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    निदेशालय के निर्देश पर जिलों की लापरवाही भारी, तय समय पर नहीं भेजी एसओपी की रिपोर्ट

    By Kanchan SinghEdited By:
    Updated: Fri, 01 Jan 2021 11:39 AM (IST)

    स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग अंतर्गत संचालित माध्यमिक शिक्षा निदेशालय की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि राज्य के 16 जिलों में मानक संचालन प्रक् ...और पढ़ें

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    झारखंड के कई जिलों में मानक संचालन प्रक्रिया का अनुपालन नहीं किया जा रहा है।

    रांची,जागरण संवाददाता। झारखंड सरकार के स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग अंतर्गत संचालित माध्यमिक शिक्षा निदेशालय की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि राज्य के 16 जिलों में मानक संचालन प्रक्रिया के तहत दिए गए दिशा निर्देशों का पालन दृढ़ता पूर्वक नहीं किया जा रहा है। निदेशक की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि 28 दिसंबर 2020 को अपराह्न 3:00 बजे तक प्राप्त सूचना में कई जिलों का प्रदर्शन खराब रहा है। इनमें रांची, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, बोकारो जैसे जिले शामिल हैं।

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    दरअसल राज्य में संचालित सभी सरकारी, गैर सरकारी सहायता प्राप्त, अल्पसंख्यक स्कूल तथा झारखंड एकेडमिक काउंसिल से मान्यता प्राप्त विद्यालयों में 10वीं और 12वीं की कक्षाओं के संचालन का निर्देश 21 दिसंबर को दिया गया। आवश्यक दिशा निर्देशों के साथ-साथ विद्यालयों में शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया को अनिवार्य किया गया था। विभागीय निर्देश के बावजूद राज्य के अधिकांश जिलों में इसकी रिपोर्ट संतोषजनक नहीं रही है। विभागीय निदेशक की ओर से जारी पत्र में इस स्थिति को खेदजनक करार देते हुए लापरवाही मानी गई है। पत्र में कहा गया है कि सभी जिले दिशा निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए आवश्यक कार्रवाई करें।

    इन जिलों में स्थिति संतोषजनक नहीं

    रांची, दुमका, बोकारो, पूर्वी सिंहभूम, चतरा, गिरिडीह, हजारीबाग, पलामू, साहिबगंज, सरायकेला खरसावां, पाकुड़, गढ़वा, कोडरमा, सिमडेगा, देवघर एवं गुमला।

     

    दो-दो प्रभार में डीईओ, मुख्यालय छोड़कर रहते हैं फरार

    दरअसल, विभागीय कामकाज में दिख रही इस लापरवाही के पीछे अधिकारियों की मनमर्जी और कार्य विभाजन में बरती गई उदासीनता बड़ी वजह है। कई जिलों में जिला शिक्षा पदाधिकारी को दो-दो प्रभार दिए गए हैं। कई अधिकारी अतिरिक्त दायित्व का निर्वाहन करने की वजह से अक्सर मुख्यालय छोड़कर फरार रहते हैं। इस कारण विभागीय कामकाज प्रभावित होता है। कई बार तीन-तीन महीने तक शिक्षकों का वेतन भुगतान नहीं हो पाता। विभाग मौन बना रहता है।