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    Jharkhand: सरकार को नहीं करना चाहता था अस्थिर इसीलिए नहीं लिया निर्वाचन आयोग के मंतव्य पर कोई निर्णय: रमेश बैस

    By Neeraj AmbasthaEdited By: Mohit Tripathi
    Updated: Wed, 15 Feb 2023 10:30 PM (IST)

    राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि झारखंड की सरकार अस्थिर न हो इसलिए उन्होंने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता को लेकर भारत निर्वाचन आयोग के मंतव्य आने पर भी उस पर कोई निर्णय नहीं लिया।

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    रमेश बैस ने कहा, अब नए राज्यपाल ही निर्वाचन आयोग के मंतव्य पर लेंगे निर्णय।

    राज्य ब्यूरो, रांची: राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि झारखंड की सरकार अस्थिर न हो, इसलिए उन्होंने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता को लेकर भारत निर्वाचन आयोग के मंतव्य आने पर भी उस पर कोई निर्णय नहीं लिया।

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    उन्होंने कहा कि पूर्व में झारखंड में सरकार अस्थिर होती रही, जिसका परिणाम यहां के विकास कार्यों पर पड़ा। यह स्थिति फिर उत्पन्न न हो, इसलिए ही उन्होंने उस पर कोई निर्णय नहीं लिया।

    नए राज्यपाल लेंगे निर्णय

    उन्होंने कहा कि राज्यपाल के यह अधिकार क्षेत्र में है कि वह किसी विधेयक या संवैधानिक मामले में उचित निर्णय ले। इसकी कोई समय सीमा नहीं होती। उन्हें लगा कि जब समय आएगा तो इसपर निर्णय ले लेंगे लेकिन अब इस मामले में नए राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ही कोई निर्णय ले सकते हैं। अब यह उनपर है कि कब और क्या निर्णय लेते हैं।

    बेबाकी से रखी अपनी बात

    रमेश बैस ने बुधवार को राजभवन में मीडिया से बात करते हुए कई विषयों पर अपनी बेबाक बातें रखीं। बंद लिफाफा नहीं खुलने से सरकार में उथल-पुथल होने और विधायकों के रायपुर तक जाने की घटनाओं तथा इससे सरकार के कामकाज प्रभावित होने के सवाल पर बैस ने कहा कि कोई अपनी छांव से ही डरे तो इसमें वे क्या कर सकते हैं।

    बंद लिफाफे पर क्या कहा

    उन्होंने यह भी कहा कि बंद लिफाफे का ही डर रहा कि सरकार ने पूर्व से कई गुना तेजी से काम निर्वाचन आयोग के मंतव्य आने के बाद किए। इससे प्रदेश को ही लाभ हुआ। राज्य की सवा तीन करोड़ जनता जानना चाहती है कि मुख्यमंत्री की सदस्यता के मामले में आयोग का परामर्श क्या था, इस सवाल पर उन्होंने हंसते हुए कहा कि सिर्फ जनता ही क्याें, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इसे जानना चाहते थे।

    हेमंत सोरेन अच्छे लीडर

    मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को उन्होंने अच्छा लीडर बताते हुए कहा कि उन्होंने हेमंत को कई सुझाव भी दिए थे। उन्हें काफी समझाया था कि वे बहुत कम उम्र में मुख्यमंत्री बने हैं। यदि प्रदेश की जनता की भावना के अनुसार काम करेंगे तो वे काफी आगे जाएंगे।

    मेरी बातों पर गौर करते तो तेजी होता विकास

    उन्होंने कहा, मेरे समझाने के बाद भी वे काम नहीं कर पा रहे हैं तो वे ही बता सकते हैं। यदि हेमंत उन सुझावों पर अमल करते तो राज्य का तेजी से विकास हुआ होता। अपनी उपलब्धियों पर उन्होंने कहा कि जब वे झारखंड आए थे तो विश्वविद्यालयों में शिक्षकों व अधिकारियों के अधिसंख्य पद रिक्त थे।

    उन्होंने अधिकारियों के रिक्त पदों को भरने का काम किया। शिक्षकों की नियुक्ति तथा प्रोन्नति को लेकर परिनियम गठित करवाए। अब विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है।

    1932 के खतियान पर गंभीरता से सोचने की जरूरत

    रमेश बैस ने 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता तय करने संबंधित विधेयक लौटाने पर कहा कि इसपर राज्य सरकार को गंभीरता से सोचने की जरूरत है। झारखंड बना तो बिहार से भी यहां कई लोग आए। सरकार को सोचना चाहिए कि यह लागू हुआ तो उन जिलों में क्या होगा जहां के लोगों के पास यह खतियान नहीं है।

