झारखंड की खास पहचान है नागपुरी संगीत, जयकांत का 25 सालों से रहा है जुड़ाव Ranchi News
Jharkhand. नागपुरी संगीत बदलते परिवेश में अपनी पहचान खो रहा है। एक्सपेरिमेंट नहीं करने वाले लोग इससे दूर होते गए। इसके लिए कलाकारों को प्लेटफॉर्म देना होगा।
रांची, जासं। झारखंड की पहचान एक आदिवासी राज्य के रूप में होती रही है। यही पहचान इसकी विशेषता भी है। आदिवासी समाज की एक खास पहचान इसकी लोक गीतों और नृत्य के लिए भी है। झारखंड का मनमोहक नागपुरी लोकगीत पूरे भारत में प्रसिद्ध है। संगीत में उपयोग में आने वाला वाद्य यंत्र पूरी तरह से देशी होता है जिसकी धुन अपने आप में मनमोहक है।
मगर बदलते परिवेश में नागपुरी संगीत अपनी पहचान खो रही है। आजकल युवा पारंपरिक नागपुरी गीत और वाद्य यंत्रों के बजाये आधुनिक संगीत की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। राजधानी रांची में रहने वाले जयकांत इंदवार ने बताया कि वो पिछले 25 सालों से नागपुरी संगीत के लिए काम कर रहे हैं। इस दो दशकों से ज्यादा समय में लोक गीतों में बहुत बदलाव हुआ है। फ्यूजन संगीत के साथ दौड़ में लोक गीत काफी पीछे छूट गयी है। इसका सबसे बड़ा कारण लोक कलाकारों के द्वारा गीतों के बोल और वाद्य यंत्रों पर एक्सपेरिमेंट न करना था।
लोक गीतों में वाद्य यंत्र पारंपरिक ही होते हैं, मगर धुनों पर एक्सपेरिमेंट संभव है। पहले गांव में सभी लोग मिल के लोक गीत गाते थे इसलिए सभी कलाकार थे, मगर अब एकल गायक की संस्कृति है। लोक कलाकारों के गायब होने की सबसे बड़ी वजह उन्हें मिलने वाला कम आमदनी है। इसके लिए सरकार को भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। सरकार को कलाकारों को सबसे पहले प्लेटफॉर्म देने की व्यवस्था करनी होगी।
भारत में संगीत को दो भागों में बांटा गया है
भारत में संगीत को मूलत: दो भागों में बांटा गया है। एक फ्यूजन संगीत जिसमें गीत और संगीत दोनों ही नए जवाने के वाद्य यंत्रों और बोल पर होते हैं। दूसरा पारंपरिक संगीत, जिसे हम लोक संगीत कहते हैं। पिछले कुछ वर्षों में फ्यूजन संगीत की बाढ़ सी आ गयी है। इसमें झारखंड की लोक संगीत गुम हो रही है। नागपुरी लोक संगीत फ्यूजन संगीत से बहुत अलग है। इसमें पारंपरिक वाद्य यंत्र और लोक बोली में गीतों को गाया जाता है।