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    अब ड्रोन रोकेगा झारखंड में मानव-हाथी संघर्ष, रात में भी होगी निगरानी

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 11:29 PM (IST)

    झारखंड वन विभाग ने रांची डिवीजन में मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए एक नई पहल की है। इसके तहत नाइट-विजन तकनीक से लैस ड्रोन का इस्तेमाल करने की योजना बनाई गई है। एक वन अधिकारी ने बताया कि यह अपनी तरह का एक पायलट प्रोजेक्ट है और अगर यह सफल रहता है तो इसे राज्य के दूसरे हिस्सों में भी लागू किया जाएगा।

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    मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए एक नई पहल की जा रही है।

    रांची, एजेंसी। झारखंड वन विभाग ने रांची डिवीजन में मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए एक नई पहल की है। इसके तहत, नाइट-विजन तकनीक से लैस ड्रोन का इस्तेमाल करने की योजना बनाई गई है।

    एक वन अधिकारी ने बताया कि यह अपनी तरह का एक पायलट प्रोजेक्ट है और अगर यह सफल रहता है तो इसे राज्य के दूसरे हिस्सों में भी लागू किया जाएगा।

    परीक्षण में मिली सफलता

    रांची के वन प्रमंडल पदाधिकारी (डीएफओ) श्रीकांत वर्मा ने बताया कि सिल्ली के वन क्षेत्र में ड्रोन का परीक्षण किया गया था। दिन और रात, दोनों ही समय में इसके परिणाम उत्साहजनक रहे।

    ड्रोन में लगा हाई-पावर्ड नाइट विजन कैमरा रात में भी हाथियों के झुंड की गतिविधियों की साफ तस्वीरें लेने में कामयाब रहा।

    वर्मा ने कहा कि यह तकनीक हाथियों के मूवमेंट पर नजर रखने और मानव-हाथी संघर्ष को रोकने में काफी मददगार साबित होगी, जिससे हर साल कई लोगों की जान जाती है।

    जानलेवा होता है यह संघर्ष

    पर्यावरण, वन और जलवायु और परिवर्तन मंत्रालय द्वारा संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार झारखंड में 2019-2020 से पिछले पांच सालों में मानव-हाथी संघर्ष में 474 लोगों की मौत हुई है।

    इस तरह की मौतों के मामले में झारखंड पूरे देश में ओडिशा के बाद दूसरे स्थान पर है। डीएफओ वर्मा ने बताया कि रांची वन प्रभाग में सिल्ली, बेडो, हुंडरू, मुदमू और लातेहार जिले के तांडवा जैसे क्षेत्र इस संघर्ष से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

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    ड्रोन की लागत और चुनौती

    हालांकि, इस पहल की अपनी चुनौतियां भी हैं। वर्मा ने बताया कि इन ड्रोनों की कीमत 40 लाख रुपये से ज्यादा है, जो काफी महंगी है। इसके अलावा, राज्य के पूर्व वन्यजीव बोर्ड सदस्य डी.एस. श्रीवास्तव ने बताया कि अनियोजित विकास कार्य, खनन, जंगलों में चराई, आग और भोजन की कमी भी इस संघर्ष के मुख्य कारण हैं।

    झारखंड में अब तक 17 हाथी गलियारों की पहचान की गई है, और यह उम्मीद की जा रही है कि ड्रोन जैसी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल इन क्षेत्रों में सुरक्षा बढ़ाने और इंसानों और हाथियों, दोनों की जान बचाने में मदद करेगा।