    विधानसभा ही एक बार इस नीति को खारिज कर चुकी है। उच्च न्यायालय गए तो वहां भी निरस्त हो गया। दोबारा विधानसभा से विधेयक पारित कराने से पहले सरकार को सोचना चाहिए था कि इसे लागू होने के बाद क्या नुकसान होगा।

    बैस ने कहा, राज्य में विधि व्यवस्था चौपट

    रमेश बैस ने कहा कि राज्य में विधि व्यवस्था ठीक नहीं है। इसे ठीक करने को लेकर उन्होंने कई बार पुलिस पदाधिकारियों को राजभवन बुलाया। लेकिन उन्हें मलाल है कि वे राज्य में विधि व्यवस्था ठीक नहीं करा सके।

    उन्होंने कहा कि जबतक राज्य में विधि व्यवस्था ठीक नहीं होती तबतक इसका विकास नहीं हो सकता। विधि व्यवस्था ठीक नहीं होने से ही निवेशक या दूसरे राज्य के लोग यहां आने से कतराते हैं।

    कार्य संस्कृति ठीक करने की जरूरत

    रमेश बैस ने कहा कि झारखंड में कार्य संस्कृति ठीक करने की जरूरत है। यहां काम काफी धीमा होता है। झारखंड के राज्यपाल पद की शपथ लेते ही उन्होंने कहा था कि वे झारखंड का विकास करना चाहते हैं। मुख्यमंत्री को सुझाव देकर राज्य को काफी ऊंचाई तक ले जाना चाहते हैं।

    उन्होंने अधिकारियों को राजभवन बुलाकर कई निर्देश भी दिए। लेकिन जिस गति से विकास चाहता था उस गति से नहीं हो पाया। यदि यहां ठीक से काम हो तो झारखंड बीमारू राज्य से बाहर निकल सकता है। उन्होंने कहा कि सुस्त गति से काम करने के कारण ही राज्य सरकार बजट की 45 प्रतिशत राशि ही अभी तक खर्च कर सकी है।

    राजभवन को नहीं बनने दिया भाजपा कार्यकर्ताओं का दफ्तर

    सत्ता पक्ष द्वारा उनपर भाजपा के लिए काम करने के आरोप लगाए जाने के सवाल पर बैस ने कहा कि उन्होंने जो भी काम किया वह संविधान के प्रविधानों के अनुसार ही किया। कहा, कोई आरोप लगाता है तो लगाता रहे। लेकिन सच्चाई यह है कि उन्होंने राजभवन को कभी भाजपा कार्यकर्ताओं का दफ्तर बनने नहीं दिया।

    टीएसी असंवैधानिक, डेढ़ साल में भी सरकार ने नहीं दी नियमावली

    रमेश बैस ने जनजातीय परामर्शदातृ समिति को लेकर भी अपनी बातें खुलकर रखीं। उन्होंने इसे असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि इसकी नियमावली उनके आने से पहले ही गठित हो चुकी थी। जब उन्हें पता चला कि टीएसी का गठन संविधान के प्रविधानों के अनुसार नहीं हुआ है तो सरकार से नियमावली मांगी लेकिन डेढ़ साल में भी वह नियमावली उन्हें नहीं मिली। जब टीएसी के सदस्यों की सूची मंगाई तो पता चला कि सभी 20 सदस्यों का मनोनयन मुख्यमंत्री ने कर दिया था, जबकि दो सदस्यों का मनाेनयन राज्यपाल द्वारा होने चाहिए थे। मुख्यमंत्री को इसपर पत्र लिखा लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। संविधान की पांचवीं अनुसूची में होने के नाते टीएसी की बैठक व एजेंडा तय करने से पहले उसपर राज्यपाल की स्वीकृति ली जानी चाहिए लेकिन उनकी स्वीकृति नहीं ली जाती। उन्होंने कहा कि उन्होंने पांचवीं अनुसूची की समीक्षा में यह बात सामने आई कि आदिवासियों की कल्याणकारी योजनाओं पर वर्ष 2020-21 तथा 2021-22 में राज्य सरकार ने 200 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किए। राशि खर्च नहीं होने तथा उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं देने के कारण केंद्र ने आगे राशि नहीं दी।

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