Jharkhand News: झारखंड में अब बिना डोनर के मिलेगा ब्लड, होईकोर्ट की सख्ती के बाद सरकार एक्टिव
झारखंड हाईकोर्ट ने रक्त व्यवस्था की खामियों पर सख्त रुख अपनाते हुए आदेश दिया है कि मरीजों से डोनर की मांग नहीं की जाएगी। सरकारी और निजी अस्पतालों को ब ...और पढ़ें

सरकारी और निजी अस्पतालों को बिना डोनर के रक्त देना होगा। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, रांची। हाल के दिनों में झारखंड में रक्त व्यवस्था की गंभीर खामियों पर झारखंड हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए ऐतिहासिक और दूरगामी आदेश दिए हैं। अदालत ने स्पष्ट किया है कि अब मरीजों या उनके परिजनों से किसी भी स्थिति में डोनर या रक्त की मांग नहीं की जा सकती।
सरकारी और निजी अस्पतालों को बिना डोनर के ही मरीजों को आवश्यक रक्त उपलब्ध कराना होगा। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और राज्य रक्त आधान परिषद (एसबीटीसी) को निर्देश दिया है कि राज्य के सभी जिलों में तीन माह के भीतर ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट (BCS) स्थापित की जाए।
अदालत ने माना कि झारखंड में राष्ट्रीय रक्त नीति और ट्रांसफ्यूजन गाइडलाइंस का वर्षों से समुचित पालन नहीं हो रहा है। इसका सीधा असर गंभीर मरीजों पर पड़ रहा है। वर्तमान में राज्य के केवल तीन जिलों में ही ब्लड कंपोनेंट की सुविधा उपलब्ध है, जबकि शेष जिलों में आज भी होल ब्लड चढ़ाने की मजबूरी बनी हुई है।
इससे प्लेटलेट, प्लाज्मा या पैक्ड रेड सेल्स की जरूरत वाले मरीजों को रांची जैसे बड़े केंद्रों में रेफर किया जाता है, जिससे इलाज में देरी और जान का खतरा बढ़ जाता है। इस आदेश के बाद विभाग में कवायद शुरू हो गई है।
स्वैच्छिक रक्तदान से ही 100 प्रतिशत रक्त संग्रह
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि राज्य में रक्त संग्रह का एकमात्र आधार स्वैच्छिक रक्तदान होना चाहिए। 100 प्रतिशत रक्त संग्रह स्वैच्छिक रक्तदान शिविरों के जरिए सुनिश्चित किया जाए। निजी अस्पतालों और ब्लड बैंकों को भी अपनी जरूरतों के अनुसार नियमित रक्तदान शिविर आयोजित करने का निर्देश दिया गया है।
अदालत ने यह भी कहा कि रिप्लेसमेंट डोनेशन की परंपरा न केवल असुरक्षित है, बल्कि राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों के भी खिलाफ है। राज्य सरकार के काउंटर एफिडेविट में पेश आंकड़ों पर अदालत ने गहरी चिंता जताई।
जुलाई 2025 में कुल रक्त संग्रह का केवल 13 प्रतिशत, अगस्त में 15 से 22 प्रतिशत और सितंबर में लगभग 25 प्रतिशत रक्त ही स्वैच्छिक रक्तदान से प्राप्त हुआ। यह स्थिति दर्शाती है कि झारखंड अब भी बड़े पैमाने पर मरीजों के परिजनों पर निर्भर है, जो नियमों का उल्लंघन है।
बिना रिप्लेसमेंट फ्री ब्लड ट्रांसफ्यूजन अनिवार्य
अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय रक्त नीति के उद्देश्य 8.5 के तहत फ्री ब्लड ट्रांसफ्यूजन (बिना रिप्लेसमेंट) की व्यवस्था अनिवार्य है, लेकिन झारखंड में इसे अब तक लागू नहीं किया गया। मरीजों के परिजनों को रक्त की व्यवस्था करने के लिए मजबूर करना न केवल अमानवीय है, बल्कि जीवन के अधिकार का भी उल्लंघन है।
