रैंकिंग में चार पायदान ऊपर पहुंचा झारखंड, प्रमाणीकरण की दर हुई दोगुनी; पढ़ें पूरी रिपोर्ट
झारखंड में मृत्यु प्रमाणीकरण की दर में सुधार हुआ है जो पिछले पांच सालों में दोगुनी हो गई है। हालांकि अभी भी कई राज्य इससे आगे हैं। वर्ष 2022 में राज्य में 9.7 प्रतिशत मृत्यु का चिकित्सीय प्रमाणीकरण हुआ। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड अब इस मामले में 18वें स्थान पर है। मृत्यु प्रमाणीकरण स्वास्थ्य योजनाओं के लिए महत्वपूर्ण है।

नीरज अम्बष्ठ, रांची। जन्म एवं मृत्यु निबंधन अधिनियम, 1979 के तहत अस्पतालों में होनेवाली मृत्यु के कारणों का चिकित्सीय प्रमाणीकरण (सर्टिफिकेशन) अनिवार्य है ताकि पता चले कि किसी व्यक्ति की मृत्यु किस बीमारी से हुई। इसमें झारखंड कई राज्यों से पीछे रहकर भी सुधार किया है। पिछले पांच वर्षों में मृत्यु के प्रमाणीकरण की दर बढ़कर दोगुनी हो गई है।
वहीं, रैंकिंग की बात करें तो यह चार पायदान ऊपर चढ़ते हुए 18वें स्थान पर पहुंच गया है। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने हाल ही में वर्ष 2022 में देश के विभिन्न राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में हुई मौत के आधार पर ''मेडिकल सर्टिफिकेशन आफ काउजेज आफ डेथ'' की रिपोर्ट जारी की है, जिसमें ये तथ्य सामने आए हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में वर्ष 2017 में कुल 4.7 प्रतिशत मृत्यु (निबंधित) का ही चिकित्सीय प्रमाणीकरण हुआ था। वर्ष 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 9.7 प्रतिशत हो गया है। वर्ष 2017 में मृत्यु के प्रमाणीकरण में झारखंड का स्थान देश के बड़े राज्यों में 20वां था।
अब इस मामले में झारखंड 18वें स्थान पर पहुंच गया है। भले ही मृत्यु के प्रमाणीकरण में झारखंड ने प्रगति की है, लेकिन अन्य राज्यों से तुलना करें तो इस मामले में अभी भी झारखंड काफी पीछे है। पूरे देश की बात करें तो वर्ष 2022 में 22.3 प्रतिशत मृत्यु का प्रमाणीकरण हुआ।
गोवा में लगातार शत-प्रतिशत मृत्यु का प्रमाणीकरण होता है। कई अन्य राज्य व केंद्र शासित प्रदेश हैं, जहां 50 प्रतिशत से अधिक मृत्यु का चिकित्सीय प्रमाणीकरण होता है।
प्रमाणीकरण के लिए चीफ मेडिकल ऑफिसर होते हैं रजिस्ट्रार
केंद्र द्वारा संचालित मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ काउजेज आफ डेथ (एमसीसीडी) कार्यक्रम के तहत सभी मृत्यु के कारणों का चिकित्सकीय प्रमाणीकरण किया जाता है, जिसमें मौत के कारणों का स्पष्ट रूप से जिक्र होता है।
इसके लिए अस्पतालों में फार्म-4 और अस्पताल के बाहर होनेवाली मौत में 4-ए फार्म भरे जाते हैं। यह प्रमाणीकरण उस चिकित्सक द्वारा किया जाता है जो किसी मरीज की मृत्यु के समय उपस्थित होता है।
रिपोर्टिंग के लिए सभी सरकारी व निजी अस्पतालों के चीफ मेडिकल ऑफिसर को रजिस्ट्रार बनाया गया है, लेकिन अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के कारण अब भी लगभग 90 प्रतिशत मृत्यु का चिकित्सीय प्रमाणीकरण नहीं हो पाता है।
चिकित्सीय प्रमाणीकरण क्यों?
लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने, इसके लिए योजनाएं तैयार करने तथा चिकित्सा से संबंधित शोध में किसी प्रदेश में होनेवाली मौत के आंकड़े काफी महत्वपूर्ण होते हैं। इन आंकड़ों के आधार पर ही केंद्र व राज्य सरकारें स्वास्थ्य की बेहतरी की रणनीति तैयार करती हैं तथा योजनाएं लागू करती हैं।
कब कितने प्रतिशत मृत्यु का हुआ प्रमाणीकरण
वर्ष प्रमाणीकरण
2013 0.4
2014 0.8
2015 1.4
2016 3.7
2017 4.7
2018 4.6
2019 5.8
2020 6.1
2021 7.8
2022 9.7
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