Jharkhand High Court: नाबालिग से दुष्कर्म के अभियुक्त की सजा बरकरार, 23 साल पहले घटी थी घटना
झारखंड हाई कोर्ट ने दुमका जिले में 23 साल पुराने नाबालिग दुष्कर्म मामले में रवींद्र प्रसाद की अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने 2003 में दुमका कोर्ट द्वारा स ...और पढ़ें

अदालत ने दुमका कोर्ट के वर्ष 2003 में सुनाई गई सात साल कारावास की सजा को सही ठहराया
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एके राय की अदालत ने 14 वर्षीया नाबालिग से दुष्कर्म के 23 साल पुराने मामले में सजायाफ्ता रवींद्र प्रसाद की अपील खारिज कर दी है।
अदालत ने दुमका कोर्ट के वर्ष 2003 में सुनाई गई सात साल कारावास की सजा को सही ठहराया और अपीलकर्ता को तत्काल कोर्ट में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है।
अपीलकर्ता अभी जमानत पर था। अदालत ने कहा कि इस मामले में पीड़िता की गवाही विश्वसनीय है और उसे अस्वीकार करने का कोई आधार नहीं है।
घटना 12 मार्च 2002 की है। दुमका के मसालिया थाना क्षेत्र में शिवरात्रि मेले के दौरान पीड़िता अपने पिता की मिठाई की दुकान पर थी। रात करीब 8:30 बजे वह शौच के लिए निकली। इसी दौरान पड़ोस में रहने वाला आरोपित रवींद्र प्रसाद उसे जबरन बगल के सुनसान स्थान पर ले गया और दुष्कर्म किया।
पीड़िता किसी तरह घर पहुंची और मां व बुआ को पूरी घटना के बारे में जानकारी दी। अगले दिन गांव में पंचायत हुई। पंचायत में आरोपित ने शादी करने की बात कही थी।
लेकिन बाद में दहेज की मांग के कारण समझौता नहीं हो सका। लगातार दो दिनों तक पंचायत में मामला नहीं सुलझा। इसके बाद 14 मार्च को पीड़िता ने मसालिया थाना में बयान दर्ज कराया।
ट्रायल में कुल आठ गवाहों की गवाही हुई। पीड़िता का बयान, उसके माता-पिता और बुआ की गवाही अदालत को विश्वास दिलाने के लिए पर्याप्त मानी गई।
पलोजोरी गर्ल्स हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक द्वारा जारी जन्मतिथि प्रमाणपत्र में पीड़िता की जन्मतिथि तीन जून 1987 दर्ज है। अदालत ने इसे विश्वसनीय मानते हुए घटना के समय उसकी उम्र 14 वर्ष नौ माह मानी।
निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील करते हुए अपीलकर्ता की ओर से कहा गया कि इस मामले में प्राथमिकी दो दिन देर से हुई है। मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता की उम्र 15-16 वर्ष बताई गई है। कोई कपड़ा जब्त नहीं हुआ है।
निचली अदालत ने पूरे तथ्यों पर गौर किए बिना फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे मामलों में पंचायत के कारण देरी होना सामान्य है। मेडिकल रिपोर्ट ठीक से साबित नहीं हुई, इसलिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
स्कूल प्रमाणपत्र उम्र का अधिक विश्वसनीय आधार है। अदालत ने कहा कि पीड़िता ने घटना का सीधा और स्पष्ट वर्णन किया है और उसका बयान किसी भी बुनियादी विसंगति से मुक्त है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि यदि पीड़िता की गवाही भरोसेमंद हो, तो अकेली गवाही से भी दोषसिद्धि संभव है। अदालत ने प्रार्थी की अपील खारिज करते हुए तुरंत आत्मसमपर्ण करने का निर्देश दिया।

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