लाचार परिवार का देसी जुगाड़, 6 दिनों में नाप दी 1300 किमी दूरी; पढ़ें बेबसी की कहानी
Migrant Workers विशाखापट्टनम से चलकर बिहार के कैमूर निवासी मिथिलेश अपनी पत्नी व उसके दो भाइयों के साथ मोपेड में अतिरिक्त स्टैंड लगाकर कुल चार लोगों के साथ चौपारण तक पहुंचे हैं।
हजारीबाग, जेएनएन। Migrant Workers चौपारण में राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगातार प्रवासी श्रमिकों का काफिला अपने गंतव्य की ओर अग्रसर है। लाचारी , बेबसी और परेशानी के बीच उनके नहीं थकने वाली यात्रा लगातार जारी है। आमतौर पर श्रमिकों का आगमन जहां लॉक डाउन तीन तक पैदल व ट्रकों के माध्यम से हो रहा था। वही लॉक डाउन के चौथे चरण आते-आते श्रमिकों ने अपने घर पहुंचने के लिए कई तरह के तरीके भी इजाद कर लिए । सरकारों से मिलने वाली सहायता की परवाह किए बिना ही मजदूर अपने घरों की ओर निकल पड़े हैं। इसके लिए जुगाड़ टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।
ऐसे ही एक बिहारी परिवार ने आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम से बिहार के कैमूर तक की लगभग 13 सौ किलोमीटर की यात्रा 6 दिनों में पूरी की। कैमूर के मिथिलेश अपनी पत्नी व उसके दो भाइयों के साथ मोपेड में अतिरिक्त स्टैंड लगाकर कुल चार लोग चौपारण तक पहुंचे। यहां से मात्र 200 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद उनका अपने घर कैमूर बिहार पहुंचना शेष है।
दरअसल यह परिवार विशाखापट्टनम में आइसक्रीम बेचने का काम करता है । आपदा आरंभ होते ही घर पहुंचने की ललक थी। लेकिन रेल सेवा, सड़क सेवा बाधित हो जाने की वजह से सभी लाचार व परेशान थे। तब उन्होंने एक नया तरीका इजाद किया। लूना बाइक में दो बड़े पहिए लगाकर व स्टैंड लगा कर दो अतिरिक्त लोगों को बैठने की व्यवस्था कर डाली। इसके बाद सभी विशाखापट्टनम से अपने घर की ओर निकल पड़े।
एक दिन में औसतन डेढ़ सौ से 200 किलोमीटर यात्रा की जाने लगी। सभी अपने गांव के नजदीक पहुंचने की खुशी में थे। बहहाल उनका यह प्रयास अनूठा दिखा तथा सड़क राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे रहने वाले लोगों ने प्रवासी मजदूरों के इस प्रयास को काफी गौर करते हुए देखे गए।