। अधिकांश समाज दु:खी एवं आक्रोशित था। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो यह सुनिश्चित करना होगा।  उदयपुर घटना के बाद मुस्लिम समाज में से भी कुछ प्रमुख व्यक्तियों ने अपना निषेध प्रगट किया। यह निषेध अपवाद बन कर ना रह जाए, अपितु अधिकांश मुस्लिम समाज का यह स्वभाव बनना चाहिए। हिंदू समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसी घटना घटने पर हिंदू पर आरोप लगे तो भी मुखरता से विरोध और निषेध प्रगट करता है।

    12. कहा कि भाई टूटे धरती खोई मीठे धर्म संस्थान यह विभाजन का जहरीला अनुभव लेकर कोई भी सुखी तो नहीं हुआ। हम भारत के हैं, भारतीय पूर्वजों के हैं, भारत की सनातन संस्कृति के हैं, समाज और राष्ट्रीयता के नाते एक हैं यही हमारा तारक मंत्र है‌ हमें मिलकर भारत को परम वैभव पर ले जाना है।

    13. समाज के विभिन्न वर्गों में स्वार्थ व द्वेष के आधार पर दूरियां और दुश्मनी बनाने का काम स्वतंत्र भारत में भी चल रहा है। उनके बहकावे में ना आते हुए उनकी भाषा, पंथ, प्रांत, नीति कोई भी हो उनके प्रति निर्मोही होकर निर्भयता पूर्वक उनका निषेध व प्रतिकार करना चाहिए। अज्ञान असत्य, द्वेष अथवा स्वार्थ के कारण संघ के विरुद्ध जो प्रचार चलता है उसका प्रभाव कम हो रहा है, क्योंकि संघ की व्याप्त व समाज संपर्क में यानी संघ की शक्ति में लगातार वृद्धि हुई है।