Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'सहमति से बने संबंध को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता', रांची हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

    Updated: Sun, 14 Sep 2025 06:56 PM (IST)

    रांची हाई कोर्ट ने कहा कि सहमति से बने संबंध को दुष्कर्म नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने लिव-इन में रह रही महिला की प्राथमिकी रद्द की क्योंकि वे 2014 से 2023 तक साथ थे। महिला ने साथी पर दुष्कर्म और पैसे वापस न करने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में आपराधिक कार्रवाई न्याय का दुरुपयोग है।

    Hero Image
    रांची हाई कोर्ट ने रद्द की लिव इन में रह रही महिला की FIR। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एके चौधरी की अदालत ने एक फैसले में कहा है कि सहमति से बने संबंध को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता। अदालत ने इस निर्देश के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही महिला की ओर से दर्ज कराई गई प्राथमिकी निरस्त कर दी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जस्टिस एके चौधरी की अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अभियुक्त और सूचक लगभग दस वर्षों (2014 से 2023) तक पति-पत्नी की तरह साथ रहे। इस दौरान सहमति से संबंध बने, जिसे दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता।

    महिला ने दर्ज कराया था दुष्कर्म का केस

    रांची के बुढ़मू थाना क्षेत्र में लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रही महिला ने साथी पर केस दर्ज कराया था। दर्ज प्राथमिकी में धारा 376 (दुष्कर्म) और 406 (आपराधिक न्यासभंग) भारतीय दंड संहिता के तहत आरोप लगाए गए थे।

    आरोपित पर तीन लाख रुपये वापस नहीं करने का भी आरोप लगाया था। जिस पर पुलिस ने कार्रवाई करते हुए आरोपित मतीयस सांगा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। जिसके बाद मतियास सांगा ने हाई कोर्ट में क्रिमिनल रिट याचिका दायर की प्राथमिकी निरस्त करने का आग्रह किया।

    प्रार्थी के अधिवक्ता सूरज किशोर प्रसाद ने दलील देते हुए कहा कि दोनों पक्ष वयस्क हैं और 2014 से 2023 तक पति-पत्नी की तरह साथ रहते थे। ऐसे में यह मामला आपसी सहमति से बने संबंध का है।

    वहीं, महिला द्वारा दिया गया तीन लाख रुपये एक दोस्ताना ऋण था, जिसे लौटाने में असमर्थता को आपराधिक अपराध नहीं माना जा सकता।

    सरकार की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक ने इसका विरोध किया और कहा कि आरोपित के खिलाफ स्पष्ट आरोप हैं, इसलिए मामला खारिज नहीं होना चाहिए।

    अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय महेश्वर तिग्गा बनाम राज्य झारखंड तथा सोनू उर्फ सुभाष कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के केस का हवाला देते हुए कहा कि दीर्घकालीन शारीरिक संबंध में सहमति स्वतः सिद्ध होती है।

    झारखंड हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह की आपराधिक कार्रवाई का जारी रहना न्याय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। पूरी प्राथमिकी और उससे जुड़ी कार्यवाही को निरस्त करने का आदेश दिया जाता है।

    यह भी पढ़ें- SIR पर बिहार के बाद अब झारखंड में राजनीतिक घमासान, सत्ता और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप जारी

    यह भी पढ़ें- Litchi Farming: लीची की खेती में आत्मनिर्भरता की ओर झारखंड , मनरेगा के तहत 336 पंचायतों में होगी खेती