न कड़वी गोलियों का डर और न ही इंजेक्शन का खौप, इलाज कराने के नाम पर खुश हो जाते हैं बच्चे, ऐसा कौन सा जादू कर दिया है सदर अस्पताल ने- यहां जानिए
अस्पताल का नाम आते ही बच्चों के चेहरे पर डर और चिंता छ जाती है। तकलीफदेह इंजेक्शन और कड़वी दवाइयों की सोच से ही छोटे बच्चे घबरा जाते हैं। लेकिन अब रांची सदर अस्पताल ने इस डर को मुस्कान में बदलने का प्रयास शुरू किया है जिसका बेहतर परिणाम मिल रहा है।

जागरण संवाददाता, रांची। अस्पताल का नाम आते ही बच्चों के चेहरे पर डर और चिंता छा जाती है। तकलीफदेह इंजेक्शन और कड़वी दवाइयों की सोच से ही छोटे बच्चे घबरा जाते हैं। लेकिन अब रांची सदर अस्पताल ने इस डर को मुस्कान में बदलने का प्रयास शुरू किया है।
यहां बच्चों के इलाज के दौरान खेल-खेल में उपचार की नई व्यवस्था शुरू की गई है। अस्पताल परिसर में कियोस्क मशीन लगाई गई है, जिसमें बच्चे वीडियो गेम खेल सकते हैं और इंटरनेट की जानकारी ले सकते हैं।
अस्पताल में पहली बार बच्चों के लिए मनोरंजन व्यवस्था
ओपीडी में इलाज के इंतजार में बैठे बच्चों को अब घबराने की जरूरत नहीं। यहां एक तरफ जहां सांप-सीढ़ी का बड़ा पोस्टर उनकी नजरों को भाता है, वहीं टच स्क्रीन मानिटर पर वीडियो गेम खेलने का मजा उन्हें व्यस्त रखता है।
माता-पिता भी इस नई पहल से खुश हैं। इलाज के लिए घंटों इंतजार की थकान बच्चों के चेहरे पर अब नहीं दिखती। वे खेलों और सीखने वाली गतिविधियों में मशगूल रहते हैं।
बच्चों के तनाव को कम करने का प्रयास
अस्पताल के सिविल सर्जन डा. प्रभात कुमार बताते हैं कि यह व्यवस्था खासतौर पर उन बच्चों के लिए की गई है जो इलाज के दौरान मानसिक तनाव महसूस करते हैं।
उन्होंने बताया कि कियोस्क मशीन में केवल गेम ही नहीं हैं, बल्कि सरकारी योजनाओं और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी भी दी जाती है। यह पहल बच्चों को खेल-खेल में स्वस्थ रहने के बारे में सिखाने का भी माध्यम बनेगी।
यह व्यवस्था बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालेगी। उनके अनुसार अस्पताल का माहौल बच्चों के लिए तनावपूर्ण होता है। रंगीन पोस्टर, वीडियो गेम और अन्य मनोरंजन साधन बच्चों को फ्रेंडली एनवायरनमेंट देते हैं।
मालूम हो कि कई अंतरराष्ट्रीय शोध बताते हैं कि इलाज के दौरान बच्चों को खेलों और मनोरंजन से जोड़ने पर उनका दर्द और डर दोनों कम होता है। डा. प्रभात बताते हैं कि अमेरिका और यूरोप में पहले से ही अस्पतालों में प्ले थेरेपी की व्यवस्था है।
शिशु रोग विशेषज्ञ डा. पीके चौधरी बताते हैं कि एक शोध (जर्नल आफ पेडियाट्रिक साइकोलाजी 2021) के मुताबिक जिन बच्चों को इलाज के समय खेलों में व्यस्त रखा गया, उन्होंने दवाओं और इंजेक्शन का डर 40 प्रतिशत कम महसूस किया। एम्स और कुछ निजी अस्पतालों में ऐसे प्रयोग किए गए हैं, जिससे बच्चे इलाज के दौरान ज्यादा सहयोगी बने हैं।
माता-पिता को मिली राहत
सदर अस्पताल में एक महिला ने बताया कि उनकी 6 साल की बेटी को हमेशा डाक्टर से डर लगता था। लेकिन इस बार जब वह अस्पताल आई तो गेम खेलने लगी और बिना रोए डाक्टर से चेकअप करवा लिया।
इसी तरह, ओपीडी में मौजूद अन्य अभिभावक भी इस पहल को बेहद सराह रहे हैं। उनका कहना है कि इस व्यवस्था से न केवल बच्चों को बल्कि माता-पिता को भी राहत मिलती है।
इलाज के साथ सीखने का भी मौका
कियोस्क मशीन सिर्फ बच्चों का मनोरंजन ही नहीं कर रही, बल्कि यह शिक्षा और जागरूकता का माध्यम भी है। इन मशीनों में सरकारी योजनाओं की जानकारी, स्वास्थ्य संबंधी टिप्स और इलाज के बारे में जरूरी जानकारी भी है।
यानी, खेल-खेल में बच्चे और उनके अभिभावक दोनों सीख भी पा रहे हैं। अस्पतालों को अक्सर केवल इलाज और दवाइयों तक सीमित मान लिया जाता है।
लेकिन रांची सदर अस्पताल की यह पहल साबित करती है कि स्वास्थ्य सेवाएं सिर्फ शरीर का उपचार नहीं बल्कि मन और दिमाग की देखभाल भी होनी चाहिए। अगर अन्य जिलों के अस्पतालों में ऐसी व्यवस्था हो जाए, तो बच्चों का अस्पताल का अनुभव डरावना नहीं होगा।
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