Operation Sindoor: 7 मई की रात को ही क्यों किया ऑपरेशन सिंदूर? CDS जनरल अनिल चौहान ने अब खोला राज
भारत के प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल अनिल चौहान ने ऑपरेशन सिंदूर पर कहा कि सेना को अपनी क्षमता पर भरोसा था। अभियान में निर्दोष नागरिकों को नुकसान से बचाने का ध्यान रखा गया। मौसम अनुकूल होने से 7 मई की तारीख चुनी गई। उन्होंने कहा कि सेना के लिए राजनीतिक लक्ष्य सर्वोपरि है और तकनीकी विकास ने युद्ध के तरीके बदल दिए हैं।

राज्य ब्यूरो, रांची। भारत के प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने रात एक-डेढ़ बजे 'ऑपरेशन सिंदूर' के क्रियान्वयन के सवाल पर कहा कि सेना को अपनी क्षमता पर भरोसा थी। अभियान में पाकिस्तान के निर्दोष नागरिकों को कोई नुकसान न हो, इसे भी सुनिश्चित करना था। मौसम भी अनुकूल था और वर्षा होनेवाली नहीं थी, इस कारण भी सात मई को तिथि इसके लिए चुनी गई थी।
जनरल चौहान गुरुवार को राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार तथा रक्षा राज्यमंत्री संजय सेठ की उपस्थिति में राजभवन के बिरसा मंडप में 'ऑपरेशन सिंदूर' पर बच्चों से संवाद कर रहे थे। संवाद के क्रम में उन्होंने कहा इस अभियान की योजना और क्रियान्वयन में हमारी सटीक रणनीति और तकनीकी कौशल का समन्वय रहा।
हर सैन्य कार्रवाई में नई रणनीति अपनानी पड़ती है। इस अभियान में भी हमने नई रणनीति अपनाते हुए ड्रोन से 30-30 किमी दूर आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किए। यह असंभव लगता है, लेकिन मेहनत और वैज्ञानिक गणना से यह संभव हुआ।
जनरल चौहान ने कहा कि सेना के लिए राजनीतिक लक्ष्य सर्वोपरि होता है। इस अभियान में न केवल थल सेना और वायु सेना, बल्कि नौसेना सेना ने भी अपनी भूमिका निभाई थी। एक बच्चे के सवाल पर जनरल चौहान ने कहा कि तकनीकी विकास ने युद्ध की प्रकृति को पूरी तरह बदल दिया है। सेना को न केवल वर्तमान, बल्कि भविष्य की तकनीक पर भी काम करना पड़ता है। अब युद्ध के कई डोमेन बढ़ गए हैं, जिनमें साइबर, इलेक्ट्रो मैग्नेटिक आदि बड़ी चुनौतियां हैं।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2047 का विकसित भारत आज की पीढ़ी को बनाना है। बच्चे न केवल इसके सहभागी होंगे, बल्कि इसके उपभोक्ता भी होंगे। इसके लिए उन्होंने सही दिशा और गति दोनों को जरूरी बताया।
अधिक पढ़ना न पढ़े इसलिए फौुज को चुना, लेकिन आज भी पढ़ते हैं
जनरल चौहान ने बच्चों से अपने परिवार और अपनी पढ़ाई पर भी चर्चा की। बताया कि बच्चे उनसे पूछते हैं कि वह क्यों फौज में गए। उन्होंने बिना हिचक बताया कि जब वे 11वीं में पढ़ रहे थे तो यह सोचकर फौज में जाने का करियर चुना कि वहां कम पढ़ना होगा, लेकिन उनकी यह धारणा गलत साबित हुई। वे आज भी पढ़ रहे हैं और नई चीजों को सीख रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हर फौजी की जिम्मेदारी लगातार पढ़ाई करने और प्रशिक्षण लेने की होती है। उन्होंने फौज में जाने के पीछे आउटडोर एक्टिविटी की अधिक इच्छा भी बताई। कहा, सेना में इसके लिए कई अवसर मिलते हैं। मोबाइल और लैपटाप से दूर रहना चाहते हैं तो फौज में आइए।
बड़ी धनराशि खर्च कर भी नहीं महसूस कर सकते यहां की विविधता, सेना देता है यह अवसर
प्रमुख रक्षा अध्यक्ष ने यह भी कहा कि सेना में सम्मिलित होना देश की विविधता को नजदीक से देखने और महसूस करने का अवसर भी प्रदान करता है। उन्होंने इसके कई उदाहरण गिनाते हुए कहा कि आप कितनी भी बड़ी धनराशि खर्च कर लें, आपको यह अवसर नहीं मिलेगा, लेकिन फौज में सम्मिलित होने पर आपको यह मौका जरूर मिलेगा।
उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के डोंग गांव का जिक्र किया जहां देश में सूर्य का पहला किरण पड़ता है। इसी राज्य में लोहित घाटी है जहां भगवान परशुराम की कुल्हाड़ी गिरी थी। आप जानकर आश्चर्यचकित होंगे कि मणिपुर के म्यांमार बॉर्डर के पास मोरे गांव में तमिल समुदाय भी रहते हैं। नगालैंड के पास म्यांमार बोर्ड पर एक गांव का एक घर ऐसा है जहां आप ड्राइंग रूम में होते हैं तो भारत में और डाइनिंग हाल में जाते हैं तो म्यामांर में होते हैं। लद्दाख की नुब्रा घाटी में दो कूबड़ (हैंप) वाले ऊंट मिलते हैं। बार्डर पर इन विविधताओं को आप फौज में रहकर ही देख सकते हैं।
सेना के प्रति प्रेम, विश्वास और आदर तीनों
प्रमुख रक्षा अध्यक्ष ने कहा कि सेना के प्रति आम लोगों में प्रेम, विश्वास और आदर तीनों है। सेना न केवल राष्ट्र की रक्षा करती है, बल्कि देश के विकास व राष्ट्र निर्माण में भी भूमिका निभा रही है। प्राकृतिक आपदाओं में सेना की भूमिका को सभी जानते हैं।
इस वर्ष हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इन प्राकृतिक आपदाओं में सेना ने इतनी मेहनत की, उतनी पिछले 10 वर्ष में भी नहीं करनी पड़ी थी, इसीलिए सेना को इतना आदर मिलता है, लेकिन हमारे पूर्व सैनिकों ने जो आदर और सम्मान दिलाया है, उसे बनाए रखना है। फौजी अपने सेवा काल में ऐसा कोई काम न करें, जिससे सेना के प्रति लोगों का आदर कम हो।
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