'अपने मित्र सुनील साहू को लाभ पहुंचाने के लिए कर रहे अस्पताल का विरोध', JMM नेता ने बाबूलाल पर लगाए गंभीर आरोप
झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने बाबूलाल मरांडी से तपकारा गोलीकांड पर माफी की मांग की है। उन्होंने मरांडी पर आदिवासियों पर गोली चलाने जमीन छीनने और शोषणकारी मानसिकता का आरोप लगाया। रिम्स-2 के विरोध को भी व्यक्तिगत हित से प्रेरित बताया। भट्टाचार्य ने मरांडी को झारखंड की बुनियाद में दीमक बताते हुए माफी मांगने पर जोर दिया।

राज्य ब्यूरो, रांची। सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी पर तपकारा और नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज गोलीकांड के लिए माफी मांगने की मांग उठाई है।
भट्टाचार्य ने मरांडी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उनके शासनकाल में आदिवासियों पर गोलियां चलाई गईं, जिसके लिए उन्हें आज तक जवाबदेह नहीं ठहराया गया।
साथ ही रिम्स-2 के निर्माण के विरोध को लेकर भी मरांडी पर निशाना साधा। दावा किया कि यह विरोध उनके करीबी मित्र सुनील साहू को लाभ पहुंचाने की साजिश है।
भट्टाचार्य ने कहा कि मरांडी ने अपने शासनकाल (2000-2003) में तपकारा और नेतरहाट में फायरिंग रेंज के लिए आदिवासियों की जमीन छीनने की कोशिश की थी।
जब विपक्ष और आदिवासी समुदाय ने इसका विरोध किया तो मरांडी सरकार ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चलवाईं, जिसमें कई शहीद हुए और सैकड़ों को जेल में डाला गया। उन्होंने मरांडी को झारखंड की बुनियाद में दीमक करार देते हुए कहा कि उनका असली चरित्र शोषणकारी और औपनिवेशिक मानसिकता का है।
भट्टाचार्य ने मरांडी के उस दौर के फैसलों, जैसे 104 एमओयू साइन करने को आदिवासी हितों के खिलाफ बताया और आरोप लगाया कि वे मगरमच्छ के आंसू बहाते हैं।
रिम्स-2 के निर्माण के विरोध पर भट्टाचार्य ने तंज कसते हुए कहा कि मरांडी का यह विरोध व्यक्तिगत हितों से प्रेरित है। उन्होंने दावा किया कि मरांडी अपने मित्र सुनील साहू के लिए बड़ी योजना बना रहे हैं।
भट्टाचार्य ने पूछा कि जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने झारखंड में स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर करने की बात कही तो मरांडी विरोध क्यों कर रहे हैं? उन्होंने इसे मरांडी की खिसियानी बिल्ली वाली हरकत बताया और रांची में डेमोग्राफिक बदलाव के लिए भी उन्हें जिम्मेदार ठहराया।
झामुमो नेता ने जोर देकर कहा कि मरांडी को तपकारा और नेतरहाट की घटनाओं के लिए माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि इन गोलीकांडों ने आदिवासी समुदाय को गहरा आघात पहुंचाया। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि झारखंड का गठन चार दशकों के संघर्ष और सैकड़ों शहादतों के बाद हुआ, जिसमें मरांडी की नीतियां बाधक थीं।
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