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    मिजोरम से मुंबई मेट्रो तक रेलवे को रफ्तार दे रहे पाकुड़ के पत्थर, बांग्लादेश के पद्मा ब्रिज में भी हुआ है इस्तेमाल

    Updated: Sun, 14 Sep 2025 11:20 PM (IST)

    झारखंड के पाकुड़ जिले के पत्थर मिजोरम को रेल नेटवर्क से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। पाकुड़ के पत्थर अपनी उच्च गुणवत्ता और टिकाऊपन के लिए जाने जाते हैं जिनका उपयोग मिजोरम के एक ऊंचे रेलवे पुल के निर्माण में किया गया है जिसकी ऊंचाई कुतुबमीनार से भी अधिक है। इसके अतिरिक्त इन पत्थरों का उपयोग मुंबई मेट्रो और बांग्लादेश के पद्मा ब्रिज में भी किया गया है।

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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई प्रतीकात्मक तस्वीर। (जागरण)

    दिव्यांशु, रांची। मिजोरम को देश के रेल नेटवर्क से जोड़ने में झारखंड का पत्थर लगा है। सप्ताह भर पहले मिजोरम के बइरवी-सायरंग रेल लाइन का उद्घाटन हुआ है।

    इस ट्रैक पर बने एक ब्रिज की उंचाई 42 मीटर है जो कुतुबमीनार से भी उंची है। यह ब्रिज खड़ा है पाकुड़ के पत्थर पर। अपनी बेहतरीन क्वालिटी के लिए जाने वाले वाले पाकुड़ के पत्थरों का प्रयोग मुंबई मेट्रो में बनने वाले पिलर्स के लिए भी हो रहा है।

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    मिजोरम रेलवे ट्रैक के लिए पत्थर भेजने वाले पाकुड़ के युवा व्यवसायी प्रसन्न मिश्र ने बताया कि रेलवे के 13 डिविजन में पाकुड़ के पत्थरों की सप्लाई की जाती है।

    डेढ़ साल पहले बांग्लादेश में पद्मा नदी पर बने वहां के सबसे बड़े पुल या ब्रिज में भी पाकुड़ के ही पत्थर प्रयोग हुए हैं। नार्थ ईस्ट फ्रंटियर रेलवे की इस महत्वपूर्ण परियोजना के लिए करीब 90 लाख सीएफटी पत्थर पाकुड़ से भेजे गए हैं।

    रेलवे के सहायक कार्यपालक अभियंता सुमन चौधरी ने बताया कि पाकुड़ के पत्थर लंबे समय तक टिकाऊ होते हैं। सिविल इंजीनियरिंग के लिए हर मामले में ये भरोसेमंद हैं। मिजोरम में बनने वाले ट्रैक का निर्माण गहरी खाइयों, और गहरी घाटियों से गुजरकर हुआ है।

    ऐसे में ट्रैक और ब्रिज को टिकाऊ बनाए रखने के लिए हाई क्वालिटी ग्रेंस वाले पत्थर चाहिए जो पाकुड़ के चिप्स से ही संभव है।

    पाकुड़ के पत्थर 12 से 15 करोड़ वर्ष पुराने हैं। क्रेटेशियस युग में ज्वालामुखी से निकला लावा बहुत जल्द कठोर हो गया और इससे इन चट्टानों का निर्माण हुआ है। ये बेसाल्टिक राक हैं जो आग्नेय माने जाते हैं। यही वजह है कि इनकी कठोरता किसी भी दूसरे पत्थर की तुलना में ज्यादा है। पाकुड़ के अलावा सिंहभूम में भी ये चट्टान पाए जाते हैं। डायनासोर के दौर में बने इन चट्टानों को दुनिया का सबसे कठोर चट्टान कहा जाता है। - नीतीश प्रियदर्शी, सहायक प्राध्यापक, भूगर्भ विभाग, रांची विवि

    पाकुड़ से रैक के जरिए मिजोरम तक पत्थर भेजे गए हैं। नार्थ ईस्ट की रेल परियोजनाओं के लिए पाकुड़ से पत्थर का जाना गर्व की बात है। उंचे ब्रिज के स्थायित्व और टिकाउ होने के लिए यहां के पत्थरों को सबसे उपयुक्त माना जाता है। रेलवे ट्रैक की मजबूती के लिए भी यही पत्थर लगाए जाते हैं। - प्रसन्न मिश्र, पत्थर व्यवसायी