Jharkhand: शराब घोटाले में सनसनी फैलाकर बैकफुट पर आई ACB, जांच पर उठे सवाल
रांची में 38 करोड़ के शराब घोटाले में एसीबी की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि एसीबी ने जांच में ढिलाई बरती जिससे आरोपियों को जमानत मिल रही है। उत्पाद विभाग के संयुक्त आयुक्त गजेंद्र सिंह और आईएएस विनय कुमार चौबे को पहले ही जमानत मिल चुकी है। अब अन्य आरोपियों को भी जमानत मिलने की संभावना है।

राज्य ब्यूरो, रांची। राज्य में 38 करोड़ रुपये के शराब घोटाले का सनसनी फैलाकर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) बैकफुट पर है। एसीबी की कार्यशैली अब चर्चा में है। लोग तो यह भी कहने लगे हैं कि निष्पक्ष जांच का ढोल तो सिर्फ दिखावे के लिए बजाया जा रहा था, मकसद तो कुछ और था।
यही वजह है कि एसीबी ने जिन्हें जेल भेजा, उनके विरुद्ध चार्जशीट दाखिल नहीं की। अब एक-एककर सबको जमानत का कानूनी लाभ मिलता जा रहा है। सबसे पहले उत्पाद विभाग के संयुक्त आयुक्त उत्पाद गजेंद्र सिंह को जमानत का लाभ मिला था।
अब उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग के पूर्व प्रधान सचिव निलंबित आइएएस अधिकारी विनय कुमार चौबे को जमानत मिला। एक दिन के बाद जेल भेजे गए उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग के पूर्व महाप्रबंधक सुधीर कुमार दास, पूर्व महाप्रबंधक वित्त सह अभियान सुधीर कुमार व प्लेसमेंट एजेंसी मार्शन के स्थानीय प्रतिनिधि नीरज कुमार सिंह को भी जमानत का कानूनी लाभ मिल जाएगा।
उनकी गिरफ्तारी के भी 90 दिन मंगलवार को पूरे हो चुके हैं और एसीबी ने अब तक इस मामले में चार्जशीट दाखिल नहीं किया है। एसीबी ने इन्हें 21 मई को गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में जेल भेजा था।
एसीबी ने पीई जांच में जो किया था दावा
एसीबी ने पीई जांच के आधार पर ही 20 मई को प्राथमिकी दर्ज की थी। एसीबी ने पीई जांच में दावा किया था कि उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव सह जेएसबीसीएल के तत्कालीन निदेशक विनय कुमार चौबे, तत्कालीन संयुक्त आयुक्त उत्पाद गजेंद्र सिंह व अन्य ने मिलकर आपराधिक साजिश रची।
आरोपितों ने पद का दुरुपयोग करते हुए प्लेसमेंट एजेंसियों के चयन की प्रक्रिया एवं प्रविधान का समुचित अनुपालन नहीं किया।
आपराधिक मिलीभगत से कूटरचना कर सरकार के साथ जालसाजी धोखाधड़ी कर सामूहिक अपराध किया और प्लेसमेंट एजेंसियों को अनैतिक लाभ पहुंचाया। इसका परिणाम यह हुआ कि झारखंड सरकार को लगभग 38 करोड़ का नुकसान पहुंचा।
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