झारखंड में मोती से चमक रही किसानों की किस्मत, कमा रहे हैं मोटी रकम
झारखंड मीठे पानी के मोती उत्पादन का केंद्र बन रहा है। हजारीबाग को पहला मोती क्लस्टर बनाने की योजना है जिस पर 22 करोड़ रुपये खर्च होंगे। राज्य में प्रतिवर्ष 77 हजार मोती का उत्पादन हो रहा है जिसमें सरायकेला सबसे आगे है। मैकेनिकल इंजीनियर बुधन सिंह पूर्ति ने मोती पालन में नए आविष्कार किए हैं जिससे उनकी कंपनी सालाना 32 लाख रुपये कमा रही है।

मनोज सिंह, रांची। झारखंड मीठे पानी वाले मोती उत्पादन केंद्र के रूप में तेजी से उभर रहा है। इसके लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाइ) के तहत झारखंड सरकार के सहयोग से हजारीबाग को पहले मोती की खेती का क्लस्टर बनाने की योजना है। इसके लिए कुल 22 करोड़ रुपये खर्च होने हैं।
अब राज्य के ग्रामीण युवाओं और किसानों को इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जो इनके लिए आजीविका साधन बना रहे है। राज्य में प्रतिवर्ष 77 हजार मोती का उत्पादन हो रहा है। जिसमें सबसे ज्यादा सरायकेला में 30 हजार मोती का उत्पादन किया जा रहा है।
झारखंड में कुल 132 मोती पालक किसान हैं। मोती का उत्पादन रांची, हजारीबाग, खूंटी, सरायकेला, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, देवघर और दुमका में किया जा रहा है। अब तक 842 किसानों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया है। रांची के प्रशिक्षण संस्थान से अभी 25 किसानों को प्रशिक्षित किया गया है।
मैकेनिकल इंजीनियरिंग छोड़ बने मोती पालक किसान
मैकेनिकल इंजीनियर बुधन सिंह पूर्ति ने मोती पालन में कई नए आविष्कार किए हैं। लेकिन उनकी शुरुआत किसी दूसरी क्षेत्र से थी। चाईबासा के तंतनगर प्रखंड के दाड़िमा गांव के रहने वाले बुधन रांची में मेडिकल बायो वेस्ट का प्लांट लगाने का सपना लेकर रांची आए थे।
उन्होंने इसके लिए सात लाख रुपये खर्च भी किया, लेकिन कई तकनीकी दिक्कतों से प्लांट शुरू नहीं हो पाया। सारे पैसे खत्म होने के बाद उन्होंने कुछ नया करने की सोची और यूट्यूब पर मोती उत्पादन के बारे में जानकारी प्राप्त कर सीफा में प्रशिक्षण लिया।
वर्ष 2014 में इन्होंने रांची हेहल में मोती पालन करना शुरू किया। लेकिन पहले साल इन्हें ज्यादा मोती नहीं मिले, तो इन्होंने मोती के उत्पादन पर रिसर्च करना शुरू किया। अब उनकी कंपनी पूर्ति एग्रोटेस सालाना 32 लाख रुपये की कमाई कर रही है।
सेल के सीएसआर फंड का उपयोग प्रशिक्षण केंद्र बनाया है। जिससे राज्य के 132 से अधिक किसानों को मोती उत्पादन की तकनीकों का प्रशिक्षित पाया है। बधुन सिंह ने कहा कि हम गोल मोती उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं क्योंकि यह डिजाइनर मोतियों की तुलना में अधिक रिटर्न मिलता है।
बधुन सिंह के पास 1.7 लाख सीप हैं। 6.5 लाख रुपये के निवेश के बाद वह 32 लाख रुपये कमाने की उम्मीद कर रहे हैं।
बूधन सिंह पूर्ति ने 3,600 रुपये में स्वदेशी सर्जिकल उपकरण विकसित किए हैं, जबकि सीप में न्यूक्लियस प्लांट करने में इस्तेमाल होने वाले उपकरण की कीमत 25 हजार रुपये तक होती है।
कम जगह पर भी होता है उत्पादन
बुधन सिंह पूर्ति से प्रशिक्षण प्राप्त कर रांची की रहने वाली रोहिणी गौतम ने बताया कि उन्होंने इस साल अपने घर के छत पर मोती उत्पादन करना प्रारंभ किया है। अपने छत पर पांच स्विमिंग पूल और 16 ड्रम में 1500 सीप डाला गया है।
जिसमें से गोल मोती और डिजाइनर मोती तैयार होगा। इसके लिए करीब 1.50 लाख रुपये की लागत आई है। रोहिणी गौतम भी मैकेनिकल इंजीनियर हैं। उन्होंने अपने पिता दिनेश्वर दयाल सिंह के कहने पर मोती पालन किया। कई जगह नौकरी की लेकिन उनका मन नहीं लगा।
कोरोना काल में वह अपने दो छोटे बच्चों के साथ बुधन पूर्ति के फार्म हाउस में प्रशिक्षण लिया। कहा कि निवेश के दस गुना से अधिक का लाभ मिलता है। इसकी खेती छोटी जगहों में की जा सकती है, जिससे छोटे किसानों और आजीविका की तलाश कर रहे युवाओं के लिए बेहतर अवसर प्रदान करता है।
50 रुपये खर्च कर 150 से ज्यादा की कमाई
एक मसल (सीप) को करीब ढाई साल तक पालने में 35-50 रुपये खर्च होते हैं। मोती की गुणवत्ता के आधार पर एक हजार से डेढ़ हजार रुपये तक में बिक्री होती है। लेकिन होल सेल में यह व्यापारियों को 150 रुपये से ज्यादा में दिया जाता है। ग्रेड के अनुसार मोती की कीमत बढ़ती है। पांच से छह लेयर से अधिक मोती को ए ग्रेड का माना जाता है। इसके लिए सीप में सर्जरी कर न्यूक्लियस डाला जाता है, जो तांबा का बना होता है।
मोती के उत्पादन से कई किसान जुड़े हैं। नैबकांन (नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज) इसका विश्लेषण कर रहा है और जल्द ही हजारीबाग क्लस्टर को विकसित करने की कार्य योजना तैयार हो जाएगी। -डॉ. एचएन द्विवेदी, निदेशक, मत्स्य विभाग।
जिला- मोती का उत्पादन
- रांची -15000 हजार उत्पादन।
- हजारीबाग -8000 मोती उत्पादन।
- खूंटी- 3000 हजार मोती उत्पादन।
- सरायकेला - 30000 मोती उत्पादन।
- पूर्वी सिंहभूम -6000 मोती उत्पादन।
- पश्चिमी सिंहभूम -10000 मोती उत्पादन।
- देवघर -2000 मोती उत्पादन।
- दुमका -3000 मोती उत्पादन।
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