60 की उम्र में आरा के लाल का जलवा, एक्टिंग से अब 'मुर्गा ट्रॉफी' जीतने के लिए तैयार
रांची के मनोज सहाय ने 60 वर्ष की उम्र के बाद भी फिल्मों में सक्रिय रहकर यह साबित कर दिया कि उम्र केवल एक संख्या है। रंगमंच से सिनेमा तक का उनका सफर प् ...और पढ़ें

लांछना, वेब सीरीज रामगढ़-98 में काम कर चुके हैं मनोज सहाय। (जागरण)
संजय कुमार, रांची। यह आम धारणा है कि उम्र बढ़ने के साथ रचनात्मक ऊर्जा कम हो जाती है और नए अवसर सीमित हो जाते हैं, लेकिन रंगमंच से लेकर सिनेमा तक अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके मनोज सहाय इसे पूरी तरह खारिज करते हैं।
उनकी जीवन यात्रा यह सिद्ध करती है कि यदि मन में उमंग, जज्बा और निरंतर सीखने की इच्छा हो तो उम्र कभी आड़े नहीं आती। रांची के सिंह मोड़ निवासी मनोज सहाय ने अपने विद्यार्थी जीवन से ही नाटक करना प्रारंभ किया।
मूल रूप से बिहार में आरा के रहने वाले सहाय पटना में वरिष्ठ रंगकमी सतीश आनंद के साथ उनकी संस्था कला संगम से जुड़कर कई महत्वपूर्ण नाटकों में काम किया।

कालांतर में मनोज रांची आए जहां उन्होंने अजय मलकानी द्वारा स्थापित संस्था युवा रंगमंच से जुड़कर मंच पर निरंतर सक्रियता बनाए रखी। 60 वर्ष की उम्र के बाद व्यावसायिक फिल्मों की और रुख किया।

इस वर्ष लांछना, प्रिया की बावुरी, वेब सीरीज रामगढ़ 98 और एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म मुर्गा ट्रॉफी दर्शकों तक पहुंची है। वेब सीरीज रामगढ़ का निर्देशन पुणे फिल्म इंडस्ट्री के सतीश मुंडा ने किया, जिनकी फिल्म जादूगोड़ा पहले की कई पुरस्कार जीत चुकी है।

वेब सीरीज- रामगढ़ 98 की शूटिंग के दौरान।
वहीं, मुर्गा ट्रॉफी का निर्देशन पंचायत फेम शशि वर्मा ने किया है। इसके अतिरिक्त मनोज सहाय प्रकाश झा निर्देशित फिल्म परीक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। उनकी एक आगामी फिल्म रिंकू राजगुरु के साथ भी आने वाली है।

फिल्म मुर्गा ट्रॉफी के दौरान।
आज भी सघन अध्ययन, अभ्यास और गुरुओं के सानिध्य में रहना आवश्यक समझते हैं। बातचीत में उन्होंने कहा कि वर्तमान में कई फिल्म और नाटकों की तैयारी में हैं। इनमें अजय मलकानी द्वारा निर्देशित शेक्सपियर का कालजयी नाटक हैमलेट प्रमुख है।
वर्ष 1926 में संभावित परियोजनाओं में टीवीएफ की बोल बम व राजीव सिन्हा निर्देशित फिल्म मड़वा शामिल है। मनोज सहाय की यात्रा उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो उम्र को आगे बढ़ने में बाधक मानते हैं। उनका जीवन स्पष्ट संदेश देता है कि उम्र नहीं बल्कि मन का उत्साह और कर्म के प्रति समर्पण ही सफलता की असली कसौटी है।

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