देवघर का सत्संग आश्रम लाखों लोगों की आस्था का केंद्र, आधुनिक रसोई में बनता सवा लाख श्रद्धालुओं के लिए प्रसाद
Satsang Ashram Deoghar श्री जगन्नाथ धाम के अलावा अमृतसर में श्री हरिमंदिर साहिब की विशाल रसोई हो या फिर देवघर में सत्संग आश्रम की पाकशाला लाखों भक्तों के लिए प्रतिदिन प्रसाद तैयार होता है जो प्रबंधन और तकनीकी कुशलता का भी जीवंत उदाहरण हैं।

आरसी सिन्हा, देवघर: देवघर का सत्संग आश्रम लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। देश-विदेश से बड़ी संख्या में ठाकुर अनुकूल चंद के अनुयायी यहां आते हैं। यहां की रसोई भी विशाल है। यहां श्रद्धालुओं के भोजन के लिए विशेष तौर पर बनाए गए आनंद बाजार नाम के छह मंजिला भवन में एक साथ सवा लाख से अधिक अनुयायी एकसाथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हैं।
सत्संग आश्रम के आचार्य देव अर्कद्युति चक्रवर्ती उर्फ बबाई दा कहते हैं कि वर्ष 1922 में ठाकुर अनुकूल चंद की मां मनमोहिनी देवी ने ढाका के पावना में आश्रम की नींव रखी थी। ठाकुर दो सितंबर 1946 को देवघर आए, तब यहां आनंद बाजार शुरू हुआ। पहले यह एक छोटे भवन में चलता था। बाद में अनुयायियों की बढ़ती संख्या देख दो सितंबर 2012 को छह मंजिला आनंद बाजार का शुभारंभ किया गया। यह वर्ष आनंद बाजार के शताब्दी वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है।
श्री जगन्नाथपुरी धाम की प्रेरणा से हुआ नामकरण: आनंद बाजार के नामकरण की कहानी भी खास है। आचार्य बबाई दा कहते हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता के अनुरोध पर माता मनमोहिनी देवी, ठाकुर अनुकूल चंद और उनके कई शिष्य दो जनवरी 1923 को पुरी गए थे। बोस दंपत्ति के हरनाथ लाज में दो महीने का प्रवास था। वहां जगन्नाथ देव मंदिर के दर्शन किए। वहां रंधनशाला आनंद बाजार में पुरुषोत्तम भोग ग्रहण करने का अभूतपूर्व इंतजाम देखा। यह देख मनमोहिनी देवी ने पावना के हिमायतपुर आश्रम के भोजनागार का नामकरण भी आनंद बाजार के ही नाम पर किया।
नि:शुल्क मिलता है दोनों समय प्रसाद: आश्रम में होने वाले हर उत्सव में दूर-दूर से आने वाले दर्शनार्थियों के अलावा स्थानीय हजारों लोग दोनों बेला आनंद बाजार में प्रसाद पाते हैं। हर दिन आनंद बाजार में प्रसाद में दिन में चावल, दाल और पांच तरह की मिश्रित हरी सब्जियां बनती हैं। रात में चावल, रोटी और विभिन्न तरह की हरी सब्जियां व मिश्रित दाल बनती है। यहां पूरे वर्ष नि:शुल्क प्रसाद वितरण होता है।
लिफ्ट से छह मंजिला भवन के हर तल पर पहुंचता प्रसाद: आचार्य के प्रयास से वर्तमान आनंद बाजार का आधुनिकीकरण हुआ। बेसमेंट में हरी सब्जियों को सुरक्षित रखने के लिए शीत-ताप नियंत्रण की व्यवस्था है। पहली मंजिल पर डीजल चलित चूल्हा है। एक-एक कढ़ाई में एक साथ डेढ़ क्विंटल चावल बनता है। खाना बनाने में अनेक कर्मी जुटते हैं। खाने की सामग्री को विभिनन् मंजिलों तक ले जाने के लिए लिफ्ट है। जो भक्त आराम से ऊपर की मंजिल में जा सकते हैं, उनको वहां भेजा जाता है। जो लोग नीचे बैठकर प्रसाद नहीं ले पाते, उनके लिए कुर्सी-टेबल का इंतजाम होता है। लोग पंक्तिबद्ध होकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। सभी मंजिल में यही व्यवस्था है। हर मंजिल में 21 हजार लोग एक साथ प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।
हाथ धोने से निकले पानी का बागवानी में होता प्रयोग: खाना खाने के बाद हाथ धोने से निकले पानी को रिसाइकिल कर उसका बागवानी में उपयोग होता है। वहीं जूठे पत्तल को डिकंपोज कर उससे जैविक खाद बनाई जाती है जिसका खेती में उपयोग किया जाता है। हर मंजिल में खाने के बाद साफ-सफाई का बहुत अच्छा इंतजाम है।
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