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    इस आश्रम में कुत्ते की समाधि पर मत्था टेकते हैं लोग, जानें क्यों

    By Sujeet Kumar SumanEdited By:
    Updated: Sat, 15 Feb 2020 04:02 PM (IST)

    Jharkhand. आश्रम में पगला बाबा ने 35 मंदिरों का निर्माण स्वयं किया था। 12 वर्षों की तपस्या के बाद बाबा ने समाधी ले ली थी।

    इस आश्रम में कुत्ते की समाधि पर मत्था टेकते हैं लोग, जानें क्यों

    रांची, जासं। झारखंड आस्था की जमीन है। यहां के कण-कण में श्रद्धा और आस्था बसा हुआ है। ऐसी ही लोक आस्था की अनोखी कहानी से जुड़ा है कोकर स्थित पगला बाबा आश्रम। इसे मुक्तेश्वर धाम भी कहा जाता है। यहां एक कुत्ते की समाधि है जिसका आशीर्वाद लेकर ही भक्त आश्रम में भगवान का दर्शन करने के लिए जाते हैं। यहां उसके समाधि की पूजा होती है। बताया जाता है कि पगला बाबा ने भोली नामक एक कुत्ता पाल रखा था।

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    पगला बाबा भोजन से पहले भोली को श्रद्धापूर्वक खाना खिलाते थे। पगला बाबा अयोध्या यात्रा पर गये थे। उसी दौरान एक दिन भोजन के लिए भौंकने पर खनसामा ने चूल्हे की जलती लकड़ी से भोली के सिर पर वार कर दिया। इससे भोली की मौत हो गयी। जब पगला बाबा यात्रा से लौटे और इसकी जानकारी मिली, तो उन्होंने नाराज होकर खनसामा को आश्रम से निकाल दिया। फिर भोली की समाधि मंदिर के बगल में बनवाई और रोज पूजा करने लगे। तब से यह पूजा जारी है।

    आश्रम के अंदर एक छोटा पोखर है

    कोकर चौक पर स्थित इस आश्रम के बड़े परिसर में छोटे-बड़े कुल 35 मंदिरों का निर्माण खुद पगला बाबा ने खुद किया था। इसमें ज्यादातर शिव मंदिर हैं। इसके अलावा दुर्गा, काली, सरस्वती, महामृत्युंजय, नारायण, गणपति, लक्ष्मी, विष्णु माधव, काली मंदिर आदि हैं। आश्रम के अंदर एक छोटा पोखर है जिसे पूर्णी पोखर कहते हैं। बाबा परिसर में गुफा नुमा जगह पर ध्यान लगाते थे। वो यहां 12 वर्षों तक तपस्या करते रहे और फिर यहीं समाधि ली।

    नाले का रूप ले चुकी है जमुनिया नदी

    बताया जाता है कि बाबा कोकर के डिस्टिलरी में काम करते थे। धीरे-धीरे बाबा का झुकाव अध्यात्म की तरफ हो गया। फिर नौकरी छुट गई। उनके स्वाभाव, ज्ञान, और ध्यान के कारण लोग उन्हें पागल बाबा कहने लगे। इस आश्रम में आज भी उन्हें सुबह-शाम भोग चढ़ाया जाता है।

    इसके  साथ ही प्रतिदिन पूजा की जाती है। यहां जेठ महीने के हर मंगलवार को चंडी पाठ किया जाता है। परिसर में एक कुआं है, उसका पानी प्रदूषित हो जाने के कारण बंद कर दिया गया है। बताया जाता है कि जिस वक्त बाबा ने ये आश्रम बनाया था, उस वक्त यहां एक साफ नदी जमुनिया बहती थी। जो अब नाले का रूप ले चुकी है।

    वर्ष में दो बार होता है भव्य आयोजन

    आश्रम में कई पेड़ हैं। चारों तरफ हरियाली, मनोरम और शांति का एहसास होता है। यहां साल में दो बार भव्य आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में बंगाल से काफी संख्या में भक्त आते हैं। आश्रम में काफी सारे कुत्ते और बिल्ली रहती हैं। इसके साथ ही बाबा के कमरे में एक शिवलिंग की स्थापना की गयी है। यहां प्रतिदिन नियम से पूजा की जाती है। आश्रम परिसर में आज भी कई भक्त रहते हैं जो यहां की पूजा पाठ और साफ-सफाई की व्यवस्था देखते हैं।

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