बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोईः शेषनरायण
बिनु सत्संग विवेक न होई राम कृपा बिनु सुलभ न सोई। यह बातें रेलीगढ़ा में

बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोईः शेषनरायण
संवाद सूत्र, गिद्दी (रामगढ़) : बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई। यह बातें रेलीगढ़ा में श्रीश्री शिव, हनुमान, राधा-कृष्ण प्राण-प्रतिष्ठा एवं भागवत परायण महायज्ञ में रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा वर्णन का वाचन करते हुए श्रीश्री 1008 शेषनरायण शंकराचार्य ने कही। शेषनरायण शंकराचार्य ने कहा कि इसका अर्थ है कि बिना सत्संग के व्यक्ति के भीतर विवेक (बुद्धि) की उत्पत्ति नहीं होती है तथा बिना राम कृपा के यह संभव नही है। राम कृपा का महात्म्य भी अनंत है। क्योंकि जब भगवान हनुमान सीता माता की खोज के लिए समुद्र लांघ कर लंका में प्रवेश कर रहे थे तब उनकी भेंट वहां की पहरेदार राक्षसी लंकिनी से हुई। वह दुष्ट पवनपुत्र हनुमान जी को रोकने लगी तब महावीर हनुमान जी ने उसे एक मुष्टिका(मुक्का) मारी और उसे ज्ञान प्रदान किया। और उसने उस दिव्य राम नाम ज्ञान को सुनकर कहा की सत्संग तो अनमोल है। ऐसे ही कई श्लोक व उसके अर्थ बताया। कहा कि अगर स्वर्ग तथा उसके भी ऊपर जो लोक है उनके सुखो को तराजू के एक तरफ रख दिया जाए और एक तरफ एक घड़ी का सत्संग का सुख रखा जाए तो दूसरे पलड़े का भार बहुत अधिक होगा। सत्संग की महिमा का वर्णन करते हुए कहते है कि ‘एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आधी,’ ‘तुलसी संगत साधु की हरे कोटि अपराध’। अर्थात अगर हम संतो के संगति में एक घडी, आधी घड़ी या फिर उसकी आधी घड़ी भी बैठते हैं तो हमसे होने वाले करोङ़ांे पापो का हरण होता है। कहा कि इसलिए सत्संग करने से लाभप्रद होता है। मौके पर सैकड़ों महिला-पुरूष व बच्चें मौजूद थे।
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