Medical Protection Bill: झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र में पास होगा मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट, स्वास्थ्य मंत्री ने दी मंजूरी
Medical Protection Act Jharkhand Assembly Monsoon Session स्वास्थ्य मंत्री ने इसपर अपनी मंजूरी देते हुए इसे विधानसभा के मानूसन सत्र में रखने के निर्देश विभाग के पदाधिकारियों को दिए हैं। इससे पहले मंगलवार को होनेवाली कैबिनेट की बैठक में भी इस बिल पर चर्चा होगी।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड में चिकित्सकों एवं पारा मेडिकल कर्मियों को सुरक्षा प्रदान करनेवाला झारखंड चिकित्सा सेवा से संबद्ध व्यक्तियों, चिकित्सा सेवा संस्थान (हिंसा एवं संपत्ति नुकसान निवारण) विधेयक तीन सितंबर से शुरू होनेवाले विधानसभा के मानसून सत्र में आएगा। स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने इस विधेयक से संबंधित प्रस्ताव पर अपनी स्वीकृति देते हुए इसे विधानसभा के मानसून सत्र में ही लाने के निर्देश विभाग के पदाधिकारियों को दिए हैं।
राज्य में तीन साल बाद इस विधेयक को एक बार फिर विधानसभा की स्वीकृति लेने का प्रयास हो रहा है। इस विधेयक को विधानसभा सचिवालय से वापस मंगाकर कुछ संशोधन के साथ फिर से सदन में रखा जा रहा है। प्रवर समिति की अनुशंसा को इसमें शामिल किया गया है, या नहीं, इसका अभी खुलासा नहीं हो सका है। बता दें कि पिछली सरकार में यह विधेयक विधानसभा में रखा गया था, लेकिन इस पर बहस के बाद प्रवर समिति को भेज दिया गया था। बाद में प्रवर समिति की रिपोर्ट के साथ इसे सदन में रखने को लेकर जुलाई 2018 में ही विधानसभा सचिवालय को भेजा गया था।
विधानसभा की प्रवर समिति ने विधेयक में सजा के प्रविधान को कम करने की अनुशंसा की थी। चिकित्सकों व चिकित्साकर्मियों से मारपीट करना तथा चिकित्सा संस्थानों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना गैर जमानतीय अपराध को हटाकर दंड प्रक्रिया संहिता के नियम 41 ए के प्रविधानों के तहत कार्रवाई करने की भी अनुशंसा की थी। यदि प्रवर समिति की अनुशंसा को इसमें लागू किया जाता है, तो आरोपी की गिरफ्तारी से पहले उसे लिखित नोटिस दी जाएगी।
साथ ही आरोपी का पक्ष सुने बिना उसकी गिरफ्तारी नहीं होगी। प्रवर समिति ने आरोप सिद्ध होने पर, दोषी व्यक्तियों को नुकसान हुई संपत्ति की दोगुनी राशि चुकानी होगी, के प्रविधान से दोगुनी शब्द को हटाने की भी अनुशंसा की थी। इससे अब नुकसान हुई संपत्ति की ही भरपाई करनी होगी। वहीं, दोषी करार दिए जाने पर तीन साल की सजा के प्रविधान को घटाकर 18 माह करने की सिफारिश की थी। हालांकि इसमें 50 हजार रुपये जुर्माने के प्रविधान को बरकरार रखा गया था।