ट्रांसफ्यूजन गाइडलाइंस की क्लाज 2.1 का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि मरीज के रिश्तेदारों से न तो डोनर मांगा जा सकता है और न ही रक्त।
डे-केयर सेंटर और थैलेसीमिया-सिकल सेल मरीजों की स्थिति चिंताजनक
दस्तावेजों के अवलोकन में यह भी सामने आया कि राज्य के कई जिलों में संचालित डे-केयर सेंटर पूरी तरह कार्यशील नहीं हैं। नौ जिलों से प्राप्त रिपोर्ट में बताया गया कि थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया के मरीजों के लिए आवश्यक दवाएं जैसे आयरन चेलेटर और हाइड्राक्सीयूरिया उपलब्ध नहीं हैं। कई स्थानों पर पैक्ड रेड ब्लड सेल्स की उपलब्धता का कोई ठोस आंकड़ा तक नहीं दिया गया।
अदालत ने निर्देश दिया है कि सभी डे-केयर सेंटर को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और सिकल सेल रोग प्रबंधन दिशानिर्देशों के अनुरूप पूरी तरह कार्यशील बनाया जाए, ताकि इन गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को समय पर इलाज मिल सके।
हर तीन माह में ब्लड बैंकों का निरीक्षण, स्टाफ की कमी दूर करने का आदेश
हाईकोर्ट ने यह भी माना कि राज्य के अधिकांश ब्लड बैंकों में मानव संसाधन की भारी कमी है। कई ब्लड बैंकों में केवल एक मेडिकल आफिसर के भरोसे पूरी व्यवस्था चल रही है, जो विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के विपरीत है।
कोर्ट ने आदेश दिया है कि राज्य के सभी ब्लड बैंकों का हर तीन माह में अनिवार्य निरीक्षण किया जाए और पर्याप्त संख्या में मेडिकल ऑफिसर, नर्स, काउंसलर और तकनीशियन की नियुक्ति सुनिश्चित की जाए।
इसके साथ ही एक अलग और समर्पित शिकायत निवारण तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया गया है। इसके तहत मोबाइल ऐप, वेबसाइट और टोल-फ्री नंबर के माध्यम से मरीजों को रक्त की उपलब्धता और सहायता से जुड़ी जानकारी रियल-टाइम में मिल सकेगी।
रांची पर निर्भरता खत्म करने की दिशा में बड़ा कदम
हाईकोर्ट ने स्पष्ट टिप्पणी की कि राज्य के अधिकांश जिलों की निर्भरता आज भी रांची पर है, जो गंभीर चिंता का विषय है। ब्लड कंपोनेंट यूनिट की स्थापना से जिलों में ही प्लेटलेट, प्लाज्मा और अन्य कंपोनेंट उपलब्ध हो सकेंगे, जिससे गंभीर मरीजों को रेफर करने की मजबूरी खत्म होगी।
अदालत ने इन सभी निर्देशों के अनुपालन की अंतिम तिथि 20 मार्च 2026 तय की है और कहा है कि आदेशों की अवहेलना को गंभीरता से लिया जाएगा। कोर्ट ने दो टूक कहा कि रक्त व्यवस्था से जुड़ी लापरवाही सीधे तौर पर लोगों के जीवन से जुड़ी है और इसे किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
लाइफ सेवर संस्थान के संथापक अतुल गेरा ने बताया कि विभाग ने अस्पतालों को अभी तक कोई दिशा-निर्देश नहीं दिया है। निजी अस्पतालों को निर्देश देने में डरता है। जबकि विभाग को सीधा निर्देश देना चाहिए, लेकिन वे कुछ नहीं कर रहे हैं।
इसमें इच्छाशक्ति की कमी दिखती है। जिस वजह से निजी अस्पताल कैंप लगाते ही नहीं और इसका असर सीधे मरीजों पर पड़ता है जिनसे डोनर मांगा जाता है। बाकी अन्य बिंदुओं पर जिस तरह से कोर्ट ने निर्देश दिया है उससे आने वाले समय में कुछ बेहतर हो सकता है।

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