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Language: जो भाषा बोली ही नहीं जाती, वह भी है पंजीकृत; सरकार को इन भाषाओं को लेकर है भ्रम

Jharkhand News राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर अद्यतन कार्य (एनपीआर) की अनुदेश पुस्तिका 2020 में नागपुरी मुंडा लोहरा की भाषा को लेकर भ्रम है। जनजातियों की जाति के नाम को ही भाषा के स्थान पर भी दर्ज कर लिया गया है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Tue, 13 Jul 2021 12:03 PM (IST)Updated: Tue, 13 Jul 2021 12:29 PM (IST)
Jharkhand News जनजातियों की जाति के नाम को ही भाषा के स्थान पर भी दर्ज कर लिया गया है।

रांची, [संजय कृष्ण]। झारखंड की लोहरा जनजाति की अपनी कोई भाषा नहीं है। इस समुदाय के ज्यादातर लोग या तो नागपुरी बोलते हैं या जिन इलाकों में रहते हैं, उस क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा का प्रयोग करते हैं। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर की अनुदेश पुस्तिका में इस समुदाय की मातृभाषा को लोहारा बताया गया है, जबकि इस नाम की किसी भाषा का अस्तित्व ही नहीं है। यही हाल कई अन्य समूह की भाषाओं का भी है। इसे लेकर अब भ्रम की स्थिति है।

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सबसे हास्यास्पद स्थिति मुंडा जाति को लेकर है। यहां उसकी मातृभाषा मुंडा और मुंदरी दर्ज है। मुंडा का कोड 185 है और मुंदरी का 186। यानी सरकार मानती है कि मुंडा दो भाषा बोलते हैं, जबकि वास्तव में मुंडा मुंडारी भाषा बोलते हैं। मुंदरी नाम की कोई भाषा अस्तित्व में नहीं है। इसमें एक भाषा पलमुहा भी दर्ज है, जिसके बारे में कहा गया है कि यह पलामू में बोली जाती है। इस भाषा का भी झारखंड में कहीं कोई वजूद नहीं है। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर अद्यतन कार्य (एनपीआर) की अनुदेश पुस्तिका 2020 ने प्रशिक्षण के लिए एक पुस्तिका जारी की है।

यह कार्यालय उपयोग के लिए है, लेकिन इसमें उन भाषाओं को भी पंजीकृत किया गया है, जो बोली ही नहीं जाती। इस सूची में कुछ ऐसी भाषाओं के नाम का भी उल्लेख है, जो वास्तव में भाषा हैं ही नहीं। कई जातियों के नाम को ही भाषा मानकर इसमें दर्ज कर लिया गया है। अनुदेश पुस्तिका में नागपुरी को नागपुरिया नाम से दर्ज किया गया है। इसका कोड 188 है।

यही नहीं, आगे सदन/सादरी भी है, जिसका कोड 231 है। जबकि नागपुरी को ही सादरी कहा जाता है। यानी, यहां भी नागपुरी को दो श्रेणी में बांट दिया गया है। सदन नाम की तो कोई भाषा कभी रही ही नहीं। खड़‍िया को भी यहां खरिया लिखा गया है, जिसका कोड 108 है। उरांव जनजाति कुडुख बोलती है, लेकिन यहां कुरुख/ओरांव लिखा गया है। इसका कोड 143 है।

तत्काल सुधार करे सरकार

नागपुरी साहित्य मंच की सचिव डाॅ. शकुंतला मिश्र कहती हैं कि नागपुरी दो हजार साल से बोली जा रही है और यहां की संपर्क भाषा है। इसे सादरी या नागपुरी कहते हैं। वह कहती हैं कि इस तरह से तो भाषा पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा। जबकि यह एक शिष्ट और मानक भाषा है। मूलवासी सदान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद कहते हैं कि नागपुरी झारखंड के सदानों की मातृभाषा होने के साथ-साथ जनजातियों की भी संपर्क भाषा है।

केंद्र सरकार को इसे तत्काल सुधारना चाहिए। डाॅ. राम प्रसाद कहते हैं, 1906 ई. में अंग्रेजों ने अपना व्याकरण नागपुरी नाम से ही लिखा। यहां खोरठा, संताली, भूमिज, किसान, मलतो आदि मातृभाषा दर्ज है। आदिवासी भाषा-साहित्य पर लंबे समय से काम कर रहे अश्विनी कुमार पंकज कहते हैं कि मुंदरी कोई भाषा नहीं है। मुंडा जो बोलते हैं, उसे मुंडारी कहते हैं और उरांव जो भाषा बोलते हैं, उसे कुड़ुख कहा जाता है।

शकुंतला मिश्र कहती हैं कि आखिर मातृभाषा का यह वर्गीकरण किसने किया है, जो अवैज्ञानिक है। सरकार को इसमें तत्काल सुधार करना चाहिए। जिस भाषा का अस्तित्व ही नहीं, वह भी यहां शामिल है। जबकि यह भारत के महारजिस्ट्रार द्वारा जारी किया गया है। इस पुस्तिका के आधार पर प्रशिक्षण दिया जाएगा तो भ्रम ही पैदा होगा और गलत जानकारी ही दर्ज होगी।


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