Pandit Shiv Kumar Sharma: संगीत भेद नहीं प्रेम का देता है संदेश... दो बार रांची आए थे पंडित शिव कुमार शर्मा
Pandit Shiv Kumar Sharma पंडित शिव कुमार शर्मा दो बार झारखंड की राजधानी रांची आए थे। श्रोताओं को संतूर के रस में भिगो गए थे। आज भी उनका संतूर लोगों के ...और पढ़ें

रांची, (संजय कृष्ण)। Pandit Shiv Kumar Sharma passes away मशहूर संतूरवाद पंडित शिवशंकर शर्मा नहीं रहे। 84 की उम्र में उनका निधन हो गया। संतूर को कश्मीर की वादियों से निकालकर देश-दुनिया में उसके स्वर से परिचित कराया। उनका जीवन संगीत को समर्पित था। वे संतूर के साधक थे। 2006 के नवंबर में वे रांची आए थे। 16 नवंबर की शाम राजभवन काबिरसा मंडप में संतूर की स्वर लहरियों से सराबोर हो गया था। तब राज्यपाल सिब्जे रजी थे। वे राजकीय अतिथि थे और राजभवन में ही ठहरे थे।

संगीत हिंदू-मुस्लिम, सिख, ईसाई में भेदभाव पैदा नहीं करता
स्पीक मैके की ओर से कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। पंडित शिव कुमार शर्मा ने कहा था कि संगीत हिंदू-मुस्लिम, सिख, ईसाई में भेदभाव पैदा नहीं करता। उन्होंने कहा था कि शास्त्रीय संगीत में अपनी ओर खींचने की अद्भुत शक्ति होती है। यह लोगों को जोड़ता है। प्रेम और प्यार का संदेश देता है। तब, उस समय स्पीक मैके के विनय सरावगी राज्य मुखिया थे। बताया कि काफी लोग इस कार्यक्रम में आए थे। निजी स्कूली बच्चों के साथ-साथ सरकारी स्कूल के बच्चों ने भी इस सुरमयी शाम का आनंद लिया था। रांची में यह उनका पहला आगमन था।
वर्ष 2013 में दूसरी बार रांची आए थे शिव कुमार शर्मा
इसके बाद वे दूसरी बार फरवरी, 2013 में आए थे। सफायर इंटरनेशनल स्कूल में कार्यक्रम था। उन्होंने श्रोताओं से पूछा था कि आपमें से कितने लोगों ने मुझे और संतूर को देखा है? फिर कहा कि यह धारणा गलत है कि शास्त्रीय संगीत का आनंद लेने के लिए उसका ज्ञान भी जरूरी है। मुझे लीजिए, मुझे अच्छा खाना पसंद है, पर मैं अच्छा खाना बनाना नहीं जानता। लेकिन मैं इसका आनंद लेता हूं। इसलिए शास्त्रीय संगीत का आनंद बिना इसकी जानकारी लिए भी लिया जा सकता है।

अनुशासन और ध्यान से सुनिए तो आनंद आएगा
जरूरत बस इतनी है कि आप में अनुशाासन हो और ध्यान से इसे सुना जाए। आज जब ध्यान से सुनेंगे तो फिर आज संगीत की भाषा की चिंता नहीं करेंगे, भाव की चिंता करेंगे। भाव में डूब जाएंगे। शास्त्रीय संगीत ध्यान की ओर ले जाता है। शांति की ओर ले जाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की यही विशेषता है। इसने रागों की खोज की, मौसम के अनुसार राग बनाए। हर ऋतु के अपने रंग और राग हैं। उसी तरह समय का भी। सुबह, दोपहर, शाम, रात, भोर....। कब किसे सुना जाए, यह भारतीय शास्त्रीय संगीत की संगत से पता चलेगा। स्पीक मैके, रांची के राजीव रंजन कहते हैं, उनके निधन से संगीत जगत सूना हो गया। उन्होंने हरि प्रसाद चौरसिया के साथ मिलकर फिल्मों में संगीत दिया था। तब, शिव-हरि की प्रसिद्ध जोड़ी थी। बाद में फिल्मों से दोनों महान कलाकारों ने दूरी बना ली।

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