पीएम मोदी ने झारखंड को दिया बड़ा तोहफा, झरिया कोयला खदान पुनर्वास के लिए नए मास्टर प्लान को मिली मंजूरी
केंद्र सरकार ने झारखंड के झरिया कोयला खदानों में दशकों से लगी आग से प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए 5,940 करोड़ रुपये के नए मास्टर प्लान को मंजूरी दी है। यह योजना 2009 के असफल प्लान की जगह लेगी और इसका उद्देश्य प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर बसाना, सड़क, स्कूल, अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना और उन्हें जीविका कमाने में मदद करना है।
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प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (जागरण)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली/रांची। झारखंड के झरिया के कोयला खदान में दशकों से लगी आग से प्रभावित जनता के पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार एक बार फिर मास्टरप्लान ले कर आई है।
पीएम नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने बुधवार को 5,940 करोड़ रुपये के इस मास्टर प्लान को हरी झंडी दिखा दी। यह प्लान वर्ष 2009 में पूर्व यूपीए सरकार की तरफ से मंजूर मास्टरप्लान की जगह लागू होगा।
नये प्लान के जरिए खदान आग से प्रभावित परिवारों को दूसरे सुरक्षित जगह पर पुनर्वासित किया जाएगा और इसके लिए सड़क, स्कूल, अस्पताल व अन्य ढांचागत सुविधाओं के निर्माण के साथ ही प्रभावित लोगों को जीविका उपलब्ध कराने में भी मदद की जाएगी।
प्लान के उक्त लागत के अलावा सरकारी कंपनी कोल इंडिया की तरफ से हर वर्ष 500 करोड़ रुपये की राशि भी उपलब्ध कराई जाएगी। सीसीईए के फैसले के बारे में जानकारी देते हुए सूचना प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि वर्ष 2009 में जिस मास्टर प्लान को मंजूरी दी गई थी वह कानूनी, प्रौद्योगिकी और समाजिक बाधाओं की वजह से लागू नहीं किया जा सका।
लेकिन जिस नई योजना को अब मंजूरी दी गई है, उसमें पुरानी समस्याओं को दूर करने के लिए कई कदम उठाने के प्रबंध किये गये हैं। योजना चरणबद्ध तरीके से लागू होगी जिसमें कोयला खदानों में लगी आग को बुझाने के साथ ही इससे प्रभावित हुए परिवारों को दूसरे सुरक्षित जगह पर बसाने का काम होगा।
प्रभावित परिवारों के पुनर्वास को प्राथमिकता से लिया जाएगा। पीड़ित परिवारों को एक लाख रुपये की राशि जीविका अनुदान के तौर पर और तीन लाख रुपये की कर्ज की राशि उपलब्ध कराने का काम भी होगा।
झारखंड के छोटा नागपुर पठार पर स्थित झरिया के कोयला खदानों में सबसे पहले 1916 में आग लगने की घटना का पता चला था। बताया जाता है कि कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण से पहले इन खदानों से निजी कंपनियों ने सुरक्षा इंतजामों को हाशिये पर रखते हए अंधाधुंध कोयला निकासी का काम किया था।
इसकी वजह से कोयला निकालने के बाद अंदर की जमीन खाली हो गई और कई जगहों पर दरारें भी साफ तौर पर दिखती पर दिखती हैं। इन दरारों से नीचे खदानों में लगी आग से धुंआ निकल रहा है।
कई बार पर्यावरणविदों ने कहा है कि झरिया में कभी भी एक बड़ी दुर्घटना सामने आ सकती है। लगातार निकलते धुंआ ने आस पास के लोगों के जीवन पर भी काफी नकारात्मक प्रभाव डाला है। पूर्व में कई बार कोशिशों के बावजूद ना तो कोयला खदानों में लगी आग को बुझाया जा सका है और ना ही प्रभावित लोगों का पुनर्वास किया जा सका है।

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